किस्सा कहा जो दर्द का वो सह न पायेंगे ,
हर इक बयाँ पे रोये बिना रह न पायेंगे !
हर रंग है जफा का मेरी दास्ताँ में दोस्त ,
इलज़ाम खुद पे एक भी वो सह न पायेंगे !
सदियों से जिन किलों में मेरी रूह कैद है ,
छोटे से एक छेद से वो ढह न पायेंगे !
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
आँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
बर्दाश्त हैं ज़ुल्म-ओ-सितम दुनिया के सब हमें ,
इक अश्क उनकी आँख में हम सह न पायेंगे !
हर लफ्ज़ है रूदाद मेरे दर्द की ए दोस्त ,
ना पूछिये कुछ और हम कुछ कह न पायेंगे !
साधना वैद
बर्दाश्त हैं ज़ुल्म-ओ-सितम दुनिया के सब हमें ,
ReplyDeleteइक अश्क उनकी आँख में हम सह न पायेंगे !
वाह ...बहुत खूब ।
एक अश्क उनकी आँख में हम सह न पाएगे
ReplyDeleteयह पंक्ति मन को छू गयी |
बहुत भाव पूर्ण रचना
आशा
बेहतरीन भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteहर रंग है जफा का मेरी दास्ताँ में दोस्त ,
ReplyDeleteइलज़ाम खुद पे एक भी वो सह न पायेंगे !
भाव पूर्ण रचना
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
ReplyDeleteआँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
...बहुत खूब! बेहतरीन अभिव्यक्ति..
बहुत ही सुंदर भाव की रचना
ReplyDeletekya baat hai aaj to lekhni ki syahi ka rang hi badla hua hai.
ReplyDeleteaji janaab kahiye to sahi ....vo na ashk bahayenge...
jafa karte the jo ab tak ....vafa pe utar aayenge.
नमस्ते मौसीजी, आपकी गजल दिल के बेहद करीब है,बिना कहे सब कह दिया आपने...................
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ReplyDelete♥
आदरणीया साधना मौसी जी
सादर प्रणाम !
अरे ! इतनी मुकम्मल ग़ज़ल !
… आनंद आ गया …
हर शे'र काबिले-ता'रीफ़ …
सदियों से जिन किलों में मेरी रूह कैद है ,
छोटे से एक छेद से वो ढह न पायेंगे !
फ़ौलाद में तब्दील जिन्हें वक़्त कर चुका ,
आंसू हमारी आंख से वो बह न पायेंगे !
वाह वाऽऽह्… ! क्या बात है !
अब तो आपके यहां भी ग़ज़लियात पढ़ने को मिलेगी …
अब आप भी एक मुकम्मल शायरा बन चुकी हैं :)
हार्दिक बधाई !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
ReplyDeleteआँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
कितना सच....दिल के बहुत करीब लगी , यह कविता....
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
ReplyDeleteआँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
-बहुत उम्दा रचना...
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
ReplyDeleteआँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
सभी शेर बीस हैं... बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
सादर बधाई....
बर्दाश्त हैं ज़ुल्म-ओ-सितम दुनिया के सब हमें ,
ReplyDeleteइक अश्क उनकी आँख में हम सह न पायेंगे !
दिल को छू गयी बहुत करीब से आपकी रचना...
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
ReplyDeleteआँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
बहुत खूब ... खूबसूरत गज़ल ...
बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।
ReplyDeleteBahut khub...
ReplyDeletehttp://www.poeticprakash.com/
हर पंक्तियाँ लाजबाब एवं उम्दा !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...!
बर्दाश्त हैं ज़ुल्म-ओ-सितम दुनिया के सब हमें ,
ReplyDeleteइक अश्क उनकी आँख में हम सह न पायेंगे !
बहुत सुंदर भाव से लिखी शानदार रचना /एक एक शेर काबिले तारीफ है /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
हर रंग है जफा का मेरी दास्ताँ में दोस्त ,
ReplyDeleteइलज़ाम खुद पे एक भी वो सह न पायेंगे !
बहुत खूब साधना जी ! दिल की तह तक जाती पंक्तियाँ.
वाह,क्या ख़ूब कहा है !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना.....
ReplyDeleteसाधना जी,आपने सुन्दर मार्मिक भावों को
ReplyDeleteखूबसूरती से संजोया है,
इसीलिए संगीता जी ने आपकी प्रस्तुति को
अपनी हलचल में भी पिरोया है.
बहुत बहुत आभार आपका और
संगीता जी का भी.
bahut hi sundar bhavo se saji ati uttam rachana hai..
ReplyDeleteसदियों से जिन किलों में मेरी रूह कैद है ,
ReplyDeleteछोटे से एक छेद से वो ढह न पायेंगे !
फौलाद में तब्दील जिन्हें वक्त कर चुका ,
आँसू हमारी आँख से वो बह न पायेंगे !
सुन्दर भाव संजोये हैं आपने.....!!!
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसदियों से जिन किलों में मेरी रूह कैद है ,
ReplyDeleteछोटे से एक छेद से वो ढह न पायेंगे
itni sunder pangti hai.....wah.....
.... प्यारी रचना..बधाई !!
ReplyDeleteग़ज़ल की तरफ आपके बढ़ते क़दम देख कर मन ख़ुश हो गया.
ReplyDeleteऐसी ही धारदार रहे आपकी ग़ज़ल.
मेरे मन की बात कुँवर कुसुमेश जी कह गए हैं। अब तो इंतज़ार है उस घड़ी का जब सहज, सरस, कोमल और धारदार कथ्यों से सजी ग़ज़लें पढ़वाएंगी आप हमें।
ReplyDeleteसभी सुधीजनों की ह्रदय से आभारी हूँ की आपने मेरे प्रयास को प्रोत्साहन दिया एवं पसंद किया ! भविष्य में भी ऐसे ही अनुग्रह बनाएं रखें यही निवेदन है !
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
....हर इक बयाँ पे रोये बिना रह न पायेंगे
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.
अभिव्यक्ति पसंद आयी,....! अच्छी रचना का आभार !
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