अब से
आँखों के आगे पसरे
मंज़रों को झुठलाना होगा,
कानों को चीरती
अप्रिय आवाजों को भुलाना होगा,
मन पर पड़ी अवसाद की
शिलाओं को सरकाना होगा,
दुखों के तराने ज़माने को नहीं भाते
कंठ में जोश का स्वर भर
कोई मनभावन ओजस्वी गीत
आज तम्हें सुनाना होगा !
ऐ सूरज
आज मुझे अपने तन से काट
थोड़ी सी ज्वाला दे दो
मुझे अपने ह्रदय में विद्रोह
की आग दहकानी है,
मुझे बादलों की गर्जन से,
सैलाब के उद्दाम प्रवाह से,
गुलाब के काँटों की चुभन से
और सागर की उत्ताल तरंगों की
भयाक्रांत कर देने वाली
वहशत से बहुत सारी
प्रेरणा लेनी है !
अब मुझे श्रृंगार रस के
कोमल स्वरों में
संयोग वियोग की
कवितायें नहीं कहनी
वरन् सम्पूर्ण बृह्मांड में
गूँजने वाले
वीर रस के ओजस्वी स्वरों में
जन जागरण की
अलख जगानी है !
और सबसे पहले
स्वयं को नींद से जगाना है !
साधना वैद
साधनाजी आपकी रचनाये..... अपने आप में एक जीवन दर्शन होती हैं.......
ReplyDeleteयह पंक्तियाँ भी पसंद आयीं... हमेशा की तरह
मन में ओजस्वी भावनाओं को उभारती बहुत सुंदर भाव लिए रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
सुंदर भाव लिए रचना |
ReplyDeleteहम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
कंठ में जोश का स्वर भर
ReplyDeleteकोई मनभावन ओजस्वी गीत
आज तम्हें सुनाना होगा !
सही सन्देश है साधना जी आपकी कवितायें हमेशा अच्छा सन्देश देती हैं। बधाई।
आज आपकी रचना से े मुझे बहुत प्रसन्नता हुई सच ही यह ज्वाला तो बहुत पहले जग जानी चाहिए थी अब जब जागे तभी सवेरा
ReplyDeleteआपकी भावनाओ को शत-शत नमन
और सबसे पहले
ReplyDeleteस्वयं को नींद से जगाना है !
जीवन दर्शन को दर्शाती बेहद सुन्दर कविता और आखिरी पंक्तियाँ इस कविता की जान है जिस दिन खुद को इंसान जगा लेगा सूर्योदय हो जायेगा्।
और सबसे पहले
ReplyDeleteस्वयं को नींद से जगाना है !
बस यही...सबसे महत्वपूर्ण है...सब खुद को जगा लें तो एक नए राष्ट्र का निर्माण दूर नहीं..
जोश से भर देने वाली एक ओजस्वी कविता
आत्मविश्वास और सकारात्मता का सार्थक सन्देश देती प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी .....धन्यवाद !
ReplyDeleteइस सार्थक और प्रेरक रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
सभी सहृदय पाठकों की आभारी हूँ मेरा उत्साहवर्धन करने के लिये ! बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeletebehad khoobsurat rachna.wah.
ReplyDeleteऐ सूरज
ReplyDeleteआज मुझे अपने तन से काट
थोड़ी सी ज्वाला दे दो
मुझे अपने ह्रदय में विद्रोह
की आग दहकानी है,
भावों में जोश है ....कुछ कर गुजारने की इच्छा ...लेकिन यह आग मन के अन्दर से निकलती तो ज्यादा जोशीली होती ...क्यों की यहाँ भी किसी अन्य (सूरज) पर निर्भर हो रही है आग ...