माना कि अब तक राष्ट्र हित में तुम सदा संलग्न थे , माना कि औरों की व्यथा से तुम समूचे भग्न थे , फिर ये बताओ देश चिंता को ग्रहण क्यों लग गया , जो था तुम्हारे आसरे वो आम जन क्यों ठग गया !
‘आम जन क्यों ठग गया’...यही तो अनुत्तरित प्रश्न है। बहुत सुन्दर...आभार। आप इतना सुन्दर लिखती हैं और हम आपसे अभी तक दूर रहे क्यूँ? पता नहीं...पर इसका हमें खेद है
जो था तुम्हारे आसरे वो
ReplyDeleteआम जन क्यों ठग गया !
हमारे अपने लालच के कारण .....!हमें उसकी अपेक्षा अपनी चिंता ज्यादा होती है इसलिए ...!
पहले आ. निर्मला दीदी, फिर आ. आशा दीदी और अब आप ने जिस जीवट भरी रचना धर्मिता का परिचय दिया है उस के लिए नमन
ReplyDelete"हरिगीतिका छन्द" के माध्यम से इस जबर्दस्त प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई
क्यों कि
ReplyDeleteअब अपना हित सर्वोपरी हो गया
राष्ट्र हित कहीं पीछे खिसक गया .
सार्थक चिंतन
gambhir magar sarthak prashn
ReplyDeleteउम्दा सोच
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
जबर्दस्त प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई|
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती.....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
ReplyDeleteआशा
aaj to gagar me sagar bhar diya.
ReplyDeletejahan bhi bharosa karo yahi milta hai.
auro ki chinta bata khud ka dukh hara jata hai.
‘आम जन क्यों ठग गया’...यही तो अनुत्तरित प्रश्न है। बहुत सुन्दर...आभार। आप इतना सुन्दर लिखती हैं और हम आपसे अभी तक दूर रहे क्यूँ? पता नहीं...पर इसका हमें खेद है
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक प्रश्न है आपका.
ReplyDeleteसोचने को विवश करता है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.
आज ओना हित ही सबसे आगे रहता है ... और उसका चिंतन खत्म हो तो राष्ट्र हित की बात हो ... प्रभावी ...
ReplyDeleteसार्थक प्रश्न.....
ReplyDelete"जो था तुम्हारे आसरे वो
आम जन क्यों ठग गया !"
शब्दों का सुन्दर संयोजन ..