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Saturday, January 14, 2012

दिक्भ्रमित मतदाता

मतदान का समय नज़दीक आ रहा है । चारों ओर से मतदाताओं पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें । इस बार चूक गये तो अगले पाँच साल तक हाथ ही मलते रह जायेंगे इसलिये सही प्रत्याशी को वोट दें, सोच समझ कर वोट दें, जाँच परख कर वोट दें, यह ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि प्रत्याशी का कोई आपराधिक अतीत ना हो, वह सुशिक्षित हो, चरित्रवान हो, देशहित के लिये निष्ठावान हो, जनता का सच्चा सेवक हो और ग़रीबों के हितों का हिमायती हो, आम आदमी की समस्याओं और सरोकारों का जानकार हो और संसद में उनके पक्ष में बुलन्द आवाज़ में अपनी बात मनवाने का दम खम रखता हो ।
बात सोलह आना सही है लेकिन असली चिंता यही है कि इन कसौटियों पर किसी प्रत्याशी को परखने के लिये मतदाता के पास मापदण्ड क्या है ? वह कैसे फैसला करे कि यह प्रत्याशी सही है और वह नहीं क्योंकि जिन प्रत्याशियों को चुनावी मैदान मे उतारा जाता है उनमें से चन्द गिने चुने लोगों के ही नाम और काम से लोग परिचित होते हैं । बाकी सब तो पहली ही बार पार्टी के नाम पर सत्ता का स्वाद चखने के इरादे से चुनावी दंगल में कूद पड़ते हैं या निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से अपना ढोल बजाने लगते हैं और जनता के दरबार में वोटों के तलबगार बन जाते हैं । ऐसे में मतदाता क्या देखें ? यह कि कौन सा प्रत्याशी कितने भव्य व्यक्तित्व का स्वामी है, या फिर कौन विनम्रता के प्रदर्शन में कितना नीचे झुक कर प्रणाम करता है, या फिर कौन फिल्मों मे या टी वी धारावाहिकों में ग़रीबों का सच्चा पैरोकार बन कर लोकप्रिय हुआ है, या फिर किसके बाप दादा पीढ़ियों से राजनीति के अखाड़े के दाव पेंचों के अच्छे जानकार रहे हैं, या फिर कौन चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जन सभाओं में बड़े बड़े नेताओं और अभिनेताओं का बुलाने का दम खम रखता है, या फिर कौन क्षेत्र विशेष की लोक भाषा में हँसी मज़ाक कर लोगों का दिल जीतने में सफल हो जाता है । या फिर पार्टी विशेष के वक़्ती घोषणा पत्र के आधार पर ही प्रत्याशी का चुनाव करना चाहिये जिसका क्षणिक अस्तित्व केवल चुनाव के नतीजों तक ही होता है और जिनके सारे वायदे और घोषणायें चुनाव के बाद कपूर की तरह हवा में विलीन हो जाते हैं । आखिर किस आधार पर चुनें मतदाता अपना नेता ?
सारे मतदाता इसी संशय और असमंजस की स्थिति में रहते हैं और शायद मतदान के प्रति लोगों में जो उदासीनता आई है उसका एक सबसे बड़ा कारण यही है कि वे अपने क्षेत्र के अधिकतर प्रत्याशियों के बारे में कुछ भी नहीं जानते और जिनके बारे में जानते हैं उन्हें वोट देना नहीं चाहते । वे किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते और चरम हताशा की स्थिति में किसी भी अनजान प्रत्याशी को वोट देकर किसी भी तरह के ग़लत चुनाव की ज़िम्मेदारी से बचना चाहते हैं ।
हमें आगे आकर इन दोषपूर्ण परम्पराओं में बदलाव लाने की मुहिम को गति देना चाहिये । चुनाव के चंद दिन पूर्व प्रत्याशियों की घोषणा किये जाने का तरीका ही ग़लत है । क़ायदे से चुनाव के तुरंत बाद ही अगले चुनाव के उम्मीदवार की घोषणा हो जानी चाहिये और अगले पाँच साल तक उसे लगातार जनता के सम्पर्क में रहना चाहिये । प्रत्येक भावी उम्मीदवार को जन साधारण की समस्याओं और सरोकारों को सुनने और समझने में समर्पित भाव से जुट जाना चाहिये । सभी पार्टीज़ के प्रत्याशी जब प्रतिस्पर्धा की भावना के साथ आम आदमी के जीवन की जटिलताओं को सुलझाने की दिशा में प्रयत्नशील हो जायेंगे तब देखियेगा विकास की गति कितनी तीव्र होगी और आम आदमी का जीवन कितना खुशहाल हो जायेगा । तब किसी प्रत्याशी के प्रति जनता के मन में सन्देह का भाव नहीं होगा । हर उम्मीदवार का काम बोलेगा और जो अच्छा काम करेगा उसे जिताने के लिये जनता खुद उत्साहित होकर आगे बढ़ कर वोट डालने आयेगी । हमेशा की तरह खींच खींच कर मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । इस प्रक्रिया से अकर्मण्य और अवसरवादी लोगों की दाल नहीं गल पायेगी । सारे गाँवों और शहरों की दशा सुधर जायेगी और आम आदमी बिजली, पानी, साफ सफाई इत्यादि की जिन समस्याओं से हर वक़्त जूझता रहता है उनके समाधान अपने आप निकलते चले जायेंगे । पाँच साल बीतने के पश्चात चुनाव के परिणाम के रूप में सबको अपनी अपनी मेहनत का फल मिल जायेगा । अगर ऐसा हो जाये तो भारत विकासशील देशों की सूची से निकल कर सबसे विकसित देश होने के गौरव से सम्मानित हो सकेगा और हम भारतवासी भी गर्व से अपना सिर उठा कर कह सकेंगे जय भारत जय हिन्दोस्तान !

साधना वैद

17 comments :

  1. मतदाता तो अब मूक दृष्टा और मोहरा बन कर रह गया है |अच्छा लेख |
    आशा

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  2. बढ़िया प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  3. काश ऐसा हो पाए लेकिन निकट भविष्य में तो ऐसा होता संभव नहीं लगता.

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  4. आदरणीय मौसीजी सादर वन्दे, सर्व प्रथम आप सभी को हमारी ओर से उत्तरायण की हार्दिक बधाई | आज की पोस्ट मतदाताओं को सही दिशा दे सकती है, पर क्या सौ प्रतिशत मतदाता देश के लिए वोट करते हैं? आपकी हर रचना में एक सन्देश निहित रहता है|आपका आशीर्वाद बना रहे हम अनुसरण करते रहेंगे |

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  5. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति और मकर सक्रांति की शुभकामनाये!

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  6. मतदाता तो अब मूक दृष्टा और मोहरा बन कर रह गया है |अच्छा लेख |

    Jaise ham Waise hamare neta hain .

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  7. मतदाता तो अब मूक दृष्टा और मोहरा बन कर रह गया है |अच्छा लेख |

    Jaise ham Waise hamare neta hain .

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  8. जब तक उम्मीदवार के पास अधिकार नहीं होता तब तक वो कुछ कर नहीं सकता .. और जब अधिकार मिल जाता है तब वो कुछ करता नहीं ... अब मतदाता तो भ्रमित होंगे ही न .. मतदाता यह ज़रूर कर सकते हैं की जिसने जनता के लिए कुछ नहीं किया उनको दुबारा नेता न चुना जाये ..

    मुद्दा सही है लेकिन इस तरह प्रत्याशी की घोषणा पहले से करना और वो जनता की सेवा कर पायें ..मुझे तो कठिन ही लगता है

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  9. कल 17/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. matdata digbhramit kyon na ho? yahan parti men hi ghamasan chal rahi hai, kyoni sabhi partiyon ke mukhiya shasan karte hain ye neta to mahaj shatranj ke mohare ki tarah se vahi karte jate hain jo unaki mukhiya kahata hai.

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  11. abhi poora nahin kah paayi thee, apane vote ko den avashya aur usako den jisaki chhavi apane kaamon se achchhi ho, neta ho jaroori nahin hai samaj men apane saaaph suthari chhavi rakhata ho aur shikshit tatha jagarook nagrik bhi ho. agar vote nahin diya to doosare usase labhanvit honge kyonki phir vahi chuna jaayega jisake bare men logon ko bharma kar prachar kiya ja raha hai. ye rajneeti vah daldal hai jisamen nahin kah sakate ki paanch saal ke liye aane vala kis roop men samane aayega.

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  12. बहुत अच्छी विचारणीय प्रस्तुति है आपकी.
    जात पात,धर्म,पार्टी आदि कितने ही
    आधार हैं वोटिंग करने के.

    ऐसे में सही उम्मीदवारों का चुना जाना देश का सौभाग्य ही माना जायेगा.

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  13. बढ़िया प्रस्तुति...

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  14. मतदाता तो अब मूक दृष्टा और मोहरा बन कर रहगया..सही मुद्दा उठाया साधना जी....सुन्दर और सटीक लेख..

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  15. बहुत सुंदर प्रस्तुति,मगर ऐसे प्रत्यासी चुनाव जीतने में नाकाम रहते है,मतदाता लोभ में आकार बेईमानों को जीता देती है काश जनता जागरूक हो जाए,....
    welcome to new post...वाह रे मंहगाई

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