मैंने तो अपना सब कुछ तुम पर हारा था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
जाने कितने सपनों का मन पर साया था ,
जाने कितने नगमों में तुमको गाया था ,
जाने क्यों हर मंज़र में तुमको पाया था ‘
जाने क्यों बस नाम तुम्हारा दोहराया था ,
मैंने तो अपना हर सुख तुम पर वारा था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
जाने कितनी रातें आँखों में काटी थीं ,
जाने कितनी पीड़ा लम्हों में बाँटी थी ,
जाने कितने अश्कों की माला फेरी थी ,
जाने कितने किस्सों में चर्चा तेरी थी ,
तुमने था जो दर्द दिया मुझको प्यारा था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
दुःख ने जैसे दिल का रस्ता देख लिया है ,
अश्कों ने आँखों में रहना सीख लिया है ,
मन के सूने घर में बस अब मैं रहती हूँ ,
अपनी सारी व्यथा कथा खुद से कहती हूँ ,
बाँटोगे हर सुख दुःख कहा तुम्हारा ही था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
अब न किसीसे मिलने को भी मन करता है ,
अब न किसीसे कहने को कुछ दिल कहता है ,
अब मुझको प्यारी है अपनी ये तनहाई ,
सूनापन , रीतापन अपनी ये रुसवाई ,
मिटा न पाई बस जो, नाम तुम्हारा ही था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
साधना वैद
दुःख ने जैसे दिल का रस्ता देख लिया है ,
ReplyDeleteअश्कों ने आँखों में रहना सीख लिया है ,
मन के सूने घर में बस अब मैं रहती हूँ ,
अपनी सारी व्यथा कथा खुद से कहती हूँ ,
बहुत ही भावुक रचना..... हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर...लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteआज कि प्रस्तुति पर तो कुछ कहा ही नहीं जा रहा ... शब्द शब्द बस महसूस हो रहा है ..
ReplyDeleteअश्कों की माला पाठक की आँखें नम करने में सक्षम है ... मन को छू गयी यह रचना ...
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ReplyDeleteमन को छू गयी आप की रचना ..कुछ लाइन याद आ गयीं पढ़ते पढ़ते ..
ReplyDeleteयही वफ़ा का सिला है तो कोई बात नहीं ....
तुम्हीं ने दर्द दिया है तो कोई बात नहीं ...!!
साधना जी आज तो आपने निशब्द कर दिया यूँ लगा जैसे हर दिल की बात कह दी हो……………जैसे हर स्त्री के मन को उजागर कर दिया हो……………बेहतरीन भावुक रचना।
ReplyDeleteमैंने तो अपना हर सुख तुम पर वारा था ,
ReplyDeleteतुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
बहुत सुंदर,लाजवाब, भावुक रचना. हार्दिक बधाई।
अपनी यह तन्हाई यह सूना पन रीता पन
ReplyDeleteअपनी यह रुसवाई मिटा न पाई बस वह नाम तुम्हारा था '
बहुत गहरे भाव और शब्द दिल को छू गए |
बधाई |
आशा
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे
दुःख ने जैसे दिल का रस्ता देख लिया है ,
ReplyDeleteअश्कों ने आँखों में रहना सीख लिया है ,
मन के सूने घर में बस अब मैं रहती हूँ ,
अपनी सारी व्यथा कथा खुद से कहती हूँ ,
बहुत ही भावपूर्ण रचना
Aapki rachana padkar mahadevi verma
ReplyDeleteki 'main neer bhari dukh ki badli' yaad ho aai
sundar rachana ke liye badhai.
बहुत खुबसूरत, लाज़वाब करती भावुक रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई...
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteअदभुद कविता...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्क्ति...
ReplyDeleteअब मुझको प्यारी है अपनी ये तनहाई ,
ReplyDeleteसूनापन , रीतापन अपनी ये रुसवाई ,
मिटा न पाई बस जो, नाम तुम्हारा ही था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
अति सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ..हार्दिक शुभ कामनाएं !!!
behtreen...
ReplyDeleteमनोभावों को वेग देती सुंदर प्रस्तुति पर बधाई देना कम लग रहा है
ReplyDeleteनमन
मिटा न पाई बस जो, नाम तुम्हारा ही था ,
ReplyDeleteतुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
हार्दिक शुभ कामनाएं !!!
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ReplyDeleteअब न किसीसे मिलने को भी मन करता है ,
ReplyDeleteअब न किसीसे कहने को कुछ दिल कहता है ,
अब मुझको प्यारी है अपनी ये तनहाई ,
सूनापन , रीतापन अपनी ये रुसवाई ,
मिटा न पाई बस जो, नाम तुम्हारा ही था
अथाह दर्द सह लेने के बाद ऐसी ही कुछ हालत होना वाजिब है.
कब तक कोइ नीर बहायेगा...एक दिन तो दर्द ही दोस्त बन जायेगा.
अब क्या कहूँ साधना जी जब जिसको कहना था उसने कुछ नहीं कहा तो अब हम क्या कहते.इतना दर्द वो भी जाना पहचाना सा कुछ सुनने की आस और कहीं बस मौन. वाह!!!! वाह!!! वाह!!!! और क्या कहूँ.इतनी खूबसूरत कृति पर मेरी बधाई स्वीकारें
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