तुम आते तो मन को ज्यों धीरज मिल जाता ,
रिसते ज़ख्मों पर जैसे मरहम लग जाता ,
सुधियों के सारे पंछी नभ में उड़ जाते ,
भावों के तटबंध टूट जैसे खुल जाते !
मन उपवन की मुरझाई कलिका खिल जाती ,
शब्दों को कविता की नव नौका मिल जाती ,
ह्रदय वाद्य पर जलतरंग जैसे बज जाती !
अंतर की सब पीड़ा गीतों में बह जाती ,
जीवन को जीने का ज्यों सम्बल मिल जाता ,
नयनों को सपने जीने का सुख मिल जाता ,
तुम आते तो धड़कन को साँसें मिल जातीं ,
भटके मन को मंजिल की राहें मिल जातीं !
ना आ पाये तब भी कोई बात नहीं है ,
मन मर्जी है यह कुछ शै और मात नहीं है ,
मैंने भी मन को बहलाना सीख लिया है ,
जो कुछ तुमने दिया उसे स्वीकार किया है !
सब कुछ कितना खाली-खाली सा लगता है ,
हर सुख हर सपना जैसे जाली लगता है ,
लेकिन मैंने छल को जीना सीख लिया है ,
विष पीकर अमृत बरसाना सीख लिया है !
साधना वैद
मन को छूती रचना |
ReplyDeleteलेकिन मैंने छल को जीना सीख लिया है ,
ReplyDeleteविष पीकर अमृत बरसाना सीख लिया है !
वाह,क्या बात है.
सुन्दर रचना.
वाह! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ... भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteलेकिन मैंने छल को जीना सीख लिया है ,
ReplyDeleteविष पीकर अमृत बरसाना सीख लिया है !
बहुत ही सुन्दर भाव...बड़ी कुशलता से सारे भाव समाहित हैं कविता में.
सरिता जैसा प्रवाह है कविता में.
आह! सुन्दर भावमय.
ReplyDeleteमन को छूती इस सुन्दर अभिव्यक्ति
के लिए बहुत बहुत आभार.
सब कुछ कितना खाली-खाली सा लगता है ,
ReplyDeleteहर सुख हर सपना जैसे जाली लगता है ,
लेकिन मैंने छल को जीना सीख लिया है ,
विष पीकर अमृत बरसाना सीख लिया है !
kayi bar dil ki khalish aisi bhaavnao par sir chadh kar bolti hai ki shabd-dar-shabd bhawnaayen aisa marmik roop le leti hain aur ham wah kahte hue bhool jate hain ki bhogne wale ne use kitna bhoga...
aapki har rachna aisi hi ek wah ki hakdar to hoti hai lekin ham sirf wah kah kar bhawnao par tali nahi thok sakte.
marm ko sparsh karti rachna.
सुन्दर भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है मन को छु गयी
ReplyDeleteसाधना जी ,
ReplyDeleteआज की रचना दो स्थितियों को जी रही है ... तुम आते तो ...ज़िंदगी में क्या क्या परिवर्तन हो जाते .. बहुत सुन्दर शब्दों में बंधे हैं आपने भाव ..भावों के तट बंधनों का खुलना संबल का मिलना ..सपने जीने का सुख ... यानि बहुत कुछ ...
नहीं आए तो निष्कर्ष पर पहुंचती हुयी भावनाएं ..बहुत खूबसूरती से अंतिम पंक्तियाँ कह दी हैं ...छल को जीना सीख लिया ..
सुन्दर शब्दों के चयन के साथ मन के भावों को खूबसूरती से उकेरा है ... सुन्दर प्रस्तुति
बहुत मनभावन और सशक्त रचना |
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन |"ना आ पाए तब भी कोइ बात नहीं
मन मर्जी है यह कोइ ---------जो कुछ तुमने दिया उसे स्वीकार किया है |बहुत सुन्दर पंक्तियाँ |
बहुत बहुत बधाई |
आशा
आपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.
ReplyDeleteमन उपवन की मुरझाई कलिका खिल जाती ,
ReplyDeleteशब्दों को कविता की नव नौका मिल जाती ,
ह्रदय वाद्य पर जलतरंग जैसे बज जाती !
अंतर की सब पीड़ा गीतों में बह जाती ,
जीवन को जीने का ज्यों सम्बल मिल जाता ,
नयनों को सपने जीने का सुख मिल जाता ,
तुम आते तो धड़कन को साँसें मिल जातीं ,
भटके मन को मंजिल की राहें मिल जातीं !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...
नई पुरानी हलचल से फिर आपकी इस पोस्ट पर आना हुआ.
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
"मैंने भी मन को बहलाना सीख लिया है ,
ReplyDeleteजो कुछ तुमने दिया उसे स्वीकार किया है !"
और उसके बाद है गहरी शान्ति.....!!
बहुत सुन्दर और मन को छूती रचना....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletejahan prem hai bahan koi shikwa gila nahi ho sakta..prem ke shashwat mulyon ko sthapit karti ek behtarin rachna hai...aap agar mere blog se judengi to main ise apna saubhagya manooga..aapne likha ki maine asantosh pragat nahi kiya...hamare desh me sahitya rachna ek parampara rahi hai..chote logon ko hamesha apne badon se kuch satat seekhna hi chahiye...asantosh to use hoga jo khud ko sirf guru maan baithega...main apne jeevan paryant ek shishy bana rahna chahta hoon..aaur aap badon se prasad me panjeeri aaur panchamrit bhi chahtaa hoon aaur kadwa dhatura bhi....sadar pranam ke sath
ReplyDelete