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Thursday, April 14, 2022

चिंगारी

 



कब से दबी हुई

एक नन्ही सी चिंगारी

मेरे मन के गहरे गह्वर में !

बहुत कोशिश की

हालात की आँधियों ने

उसे बुझाने की,

वक्त की झंझा ने

उसे उड़ाने की,

ज़िंदगी की तूफानी बारिश ने

उसे डुबाने की,

लेकिन प्राण प्राण से

हथेलियों की ओट दे

मैंने उसे आज तक जिलाए रखा है

सिर्फ इसलिये कि एक दिन

अपने हौसले, अपनी हिम्मत,

अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और

अपने संकल्प की हवा दे

मैं उसे फिर से एक प्रचंड

दावानल में बदल सकूँ

जिसमें मुझे संसार की

सारी रूढ़ियों को,

सारी विसंगतियों को और

सारी शोषणकारी वर्जनाओं को

जला कर राख करना है

ताकि यह धरती सबके लिए

समान रूप से

रहने योग्य बन सके !

 

साधना वैद  


10 comments :

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
    'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. वाह!अच्छे तेवर हैं रचना में

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    1. हार्दिक धन्यवाद विवेक जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. वाह साधना जी, एक दृढ़ संकल्‍प कि....मैंने उसे आज तक जिलाए रखा है

    सिर्फ इसलिये कि एक दिन

    अपने हौसले, अपनी हिम्मत,

    अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और

    अपने संकल्प की हवा दे

    मैं उसे फिर से एक प्रचंड

    दावानल में बदल सकूँ....बहुत खूब , हमें प्रेरणा देती रचना

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद अलखनंदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. बहुत सुन्दर सृजन

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  5. हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. उम्दा भाव लिए रचना का पढ़ना बहुत अच्छा लगा |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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