क्या करूँ
मेरी कल्पना की उड़ान तो
मुक्त आकाश में
बहुत ऊँचाई तक उड़ना चाहती है
लेकिन मेरे पंखों में इतनी ताकत ही नहीं है
और मैं सिर्फ पंख
फड़फड़ा कर ही रह जाती हूँ !
क्या करूँ
मेरे ह्रदय में सम्वेदनाओं का ज्वार तो
बड़े ही प्रबल आवेग से उमड़ता है
लेकिन कागज़ पर लिखते वक्त
शब्दों का टोटा पड़ जाता है
और मेरी कविता
अधूरी ही रह जाती है !
क्या करूँ
मेरे संगीत के मनाकाश में
स्वरों का विस्तार तो
बहुत व्यापक होता है
लेकिन मेरे कण्ठ के स्वर तंत्र
इतना थक चुके हैं
कि मेरे गीत अनगाये, अनसुने
ही रह जाते हैं !
क्या करूँ
मेरे मन में पीड़ा तो
बहुत गहरी जड़ें जमाये बैठी है
लेकिन नयनों के बराज पर
पलकों के द्वार
सदा बंद ही रहते हैं
और मेरे आँसुओं का सैलाब
आँखों ही आँखों में कैद रह जाता है !
क्या करूँ
मेरे ह्रदय में भावनाओं का उद्वेग
तो बहुत तीव्र है
लेकिन अभिव्यक्ति के समय
अधर सिर्फ काँप कर ही रह जाते हैं
और मेरा प्यार
चट्टानों के नीचे बहते पानी की तरह
अनदेखा, अनछुआ खामोश ही
बह जाता है
और मैं पानी के
इतने करीब होते हुए भी
बिलकुल प्यासी, अतृप्त
और अधूरी सी खड़ी रह जाती हूँ !
साधना वैद
और मेरा प्यार
ReplyDeleteचट्टानों के नीचे बहते पानी की तरह
अनदेखा, अनछुआ खामोश ही
बह जाता है
मन के अंतर्द्वंद्व को बखूबी शब्द दिए हैं....
बड़े ही प्रबल आवेग से उमड़ता है
ReplyDeleteलेकिन कागज़ पर लिखते वक्त
शब्दों का टोटा पड़ जाता है
और मेरी कविता
अधूरी ही रह जाती है !
कहाँ अधूरी रही कविता.....इतने अच्छे से मन के अंतर्द्वंद्व को लिख डाला....
कागज पर लिखते शब्दों का टोटा पड़ जाता है ...
ReplyDeleteओह ...कितना बेबस हो जाते हैं ना ....
पानी के पास आकर प्यासा रह जाना ....
गीतों का अनकहा रह जाना
कविता अधूरी ...
प्रेम की यही कहानी है ....सुन्दरतम !
आज चिडिया पर लिखा है , जिस भी ब्लॉग पर जा रही हूँ , चिडिया ही मिल रही है ...:):)
मन में उठते भावों का बहुत सुन्दर बर्णन किया है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द चयन |बधाई |
आशा
bahut khoobsurat.
ReplyDeleteसुन्दर गीत...!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteहर स्तेंज़ा गज़ब का लिखा है...किस की तारीफ करू..किसे छोड़ दू...कुछ सलाह आपके हर पहरे पर...
ReplyDeleteमेरी कल्पना की उड़ान तो
मुक्त आकाश में .... मैं सिर्फ पंख
फड़फड़ा कर ही रह जाती हूँ !
अरे तो पिछली पोस्ट जैसे लिखी थी बिना टिकट लिए उडा लो न अपने मन को...वायु से भी तेज गति से.....(हा.हा.हा.)
शब्दों का टोटा पड़ जाता है .....मार्केट में बहुत सी हिंदी की डीक्स्नारी भरी पड़ी हैं.
मेरे गीत अनगाये, अनसुने
ही रह जाते हैं ....रात को १० बजे के बाद ओल्ड इस गोल्ड के गीत सुना करो...सारी इच्छाए पूरी हो जाएँगी..
आँसुओं का सैलाब
आँखों ही आँखों में कैद रह जाता है ...आपके चेहरे पे फैली मुस्कराहट देख कर ऐसा लगता तो नहीं...
पानी के
इतने करीब होते हुए भी
बिलकुल प्यासी, अतृप्त
और अधूरी सी खड़ी रह जाती हूँ !
.....ऐसा मत करना...दुनिया में आप प्यार बांटने के लिए आई हो सबको अपना प्यार बांटती चलो...कभी कम मत पड़ने देना...हमारे लिए भी नहीं...
चलो मजाक एक तरफ रहा...
लेकिन सच में कविता बहुत ही अच्छी है और सच बात तो ये है की हमारे तुम्हारे सब के मन की बात है...सब के साथ ऐसा ही होता हें.लेकिन इन एहसासों को आपने इतने सुंदर शब्दों के मोतियों से सजाया हें तो शब्दों की कमी कहाँ पड़ी.
बधाई सुंदर रचना के लिए.
कल्पना और यथार्थ में वही अंतर होता है जो मेरी पिछली पोस्ट और इस पोस्ट में है ! कहते हैं ना जहाँ न पहुँचे रवि
ReplyDeleteवहाँ पहुँचे कवि !
सो हम भी पिछली पोस्ट में खूब सैर कर आये और वह भी बिना टिकिट ! लेकिन फिर जब यथार्थ के धरातल पर उतरे तो इस पोस्ट ने आकार लिया ! और मुस्कुराहट तो चहरे पर आना लाजिमी है ! सात साल पुरानी फोटो है जब पहली-पहली बार अपने पोते को गोदी में लिया था ! वैसे आपके कमेंट ने दिल खुश कर दिया ! बहुत बहुत धन्यवाद !
हम तो कुछ नहीं कर रहे हैं चुपचाप इस कविता का आनन्द ले रहे हैं ।
ReplyDeleteवाह दीदी | आपसे तो यह आशा नहीं थी कि आपको शब्दों का टोटापडेगा |
ReplyDeleteअपने प्यार को अभिव्यक्ति जरूर दीजिए वरना मन में बहुत पछतावा रह जाएगा |
सुन्दर कविता
sadhana ji ,
ReplyDelete\maine bahut der se aapki kavitaye padh raha hoon .. kis par comment doon isi uljhan me tha .. is kavita ne man moh liya..bahut hi acche bhaavo se sazi hui kavita hai .. meri badhayi sweekar kare..