नहीं भूलतीं वो आँखें !
मुझे छेडतीं, मुझे लुभातीं,
सखियों संग उपहास उड़ातीं,
नटखट, भोली, कमसिन आँखें !
हर पल मेरा पीछा करतीं,
नैनों में ही बाँधे रहतीं,
चंचल, चपल, विहँसती आँखें !
मुझे ढूँढतीं, मुझे निरखतीं,
मुझे देख कर खिल-खिल उठतीं,
इंतज़ार में व्याकुल आँखें !
मुझ पर फिर अनुराग जतातीं,
कभी रूठतीं, कभी मनातीं,
स्नेह भार से बोझिल आँखें !
प्रथम प्रणय के प्रथम निवेदन
पर लज्जा से सिहर-सिहर कर
सकुचाती, शर्माती आँखें !
कभी बरजतीं, कभी टोकतीं,
कभी मानतीं, कभी रोकतीं,
मर्यादा में सिमटी आँखें !
विरह व्यथा से अकुला जातीं,
बात-बात में कुम्हला जातीं,
नैनन नीर बहाती आँखें !
पर पीड़ा से भर-भर आतीं,
चितवन से ही सहला जातीं,
करुणा कलश लुटाती आँखें !
जिनके भावों में भाषा है,
जिनकी भाषा में कविता है,
मौन, मुखर, मतवाली आँखें !
जिनमें रह कर जीना सीखा,
जिनमें बह कर तरना सीखा,
अंतर पावन करती आँखें !
साधना वैद
जिनमें रह कर जीना सीखा,
ReplyDeleteजिनमें बह कर तरना सीखा,
अंतर पावन करती आँखें !
-बहुत सुन्दर!!
जिनके भावों में भाषा है,
ReplyDeleteजिनकी भाषा में कविता है,
मौन, मुखर, मतवाली आँखें !
आँखों को खूबसूरती से बयाँ किया है आपने
बहुत सुन्दर
जिनके भावों में भाषा है,
ReplyDeleteजिनकी भाषा में कविता है,
मौन, मुखर, मतवाली आँखें !
जिनमें रह कर जीना सीखा,
जिनमें बह कर तरना सीखा,
अंतर पावन करती आँखें !
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
"मुझ पर फिर अनुराग --------स्नेह भर से बोझिल आँखें " बहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
ReplyDeleteआशा
जिनके भावों में भाषा है,
ReplyDeleteजिनकी भाषा में कविता है,
मौन, मुखर, मतवाली आँखें !
...बहुत अच्छी रचना
सच कहा है किसी ने ये आँखे तेरे मन की जुबान हैं...बिलकुल सच और सुंदर शब्दों के मोतियों से सजी सुंदर कविता.
ReplyDeleteकैसे भूली जाती ऐसी ऑंखें ...
ReplyDeleteइन पर मैंने भी लिखी थी एक कविता ...!
जिनमें रह कर जीना सीखा,
ReplyDeleteजिनमें बह कर तरना सीखा,
जिनके भावों में भाषा है,
जिनकी भाषा में कविता है,
बहुत खूबसूरेअत कविता मृगनयनी की तरह। बधाई।
वाह खूब "आंखें" दिखाईं आपने तो!!! :) सुन्दर कविता.
ReplyDeleteसच है आँखें भी तो बोलती हैं ... अलग अलग भाषा ...
ReplyDeleteतेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है ...