Followers

Sunday, October 24, 2010

संकल्प

अब से
आँखों के आगे पसरे
मंज़रों को झुठलाना होगा,
कानों को चीरती
अप्रिय आवाजों को भुलाना होगा,
मन पर पड़ी अवसाद की
शिलाओं को सरकाना होगा,
दुखों के तराने ज़माने को नहीं भाते
कंठ में जोश का स्वर भर
कोई मनभावन ओजस्वी गीत
आज तम्हें सुनाना होगा !
ऐ सूरज
आज मुझे अपने तन से काट
थोड़ी सी ज्वाला दे दो
मुझे अपने ह्रदय में विद्रोह
की आग दहकानी है,
मुझे बादलों की गर्जन से,
सैलाब के उद्दाम प्रवाह से,
गुलाब के काँटों की चुभन से
और सागर की उत्ताल तरंगों की
भयाक्रांत कर देने वाली
वहशत से बहुत सारी
प्रेरणा लेनी है !
अब मुझे श्रृंगार रस के
कोमल स्वरों में
संयोग वियोग की
कवितायें नहीं कहनी
वरन् सम्पूर्ण बृह्मांड में
गूँजने वाले
वीर रस के ओजस्वी स्वरों में
जन जागरण की
अलख जगानी है !
और सबसे पहले
स्वयं को नींद से जगाना है !

साधना वैद

12 comments :

  1. साधनाजी आपकी रचनाये..... अपने आप में एक जीवन दर्शन होती हैं.......
    यह पंक्तियाँ भी पसंद आयीं... हमेशा की तरह

    ReplyDelete
  2. मन में ओजस्वी भावनाओं को उभारती बहुत सुंदर भाव लिए रचना |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  3. सुंदर भाव लिए रचना |
    हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.

    ReplyDelete
  4. कंठ में जोश का स्वर भर
    कोई मनभावन ओजस्वी गीत
    आज तम्हें सुनाना होगा !
    सही सन्देश है साधना जी आपकी कवितायें हमेशा अच्छा सन्देश देती हैं। बधाई।

    ReplyDelete
  5. बीना शर्माOctober 25, 2010 at 10:09 AM

    आज आपकी रचना से े मुझे बहुत प्रसन्नता हुई सच ही यह ज्वाला तो बहुत पहले जग जानी चाहिए थी अब जब जागे तभी सवेरा
    आपकी भावनाओ को शत-शत नमन

    ReplyDelete
  6. और सबसे पहले
    स्वयं को नींद से जगाना है !

    जीवन दर्शन को दर्शाती बेहद सुन्दर कविता और आखिरी पंक्तियाँ इस कविता की जान है जिस दिन खुद को इंसान जगा लेगा सूर्योदय हो जायेगा्।

    ReplyDelete
  7. और सबसे पहले
    स्वयं को नींद से जगाना है !
    बस यही...सबसे महत्वपूर्ण है...सब खुद को जगा लें तो एक नए राष्ट्र का निर्माण दूर नहीं..
    जोश से भर देने वाली एक ओजस्वी कविता

    ReplyDelete
  8. आत्मविश्वास और सकारात्मता का सार्थक सन्देश देती प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी .....धन्यवाद !

    ReplyDelete
  9. इस सार्थक और प्रेरक रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...

    नीरज

    ReplyDelete
  10. सभी सहृदय पाठकों की आभारी हूँ मेरा उत्साहवर्धन करने के लिये ! बहुत बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete
  11. ऐ सूरज
    आज मुझे अपने तन से काट
    थोड़ी सी ज्वाला दे दो
    मुझे अपने ह्रदय में विद्रोह
    की आग दहकानी है,

    भावों में जोश है ....कुछ कर गुजारने की इच्छा ...लेकिन यह आग मन के अन्दर से निकलती तो ज्यादा जोशीली होती ...क्यों की यहाँ भी किसी अन्य (सूरज) पर निर्भर हो रही है आग ...

    ReplyDelete