Followers

Sunday, April 17, 2022

उड़ने लगा है मेरा भी मन

 


देखो लग गए हैं पंख

मेरे सपनों को

थिरकने लगे हैं मेरे पाँव

और फ़ैलने लगे हैं

पानी के ढेर सारे

छोटे बड़े वलय मेरे चहुँ ओर

मेरे सामने है

खारे पानी से भरे सागर का

असीम, अगाध, अथाह विस्तार

और मेरे मन में है मीठे सपनों की

बहुत ऊँची उड़ान !

इतनी ऊँची कि जहाँ तक

कोई पंछी, कोई जहाज न पहुँच सके !

सब कहते हैं मैं बड़ी हो गयी हूँ !

लेकिन देखो तो ज़रा

कहाँ से बड़ी हो गयी हूँ मैं ?

पानी में मेरा प्रतिबिम्ब देखो

कितनी छोटी सी तो हूँ मैं !

बिलकुल नन्ही सी

अबोध, मासूम, नाज़ुक, भोली !

तितलियों को अपनी झोली में समेटे

यहाँ वहाँ उड़ती फिरती हूँ मैं भी

तितलियों की ही तरह !

हाँ इतना ज़रूर है

तितलियों के साथ

अब उड़ने लगा है मेरा भी मन

क्या यही होता है बड़ा होना ?

 

 

साधना वैद

 

 


10 comments :

  1. उम्दा शब्द चयन |भाव और विचारों से परिपूर्ण रचना |

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  3. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    ReplyDelete
  4. होता होगा । फिलहाल उङान भरी जाए ।
    कोमल सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद नूपुरम जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  5. कोमल भावों से पिरोयी गयी सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जे ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  6. मन उड़ने लगा है....
    वाह!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  7. बहुत ही सुंदर भाव दी।
    बेहतरीन 👌

    ReplyDelete