हे भक्तों
यह कैसी साँसत में तुमने मुझे डाला है
आज तो तुमने मेरे नाम और
मेरे अस्तित्व को ही
कसौटी पर परखने के लिये
मुझे ही ज़हर के समुद्र में
पटक डाला है !
समुद्र मंथन के समय
समुद्र से निकले हलाहल का
देवताओं के अनुरोध पर जग हित में
मैंने पान तो अवश्य किया था
लेकिन मेरे हिस्से में
आजीवन विष ही विष आएगा
यह आकलन मैंने कब किया था !
जगत वासियों तुमने तो संसार में
भाँति-भाँति के विष बनाने की
अनगिनत रसायनशालायें खोल डाली हैं ,
हलाहल से पूर्णत: सिक्त मेरे कंठ की
सीमा और विस्तार को भी तो जानो
इसमें बूँद भर भी
और समाने के लिये
ज़रा सी भी गुंजाइश
क्या और निकलने वाली है ?
तरह-तरह के अनाचार, अत्याचार ,
दुराचार, व्यभिचार, लोभाचार
भ्रष्टाचार और पापाचार
के रिसाव से यह जग भरता जाता है ,
और इतना अधिक विष
अपने कंठ में सम्हाल न पाने की
मेरी असमर्थता को संसार के सामने
उजागर करता जाता है !
मेरा कंठ ही नहीं आज इस
विष स्नान से मैं सम्पूर्ण ही
नीला हो चुका हूँ ,
और अपनी अक्षमताओं के बोझ तले
अपराध बोध से ग्रस्त हो
अपनी ही दृष्टि में
गिर चुका हूँ !
अगर यही हाल रहा तो
हे जगत वासियों
नीलकंठ होने के स्थान पर
मैं विष के इस नीले सागर में
समूचा ही डूब जाउँगा ,
और अगर विष वमन का
तुम्हारा यह अभियान अब नहीं रुका तो
इस देवलोक को छोड़
अन्यत्र कहीं चला जाउँगा
और इस जगत की रक्षा के लिये
फिर कभी लौट कर नहीं आउँगा !
साधना वैद
शिव शिव ...
ReplyDeleteमानव के आगे तो वह भी लाचार है !
मनुष्य के आगे तो सब ने हाथ टेक दिए हैं |
ReplyDeleteभगवान भी देखना चाहता है इस का अंत क्या होगा |
अभी जरूर वह मूक दर्शक बना हुआ है पर उसकी लाठी बेआवाज होती है |
अच्छी प्रस्तुति |
बधाई |
आशा
वाकई इस विष वमन से तो शंकर भी पीड़ित हो उठें
ReplyDeleteसही कहा मानव के अत्याचारो से आज देवता भी त्रस्त हो गये हैं।
ReplyDeleteआज कितना विष व्याप्त है शिव के बिम्ब से आपने बहुत अच्छे से दर्शाया है .. बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteएकदम नई सोच लिए रचना...सचमुच...आज इस संसार का हाल देख...भगवान भी कुपित और दुखी होंगे..
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
शिव बह्ग्वान पर लिखा हुई ये कविता , बहुत कुछ कहती है हम सभी से .. बहुत सुन्दर लिखा है आपने .. बधाई
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
shiv ko bimb bana kar sahi udghosh kiya hai...aisi hi rachnao ki jarurat hai jo kaise bhi to utsaah bhare..logo ko apne kartavvyon ka aabhas karaye.
ReplyDeletesunder shabd shaili me dhali prabhavshaali rachna.
बेहतरीन।
ReplyDelete------
कल 08/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मैं तो शिवजी के इस चित्र पर मुग्ध हो गया हूँ । किसका बनाया हुआ चित्र है यह ?
ReplyDeleteNice .
ReplyDelete‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘(Every Monday) में।
आप सादर आमंत्रित हैं।