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Wednesday, August 24, 2011

एक आम आदमी की कहानी

अन्ना हजारे जी के राष्ट्रव्यापी आंदोलन ने कितने भुक्तभोगियों के ज़ख्मों पर मरहम लगाया है और उनका यह अभियान कब सफल होगा यह कहना तो मुश्किल है लेकिन करोड़ों भारतीयों की पीड़ा को, जो भ्रष्टाचार की गिरफ्त में फँस कर भौतिक नुकसान उठाने के साथ साथ अपना सुख चैन और शान्ति भी गँवा चुके हैं, को उन्होंने आवाज़ अवश्य दी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता ! आज आपके सामने अपनी एक पुरानी पोस्ट प्रस्तुत कर रही हूँ जो शब्दश: शत प्रतिशत सत्य है !

जीवन
के महासंग्राम में दिन रात संघर्षरत एक आम इंसान के कटु अनुभव से अपने सुधी पाठकों को अवगत कराना चाहती हूं और अंत में उनके अनमोल सुझावों की भी अपेक्षा रखती हूँ कि उन विशिष्ट परिस्थितियों में उस व्यक्ति को क्या करना चाहिये था ।
मेरे एक पड़ोसी के यहाँ चोरी हो गयी । चोर घर में ज़ेवर, नकदी और जो भी कीमती सामान मिला सब बीन बटोर कर ले गये । पड़ोसी एक ही रात में लाखपति से खाकपति बन गये । उस वक़्त उनको जो आर्थिक और मानसिक हानि हुई उसका अनुमान लगाना तो मेरे लिये मुश्किल है लेकिन उसके बाद उन्हें सालों जो कवायद करनी पड़ी और जिस तरह से न्याय पाने की उम्मीद में वे पुलिस की दुराग्रहपूर्ण कार्यप्रणाली की चपेट में आकर थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा लगा कर चकरघिन्नी बन गये इसे मैने ज़रूर देखा है । चोरी की घटना के बाद उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखा दी । तीन चार दिन तक लगातार जाँच की प्रक्रिया ‘ सघन ‘ रूप से चली । परिवार के सदस्यों सहित सारे नौकर चाकर और पड़ोसियों तक के कई कई बार बयान लिये गये । फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट, फोटोग्राफर्स के दस्तों ने कई बार घटनास्थल पर फैले बिखरे सामान, अलमारियों के टूटे तालों, और टूटे खिड़की दरवाज़ों का निरीक्षण परीक्षण किया । नगर के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकार पड़ोसी के ड्राइंग रूम में सोफे पर आसीन हो घटना की बखिया उधेड़ने में लगे रहे । इस सबके साथ साथ इष्ट मित्र , रिश्तेदार और पास पड़ोसी भी सम्वेदना व्यक्त करने और अपना कौतुहल शांत करने के इरादे से कतार बाँधे आते रहे और चाय नाश्ते के दौर चलते रहे ।
अंततोगत्वा इतनी कवायद के बाद इंसपेक्टर ने अज्ञात लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर मुकदमा दायर कर दिया । पड़ोसी महोदय ने चैन की साँस ली । उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अभी बेटी के ब्याह से फारिग हुए हैं । अब पुलिस वाले चंद दिनों में चोरों को पकड़ लेंगे और चोरी गये सामान की रिकवरी हो जायेगी और सब कुछ ठीक हो जायेगा । उन्हें क्या पता था कि असली मुसीबत तो अब पलकें बिछाये उनकी प्रतीक्षा कर रही है ।
क़ई दिन की उठा पटक के बाद उन्होंने चार पाँच दिन बाद ऑफिस की ओर रुख किया । मेरे पड़ोसी एक प्राइवेट कम्पनी में प्रोडक्शन इंजीनियर हैं । इतने दिन की अनुपस्थिति के कारण कम्पनी के काम काज का जो नुक्सान हुआ उसकी वजह से उन्हें बॉस का भी कोप भाजन बनना पड़ा । खैर जैसे तैसे उन्होंने पटरी से उतरी गाड़ी को फिर से पटरी पर चढ़ाने की कोशिश की और अपने सारे दुख को भूल फिर से जीवन की आपाधापी में संघर्षरत हो गये ।
लेकिन अब एक कभी ना टूटने वाला कोर्ट कचहरी का सिलसिला शुरु हुआ । आरम्भ में हर हफ्ते और फिर महीने में दो – तीन बार केस की तारीखें पड़ने लगीं । हर बार वे ऑफिस से छुट्टी लेकर बड़े आशान्वित हो कोर्ट जाते कि इस बार कुछ हल निकल जायेगा लेकिन हर बार बाबू लोगों की जमात और वकीलों के दल बल को चाय पानी पिलाने के चक्कर में और सुदूर स्थित कचहरी तक जाने के लिये गाड़ी के पेट्रोल का खर्च वहन करने में उनके चार - पाँच सौ रुपये तो ज़रूर खर्च हो जाते लेकिन केस में कोई प्रगति नहीं दिखाई देती । केस की तारीख फिर आगे बढ़ जाती और वे हताशा में डूबे घर लौट आते । यह क्रम महीनों तक चलता रहा ।
परेशान होकर पड़ोसी ने पेशी पर कोर्ट जाना बन्द कर दिया । चोरी की घटना बीते तीन साल हो चुके थे । ना तो किसी सामान की बरामदगी हुई थी ना ही कोई चोर पकड़ में आया था । चोरी के वाकये को वे एक बुरा सपना समझ कर सब भूल चुके थे और नये सिरे से जीवन समर में कमर कस कर जुट गये थे कि अचानक कोर्ट से नोटिस आ गया कि मुकदमें की पिछली तीन तारीखों पर पड़ोसी कोर्ट में नहीं पहुँचे इससे कोर्ट की अवमानना हुई है और अगर वे अगली पेशी पर भी कोर्ट नहीं पहुँचेंगे तो उनके खिलाफ सम्मन जारी कर दिया जायेगा । ज़िसने चोरी की वह चोर तो आराम से मज़े उड़ा रहा था क्योंकि वह कानून की गिरफ्त से बाहर था और पुलिस तीन सालों में भी उसे पकड़ने में नाकाम रही थी । पर जिसका सब कुछ लुट चुका था वह तो एक सामाजिक ज़िम्मेदार नागरिक था वह कहाँ भागता ! इसीलिये उस पर नकेल कसना आसान था । लिहाज़ा उसे ही कानूनबाजी का मोहरा बनाया गया । अंधेर नगरी चौपट राजा ! नोटिस पढ़ कर पड़ोसी के होश उड़ गये । फिर भागे कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने । कई दिनों की कवायद के बाद अंततोगत्वा पाँच हज़ार रुपये की रिश्वत देकर उन्होने अपना पिंड छुड़ाया और अज्ञात चोरों के खिलाफ अपना मुकदमा वापिस लेकर इस जद्दोजहद को किसी तरह उन्होंने विराम दिया ।
अपने पाठकों से मैं उनकी राय जानना चाहती हूँ कि इन हालातों में क्या पड़ोसी को भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का दोषी माना जाना चाहिये ? अगर वे उसे ग़लत मानते हैं तो उसे मुसीबत का सामना कैसे करना चाहिये था इसके लिये उनके सुझाव आमंत्रित हैं जो निश्चित रूप से ऐसे ही दुश्चक्रों में फँसे किसी और व्यक्ति का मार्गदर्शन ज़रूर करेंगे ।

साधना वैद

16 comments :

  1. कल 25/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत खूब लिखा है |
    बधाई

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  3. बहुत सच लिखा है. यह आज का सच है, जिस का कोई उपाय नज़र नहीं आता.

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  4. नहीं जी नहीं.पडोसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
    यह सब हमारी व्यवस्था और लचर कानून की ही कमी है.विकट परिस्थिति में 'रणछोड' भी बनना पड़ जाता है.आप भी अपना मत प्रस्तुत करें.आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है.

    मेरे ब्लॉग पर भी आपका इंतजार है.

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  5. कोई प्रतिक्रया देने का प्रश्न तब उठता है जब मै कोई विकल्प सुझा सकू , पडोसी को रिश्वत देने से रोकूंगा तो बेचारे को न जाने कितने अपमान झेलने पड़ेंगे. हमारी व्यवस्था ही तो है जिसे बदलने के लिए उठे है हज़ारों हाथ, रामलीला मैदान में .जिसे बदलने के लिए अन्ना जान की बाज़ी लगा रहे है, आप भी उठे और पड़ोसी को भी उठने को कहें वरना देर हो जायेगी.

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  6. desh ki puri vyavastha itne bhrashtachar ke gart me doob chuki hai ki koi is keechad se bachna bhi chahe to raste se guzerne wale log hi jabardasti us bhrashtachaar ki keechad ki chheente daal jayenge...is case me bhi yahi baat nirdharit hoti hai....ki padosi imadari se bina bhrashtachar ke bina kisi daanv-pech ke ek acchhe nagrik ki tarah sabhi kartavy nibha raha tha...sabhi court dates attend kar raha tha...lekin vyavastha thi ki jab tak use us gart me kheench na leti uska apna hi imndar gala chhudana bhari pad jata...to kya karta rishwat deta ya itna apna rasook aur sayam rakhta ki ladta rahta is vyavastha se aur shayed zindgi saanjh hone tak use nyay mil jata.

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  7. ऐसी घटनाएं सच ही व्यवस्था पर उंगली उठाती हैं ... सही इंसान को भी भ्रष्टाचार करने पर मजबूर कर देती हैं ...आपकी पोस्ट पढ़ कर " धूप " मूवी याद हो आई है .. ओम् पूरी जैसा किरदार जो अंत तक पेट्रोल पम्प के लिए कोई रिश्वत नहीं देता मिलना मुश्किल है .. और पेट्रोल पम्प भी देश के लिए शहीद हुए जवान के लिए मिलना था ...
    आज भी देखिये तो सरकार आम जनता की बात सुनती नज़र नहीं आ रही ..वो स्वयं ही व्यवस्था में परिवर्तन नहीं चाहती ..जहाँ रिश्वत लेने के रास्ते खुले हैं वहीं ईमानदार आदमी को फंसाने के लिए रिश्वत को एक हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है ..

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  9. आज -कल परिस्थिति ही कुछ ऐसी हो गई है कि यह सब करना पड़ता है ......विचारणीय मुद्दा

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  10. बहुत सच लिखा है. यह आज का सच है, .विचारणीय सुन्दर पोस्ट....

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  11. नक्सलवादियों की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि उनकी अदालतों में यह तमाशा नहीं होता। केवल न्याय होता है और तुरंत होता है। जहां-जहां नक्सलवादियों की अदालतें लगती हैं वहां की सरकारी अदालतें ख़ाली पड़ी हैं और वकील बैठे हुए क़िस्मत को रो रहे हैं कि किसी की ज़िंदगी से खेलने का कोई मौक़ा हाथ ही नहीं आ रहा है।
    हमारी अजीब आफ़त है कि नक्सलवाद की तारीफ़ भी नहीं कर सकते और हिंदुस्तानी इंसाफ़ को दोष भी नहीं दे सकते लेकिन ज़ुबानों पर ताले लगा देने से सच बदल नहीं जाएगा।
    मैं अदालतों से मायूस हो चुका हूं और जब अपनी बहन की बढ़ती हुई उम्र की तरफ़ देखता हूं तो इरादा करता हूं कि ज़ालिमों से सुलह करके मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाए। कुछ वापस मिले या न मिले, उनसे तलाक़ ले ली जाए ताकि हम अपनी बहन की शादी कहीं और तो कर सकें।
    हम अदालतों की तरह लापरवाह नहीं हो सकते। हमें तो अपने रिश्ते और ज़िम्मेदारियां निभानी हैं। अदालतों को हमारी बहन की फ़िक्र न हो तो कोई बात नहीं उसका रिश्ता ही क्या है ?
    लेकिन हमें अपनी बहन की बेहतरी की फ़िक्र बहरहाल करनी ही है चाहे इसके लिए हमें ज़ालिमों के खि़लाफ़ उठाए गए अपने क़दम वापस ही क्यों न लेने पड़ें।
    ऐसा विचार अब पुख्ता हो चुका है और यह सब मेहरबानी है हमारी अदालतों की।यह वह जख्मे-दिल है जिसे मैं जगज़ाहिर नहीं करना चाहता था लेकिन करना पड़ा जब ईरानी अदालत के इंसाफ़ पर उंगली उठाई गई।
    अब आपके सामने इंसाफ़ के दो मॉडल हैं
    एक ईरानी मॉडल और दूसरा हिन्दुस्तानी मॉडल
    हिंदुस्तानी अदालतें इंसाफ़ कैसे करती हैं ?
    यह तो आपने देख ही लिया है।
    अब आप बताएं कि अगर यह इंसाफ़ है तो फिर ज़ुल्म किस चीज़ का नाम है ?
    ऐसे में ईरानी न्याय व्यवस्था से कुछ सीखा जा सके तो शायद इस मुल्क में भी मज़लूम को इंसाफ़ मिलने की राह हमवार हो सके वर्ना तो जो भी एक बार अदालत का तजर्बा कर लेता है वह इंसाफ़ से हमेशा के लिए मायूस हो जाता है बिल्कुल मेरी तरह।
    आप किसी भी अदालत में जाइये और अपनी बहन-बेटी के साथ इंसाफ़ की आस में भटक रहे लाखों लोगों में से किसी से भी पूछ लीजिए, मेरी बात की तस्दीक़ हो जाएगी।
    हिंदुस्तानी इंसाफ़ का काला चेहरा Andha Qanoon

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  12. एकदम सच सच और विचारणीय..पूरी व्यवस्था ही बदलना होगी.

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  13. पूरा ढांचा ही देश की व्यवस्था का चरमरा गया है.अन्ना लड़ाई तो लड़ रहे हैं.हम सब उनका साथ भी दे रहे हैं.अब देखिये क्या होता है.

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  14. इसी तरह की घटनाओं को ख़त्म करने का सपना देख रहे हैं,आज भारतवासी...कि सब अपने काम को ईमानदारी से अंजाम दें..और ऐसी स्थितियाँ पैदा ही ना हों...

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  15. हमारे देश की अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के कारण आम जनता की एक मुश्किल तो हल नहीं होती बल्कि चार अन्य समस्या घेर लेती है, ऐसे में वही विकल्प बचता है जो आपके पडोसी ने अपनाया। कारण है, निराशा और हताशा

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  16. घर में चोरी हुई, माल गया और ऊपर से अवमानना का नोटिस, भाई ये ही तो है अपना इंडिया

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