तुम्हारी यादों का सिरहाना लगाये,
तुम्हारे ख्यालों की चादर को
कस कर अपने जिस्म से लपेटे,
तुम्हारी छवि को आँखों में बसाये,
तुम्हारी बातों की रातरानी सी
महकती भीनी-भीनी खुशबू की
स्मृति से मन प्राण को
आप्लावित कर,
तुम्हारी आवाज़ के अमृत से
अपनी आत्मा को सींचती हूँ !
जाने कितने मुकाम उम्र के
अब तक पार कर लिये हैं
याद नहीं !
किसी मंदिर में प्रज्वलित
अखण्ड ज्योति की तरह
अपने मन के निर्जन कक्ष में
शाश्वत अकम्पित लौ की तरह
मैं सदियों से हर पल
हर लम्हा आज भी प्रदीप्त हूँ
कभी ना बुझने के लिये
और हर क्षण राख बन
स्वयं को उत्सर्जित
करने के लिये !
साधना वैद
मैं सदियों से हर पल
ReplyDeleteहर लम्हा आज भी प्रदीप्त हूँ
कभी ना बुझने के लिये
और हर क्षण राख बन
स्वयं को उत्सर्जित
करने के लिये !
ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावी हैं।
सादर
हर लम्हा आज भी प्रदीप्त हूँ
ReplyDeleteकभी ना बुझने के लिये
और हर क्षण राख बन
स्वयं को उत्सर्जित
करने के लिये !
यही मान के भाव ज़िंदगी जीने कि प्रेरणा बने रहते हैं ..बहुत खूबसूरत शब्दों में भावों को बाँधा है
Bahut sundar kavita. Dil se nikli huyee.
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों से सजी सुन्दर कविता.
ReplyDeletegehre arth ki sunder rachna.........
ReplyDeleteइस कविता में प्रतीकों का प्रयोग बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteकुछ मधुर यादें और जिजीविषा के मंथन से उपजे हैं इतने सुंदर भाव...!!
ReplyDeleteबधाई इस रचना के लिए..!!
खूबसूरत शब्द, मधुर यादें, जीवन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा देती सुमधुर प्रस्तुति
ReplyDeleteहर लम्हा आज भी प्रदीप्त हूँ कभी ना बुझने के लिये
ReplyDeleteऔर हर क्षण राख बन स्वयं को उत्सर्जित करने के लिये !
प्रतीकों का प्रयोग बहुत अच्छा है.
हर पल हर लम्हा ,आज भी प्रदीप्त हूँ कभी न बुझने के लिए और हर क्षण राख बन स्वयम को उत्सर्जित करने के लिए "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और शब्द चयन |
बधाई
आशा
अपने मन के निर्जन कक्ष में
ReplyDeleteशाश्वत अकम्पित लौ की तरह
मैं सदियों से हर पल
हर लम्हा आज भी प्रदीप्त हूँ
बहुत ही सुन्दर ये पंक्तियाँ तो कमाल कि हैं..आपकी लेखनी अक्सर चमत्कृत कर देती हैं...कैसे कैसे अनछुए भावों को आप शब्द दे देती हैं...बहुत ही उत्कृष्ट रचना...
apka shabd chayan to hamesha hi kamaal ka rahta hai. bahut sunder komal bhaavo ko shabdo rupi motiyo se saja ka sunder mala banayi hai.
ReplyDeleteतुम्हारी बातों की
ReplyDeleteरातरानी सी महकती
भीनी-भीनी खुशबू
क्या बात है, उपमा अलंकार का विलक्षण प्रयोग| अर्थ तो एक ही है इन पंक्तियों का, पर भाव सम्प्रेषण विविधता दिखा रहा है| कविताओं में भी जादू होता है, यदि हम ध्यान से देखें तो|
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteमैं सदियों से हर पल
ReplyDeleteहर लम्हा आज भी प्रदीप्त हूँ
कभी ना बुझने के लिये
और हर क्षण राख बन
स्वयं को उत्सर्जित
करने के लिये !
इन पंक्तियों मे पूरी कविता का सार आ गया………बहुत सुन्दर्।
अद्भुत कृति भावनाओं से ओतप्रोत रचना बधाई
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