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Wednesday, January 25, 2012

डायरी का दूसरा पन्ना


यह कैसी खामोशी !

जाने क्यों ऐसा लगता है कि इस एक लफ्ज़ में ही सारे ज़माने का शोर समाया हुआ है ! डर लगता है इसे उच्चारित करूँगी तो उससे उपजे शोर से मेरे दिमाग की नसें फट जायेंगी ! एक चुप्पी, एक मौन, एक नीरवता, एक निशब्द सन्नाटा जो हर वक्त मन में पसरा रहता है जैसे अनायास ही तार-तार हो जायेगा और इस शब्द मात्र का उच्चारण मुझे मेरे उस सन्नाटे की सुकून भरी पनाहों से बरबस खींच कर समंदर के तूफानी ज्वार भाटों की ऊँची-ऊँची लहरों के बीच फेंक देगा ! मुझे अपने मन की यह नीरवता मखमल सी कोमल और स्निग्ध लगती है ! यह एकाकीपन और सन्नाटा अक्सर आत्मीयता का रेशमी अहसास लिये मुझे बड़े प्यार से अपने अंक में समेट लेता है और मैं चैन से उसकी गोद में अपना सर रख उस मौन को बूँद-बूँद आत्मसात करती जाती हूँ !

साँझ के उतरने के साथ ही मेरी यह नि:संगता और अँधेरा बढ़ता जाता है और हर पल सारी दुनिया से काट कर मुझे और अकेला करता जाता है ! आने वाले हर लम्हे के साथ यह मौन और गहराता जाता है और मैं अपने मन की गहराइयों में नीचे और नीचे उतरती ही जाती हूँ ! और तब मैं अपनी क्षुद्र आकांक्षाओं, खण्डित सपनों, भग्न आस्थाओं, आहत भावनाओं, टूटे विश्वास, नाराज़ नियति और झुके हुए मनोबल के इन्द्रधनुष को अपने ही थके हुए जर्जर कंधों पर लादे अपने रूठे देवता की छुटी हुई उँगली को टटोलती इस घुप अँधेरे में यहाँ से वहाँ भटकती रहती हूँ ! तभी सहसा मेरे मन की शिला पर सर पटकती मेरी चेतना के घर्षण से एक नन्हीं सी चिन्गारी जन्म लेती है और उस चिन्गारी की क्षीण रोशनी में मेरे हृदय पटल पर मेरी कविताओं के शब्द प्रकट होने लगते हैं ! धीरे-धीरे ये शब्द मुखर होने लगते हैं और मेरे अंतर में एक जलतरंग सी बजने लगती है जिसकी सम्मोहित करती धुन एक अलौकिक संगीत की सृष्टि करने लगती है ! मेरा सारा अंतर एक दिव्य आलोक से प्रकाशित हो जाता है और तब कल्पना और शब्द की, भावना और संगीत की जैसी माधुरी जन्म लेती है वह कभी-कभी अचंभित कर जाती है ! मेरे मन के गवाक्ष तब धीरे से खुल जाते हैं और मेरे विचारों के पंछी सुदूर आकाश में पंख फैला ऊँची बहुत ऊँची उड़ान भरने लगते हैं साथ ही मुझे भी खामोशी की उस दम घोंटने वाली कैद से मुक्त कर जाते हैं !

मुझे अपने मन का यह शोर भला लगता है ! मुझे खामोशी का अहसास डराता है लेकिन मेरे अंतर का यह कोलाहल मुझे आतंकित नहीं करता बल्कि यह मुझे आमंत्रित करता सा प्रतीत होता है !

साधना वैद

26 comments :

  1. अदभुद लेखन ...
    बहुत ही सुन्दर..
    सादर.

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  2. वाकई अदभुत भाव हैं ...

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  3. और तब मैं अपनी क्षुद्र आकांक्षाओं, खण्डित सपनों, भग्न आस्थाओं, आहत भावनाओं, टूटे विश्वास, नाराज़ नियति और झुके हुए मनोबल के इन्द्रधनुष को अपने ही थके हुए जर्जर कंधों पर लादे अपने रूठे देवता की छुटी हुई उँगली को टटोलती इस घुप अँधेरे में यहाँ से वहाँ भटकती रहती हूँ

    भाषा और भाव का अद्भुत संगम है आपके लेख में...बधाई

    नीरज

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  4. यह तो गद्य में पद्य समाहित है..
    बहुत ही प्रवाहमान..सुन्दर भाव

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  5. आदरणीय मौसीजी सादर वन्दे ,आज की आपकी पोस्ट या यूँ कहें लेख पढ़ कर अपनी तन्हाई से भी प्यार हो गया है |
    कुछ अपना लिखा भी याद आ गया ,
    मन की गहराई से मैने उर की मादकता को माना .

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  6. जय अक्षर जय शब्द विधान ,
    जय जन जाग्रति जय उत्थान
    तभी बने गणतंत्र महान ||||||||||

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  7. अच्छा अहसास खालीपन का
    अच्छा लिखा है |
    आशा

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  8. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण लेखन,...
    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  9. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन के लिए आभार ।

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  10. बेहतरीन--प्रवाहमय- शानदार भावपूर्ण लेखन.

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  11. "जाने क्यों ऐसा लगता है कि इस एक लफ्ज़ में ही सारे ज़माने का शोर समाया हुआ है"

    बहुत कुछ कहती है ये ख़ामोशी भी... सुन्दर भाव...

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  12. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 28/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।

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  13. This comment has been removed by the author.

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  14. Beautiful descriptive writing with excellent choice of words. Congratulations!

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  15. बहुत ही बढ़िया

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  16. मुझे अपने मन का यह शोर भला लगता है ! मुझे खामोशी का अहसास डराता है लेकिन मेरे अंतर का यह कोलाहल मुझे आतंकित नहीं करता बल्कि यह मुझे आमंत्रित करता सा प्रतीत होता है !

    डायरी के दूसरे पन्ने को पढते पढते जैसे मैं खुद में ही खो गयी ... सशक्त अभिव्यक्ति

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  17. 1. मन में झांकना अपने आप में एक उपलब्धि है.

    2. मन को पूर्वाग्रह और पक्षपात से रहित किया जाए और नकारात्मकता से बचाया जाए तो ज्ञान का आलोक भी बहुत जल्द प्रकट होता है और सनातन ईश्वर सदा से साथ है, यह बोध भी होता है.

    ♥ आप की इस पोस्ट को ब्लॉगर्स मीट वीकली के लिए सम्मान सहित चुना गया है.

    See
    वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप God in Ved & Quran
    http://vedquran.blogspot.com

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  18. आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२८) मैं शामिल की गई है /आप आइये और अपने सन्देश देकर हमारा उत्साह बढाइये /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आभार /

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  19. मन की भावनाओं को बड़ी सहजता और सुंदरता से लिखा आपने , प्रस्तुति अच्छी लगी.,

    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

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  20. बहुत ही प्रवाहमान बेहतरीन भावपूर्ण लेखन

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  21. shabdon ka kalrav kitna hai na ? bhinn bhinn vicharo ka tanta lag jata hai aur shabd jivya ko mazboor kar dete hai.....sakriy hone k liye.

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  22. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल शनिवार .. 04-02 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचलपर ..... .
    कृपया पधारें ...आभार .

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  23. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,लाजबाब प्रस्तुती .
    MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

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