अहिंसा में कितनी ताकत होती है और शान्ति और प्रेम का कवच कितना कारगर होता है अन्ना के आंदोलन ने इस बात को सिद्ध कर दिया है ! बात बात पर उग्र होकर भड़क जाने वाली हमारी जनता ने नि:शस्त्र विरोध की शक्ति को पहचान लिया है और इसका सम्पूर्ण श्रेय युग पुरुष अन्ना हजारे जी को जाता है ! आश्चर्य नहीं होता आपको को हर पल गिरगिट की तरह रंग बदलते सियासी चेहरों की वादा खिलाफी, विश्वासघात और धोखेबाजी के प्रमाण सामने आने के बाद भी लाखों की संख्या में उपस्थित किसी भी व्यक्ति ने अपना आपा नहीं खोया ! किसीने तैश में आकर एक कंकड भी नहीं फेंका और किसीने भी कहीं पर कोई दंगा फसाद नहीं किया ! यह आंदोलन सिर्फ दिल्ली में ही नहीं हो रहा था बल्कि भारत के हर शहर हर गाँव में व्यापक रूप से फैला हुआ था ! यहाँ तक कि इस आंदोलन का उजाला तो विश्व के सुदूर स्थित अनेकों देशों तक फैला हुआ था ! लेकिन कहीं से भी हिंसा की कोई भी खबर नहीं आई ! क्या यह एक अभूतपूर्व एवं चमत्कारिक घटना नहीं है ! जबकि यहाँ तो कुछ वर्षों से यही परम्परा सी हो गयी है कि ज़रा ज़रा सी बात पर उत्तेजित होकर चुटकियों में बसों में आग लगा दी जाती है, कारों के शीशे तोड़ दिए जाते हैं, विरोधियों के पुतले फूंके जाते हैं और सड़कों पर घंटों के लिये मीलों लंबे जाम लगा दिए जाते हैं ! यह करिश्मा एक गांधीवादी तथा दृढ़ इच्छाशक्ति वाले आत्मजयी नेता की नसीहतों एवं मार्गदर्शन का परिणाम है !
इस आंदोलन ने लोगों को यह सिखलाया है कि संयम और शान्ति के साथ विवेकपूर्ण आचरण करके ही अपनी माँगों को मनवाया जा सकता है उग्र होकर नहीं ! जब तक आप क़ानून अपने हाथ में नहीं लेते आप सर्वशक्तिमान हैं लेकिन क़ानून का उल्लंघन करते ही आप अपनी सारी शक्ति खो बैठते हैं और अपने विरोधी के हाथों में सारी ताकत सौंप देते हैं ! कानून तोड़ते ही आप अपराधी बन जाते हैं और पुलिस आपको किसी ना किसी धारा के अंतर्गत निरुद्ध कर गिरफ्तार कर ले जाती है ! आपकी इन्साफ की लड़ाई को यहीं विराम लग जाता है और सही होने के बावजूद आप गुनाहगार सिद्ध हो जाते हैं और गलत होने के बावजूद आपका विरोधी सबकी सहानुभूति लूट कर ले जाता है और जीत उसके हिस्से में आ जाती है ! लेकिन जब आप विरोधी के आक्रमण को शान्ति एवं संयम के साथ झेल लेते हैं तो उस थोड़े से समय के लिये तो आपको अन्याय सहना पड़ जाता है लेकिन विरोधी अपनी सारी ताकत उसी समय खोकर पूरी तरह से असहाय हो जाता है ! अन्ना ने शान्ति के साथ अहिंसात्मक विरोध का जो नुस्खा जनता को थमा दिया है उसने उन्हें भली प्रकार सिखा दिया है कि जब तक वे संयमित एवं शांत रहेंगे अपनी हर गलती, हर भूल का खामियाजा स्वयं विरोधी को ही भुगतना पड़ेगा ! अन्ना को बेवजह बिना किसी गलती के जेल में डालना हार के रास्ते पर विरोधी का पहला कदम था और अन्ना का निर्विरोध चुपचाप जेल में चले जाना जीत की राह पर अन्ना का पहला कदम था ! भारतवासियों की ही नहीं वरन सारे विश्व की सहानुभूति अन्ना के साथ उसी पल हो गयी और हर ओर से पैनी प्रतिक्रियाएं आनी आरम्भ हो गयीं ! सरकार को सबकी तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा ! हडबडाहट में वे एक के बाद एक गलतियाँ करते रहे और जनता तथा अन्ना हँसते मुस्कुराते, गीत गुनगुनाते और भजन गाते हुए और देशभक्ति की अलख जगाते हुए शांति के साथ उन्हें मुँह की खाते हुए देखते रहे ! बारह दिनों तक सिलसिलेवार इसी तरह की गलतियाँ दोहराई जाती रहीं और हर बार अन्ना व जनता के संयम और धैर्य के सामने सरकारी नुमाइंदे निरस्त्र होते रहे और अपने शब्दों को खुद ही चबाते रहे ! कहीं कोई पुतला नहीं जला, कहीं कोई बस नहीं जली, कहीं कोई रेल नहीं रोकी गयी और जीत जनता की झोली में आ गिरी ! क्या इस जीत का जश्न मनाने का आनंद अलौकिक नहीं है !
अहिंसा का अस्त्र गांधीजी ने भी अपनाया था और इसी अस्त्र का सहारा लेकर उन्होंने देश को विदेशी ताकतों से मुक्त करा कर भारत को स्वतन्त्रता की सौगात दिलवा दी ! वे भी अहिंसा के प्रबल समर्थक थे और उग्र और हिंसात्मक विरोध के सख्त खिलाफ थे ! लेकिन अहिंसा और कायरता में क्या फर्क है इसे भी समझना बहुत ज़रूरी है ! गाँधी जी ने भी एक स्थान पर दृढता के साथ कहा था कि यदि कायरता और हिंसा में चुनाव करने की आवश्यकता पड़ेगी तो वे हिंसा का चुनाव करेंगे कायरता का नहीं ! आत्मविश्वास, निर्भीकता, संयम, सुस्थिरता तथा दृढ़ता का सूत्र थाम कर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है ! और इतिहास गवाह है कि हमने अपनी स्वतंत्रता इसी सूत्र को थाम कर प्राप्त की थी ! तब गांधीजी ने हमारा नेतृत्व किया था ! आज अन्ना हमारा नेतृत्व कर रहे हैं और हमें उनके मार्गदर्शन का मान रख कर उनके बताए रास्ते पर चलना चाहिये ! देश के लिये अपनी जान भी कुरबान कर देने का जज्बा हमारे मन में होना चाहिये ! दुश्मन को धूल चटाने के लिये अपने अस्त्रों की धार भी पैनी करनी होगी ! पर याद रहे ये अस्त्र अहिंसा का होना चाहिये हिंसा का नहीं !
जय भारत ! वंदे मातरम् !
साधना वैद
अहिंसा में कितनी ताकत होती है और शान्ति और प्रेम का कवच कितना कारगर होता है अन्ना के आंदोलन ने इस बात को सिद्ध कर दिया है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख ... अभी काम पूरा नहीं हुआ है ... सरकार कब पलट जाए कुछ नहीं कहा जा सकता ..स्टैंडिंग कमेटी क्या स्टैंड लेती है यह देखना बाकी है ... पर इसका अंदाजा हो गया की जनता चाहे तो कुछ भी कर सकती है ... आज जनता को विश्वास हुआ है अन्ना में ... नेताओं से तो धोखा ही मिला है .. अब यह विश्वास जनता को खुद में पैदा करना है तभी यह आंदोलन सफल होगा
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख ... सच है जनता जाग गई है अब उसे किसी राजनितिक दल के नेतृत्व की आवश्यकता नहीं रही... अहिंसा के रास्ते पर चलकर जनता सच्चाई के लिए लड़ भी सकती है और जीत भी...
ReplyDeleteसहमत हूँ मै भी आपसे !
ReplyDeleteबहुत सार गर्भित लेख |जनता की आवाज में बहुत ताकत है |अहिंसा का अपना महत्त्व है |
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा |
बधाई इस लेख के लिए
आशा
बढ़िया लेख .सहमत हूँ आपसे .
ReplyDeleteसुन्दर और अर्थपूर्ण आलेख , आपकी विचारधारा इस समय जन जन की विचारधारा है और ये रंग लाएगी जरूर.
ReplyDeleteये तो एक पडाव है अभी मंज़िल बहुत दूर है।
ReplyDeleteआज 29 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बहुत अच्छा आकलन... सारगर्भित लेख.
ReplyDeleteअहिंसा की ताकत तो पूरे विश्व ने देख ली..
ReplyDeleteलाखों की भीड़ किस तरह स्व-विवेक से नियंत्रित रही और किसी तरह की हिंसा में नहीं लिप्त हुई...काबिल-ए-तारीफ़ है.
बहुत ही सारगर्भित...सामयिक आलेख.
बहुत बढ़िया लेख बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteबहुत सार्थक आलेख..आज जनता का अहिंसा में फिर विश्वास जागा है..
ReplyDeleteजैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
ReplyDeleteदुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
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