यूजीन
ओ नील का आशियाना – डो हाउस ( Tao House )
कुछ
दिन पूर्व जनवरी माह में मैंने एक रोचक पोस्ट अपने ब्लॉग पर डाली थी ‘एक अनोखी
वसीयत’ ! यह वसीयत किसी इंसान की नहीं वरन अमेरिका के सुप्रसिद्ध नाटककार तथा
नोबेल प्राइज़ विजेता यूजीन ओ नील के पालतू कुत्ते सिल्वरडीन एम्ब्लेम की है !
पाठकों की सुविधा के लिए उस पोस्ट की लिंक नीचे दे रही हूँ कि जो इसे ना पढ़ पाये
हों वे अब पढ़ लें !
इस
पोस्ट के माध्यम से हमें यूजीन ओ नील के अति संवेदनशील हृदय तथा उनकी सदाशयता का
परिचय तो मिलता ही है हम यह भी जान पाते हैं कि मन की अथाह गहराइयों तक उतर जाने
की भी उनमें अद्भुत क्षमता थी ! यहाँ तक कि अपने प्रिय कुत्ते के मन की भावनाओं का
भी उन्होंने इस वसीयत में जिस कुशलता से चित्रण किया है वह अद्भुत एवँ विलक्षण है !
कभी-कभी
किसी बहुत ही प्यारी रचना को जब हम पढ़ते हैं तो अनायास ही मन उन लम्हों उन
परिस्थितियों में पहुँचने की चेष्टा करने लगता है जब रचनाकार ने उस रचना का सृजन
किया होगा ! वह कहाँ बैठा होगा ? उसकी टेबिल कहाँ होगी ? क्या लिखते समय वह आसमान
को निहारता होगा ? उसके कमरे में उसे एकांत मिलता होगा या नहीं ? वगैरह वगैरह ! इस
बार भी अपने अमेरिका प्रवास के दौरान जब मैंने यूजीन ओ नील कृत यह वसीयत पढ़ी तो
कुछ ऐसे ही सवाल मेरे मन में उमड़ रहे थे ! बेटे के साथ चर्चा की तो उसने कहा कि
चलो यूजीन ओ नील का घर देख कर आते हैं ! मुझे आश्चर्य हुआ किसीका घर हम कैसे देख
सकते हैं वहाँ तो उनके वंशज या परिवार के अन्य सदस्य रहते होंगे ! तो बेटे ने
बताया कि यहाँ सभी बड़े-बड़े साहित्यकारों और लेखकों के घरों को गवर्नमेंट ने या तो
खरीद लिया है या घर के मालिकों ने ही जनहित में उसे सरकार को डोनेट कर दिया है और
अब इन्हें जनता के देखने के लिए म्यूज़ियम के रूप में संरक्षित कर लिया गया है ! इन
घरों को यथासंभव बिलकुल उसी रूप में सजा कर रखा गया है जिस रूप में लेखक व उनके
परिवार के सदस्य उन्हें तब रखा करते थे जब वे उनमें रहते थे !
बेटे
की बातों ने मेरी उत्सुकता को बढ़ा दिया और एक दिन हम लोग प्रोग्राम बना कर यूजीन ओ
नील का घर ‘डो हाउस’ देखने के लिए निकल पड़े !
कैलीफोर्निया
की सैन रोमन वैली में डैनविल के पास 1937 में यूजीन ओ नील और उनकी पत्नी कारलौट ने
नोबेल प्राइज़ में मिली धनराशि से 158 एकड़ की एक विशाल रैंच खरीदी और वहाँ अपने सपनों का घर ‘डो हाउस’ का निर्माण
किया ! यूजीन इस घर को अपना फाइनल होम और हार्बर कहा करते थे और उन्होंने अपने कई
कालजयी नाटकों का लेखन इसी घर में किया ! यूजीन पूर्वी दर्शन से बहुत प्रभावित थे और
कारलौट पूर्वी कला और संस्कृति से प्रभावित थीं इसीलिये इस घर का नाम ‘डो हाउस’
रखा गया ! Taoism चीन की
महत्वपूर्ण धार्मिक परम्पराओं में से एक है और Tao,
जिसे ‘dow’ की
तरह उच्चारित किया जाता है, का अर्थ
होता है ‘मार्ग’ अथवा ‘रास्ता’ ! Tao House एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है और स्पैनिश
आर्कीटेक्चर के अनुरूप बहुत ही खूबसूरत स्टाइल में बना हुआ यह
एक भव्य घर है ! घर
के रंग रूप, रखरखाव, फर्नीचर इत्यादि से उसमें रहने वाले यूजीन दम्पत्ति की
सुरुचिपूर्ण जीवन शैली का बड़ा ही आत्मीय सा परिचय मिलता है ! इसी घर में अपनी स्टडी में यूजीन निर्बाध रूप से
शान्तिपूर्वक अपने लेखन कार्य में जुटे रहें इसके लिए कारलौट विशेष ध्यान रखती थीं
! इसी घर में अपने प्रिय कुत्ते ब्लेमी के साथ उन्होंने ना जाने कितने अंतरंग पल
बिताये होंगे ! आज भी कारलौट के कमरे में ब्लेमी का कॉट उसी तरह से सजा हुआ रखा है
जैसे उन दिनों रहा करता होगा ! यूजीन का प्रिय प्यानो ‘रोज़ी’ भी उनके ड्राइंग रूम
से सटे स्टडी में आज भी सजा हुआ है जिस पर वे कभी-कभी अपनी पसंद की धुनें बजाया
करते थे ! यूजीन और कारलौट अक्सर जाज़ संगीत की मधुर स्वर लहरियों के साथ अपनी
रूमानी शामें अपने शानदार ड्राइंग रूम में बिताया करते थे !
घर
से थोड़ा सा नीचे उतर कर उनका अपना एक बहुत ही प्यारा सा, छोटा सा स्विमिंग पूल है जिसका बेहद स्वच्छ पानी आपको
आमंत्रित सा करता है ! इसके अलावा रैंच पर एक थियेटर है जिसमें समय-समय पर उनके
नाटकों का मंचन हुआ करता था, एक उनका छोटा सा पोल्ट्री फ़ार्म है और है उनके प्यारे
पैट ब्लेमी की समाधि ! इसके अलावा हैं बेहद सुंदर फल और फूलों से लदे अनगिनती पेड़,
हरी-हरी घास से आच्छादित दूर तक फ़ैली पहाड़ियां और है वहाँ की फिजाँ में घुला हुआ आभिजात्य,
आदर, अभिमान और आश्वस्ति का एक अनूठा अहसास कि यही वह जगह है जहाँ नोबेल प्राइज़ के
विजेता साहित्यकार यूजीन ओ नील रहा करते थे जिनकी उपस्थिति से यह रैंच हमेशा
गुलज़ार रहा करती थी !
यूजीन
ओ नील ने अपने जीवन काल में लगभग 60 नाटक लिखे ! अपने अत्यंत लोकप्रिय नाटक ‘बियोंड
ड होराइजन’ के लिए सन 1920 में उन्हें पहला पुलित्ज़र प्राइज़ मिला ! दो साल बाद अपने
एक और नाटक ‘अन्ना क्रिस्टी’ के लिए उन्हें दूसरा पुलित्ज़र प्राइज़ मिला और सन
1928 में अपने तीसरे विलक्षण नाटक ‘स्ट्रेंज इंटरल्यूड’ के लिए उन्हें तीसरा
पुलित्ज़र प्राइज़ मिला ! सन 1936 में यूजीन ओ नील को साहित्य के क्षेत्र में अपने
विशिष्ट योगदान के लिए सबसे बड़े सम्मान नोबेल प्राइज़ से सम्मानित किया गया !
यूजीन
ओ नील के घर ‘ डो हाउस ‘ जाकर उनकी इस अनूठी लेखन यात्रा का आभास मिलता है !
यद्यपि उनके अनेकों नाटक यहाँ आने से पहले ही लिखे जा चुके थे लेकिन यहाँ आने के बाद
उन्होंने जो भी लिखा वह भी साहित्य प्रेमियों के लिए अत्यंत दुर्लभ एवँ अनमोल है !
तो
कहिये यूजीन ओ नील के घर की यह सैर आपको कैसी लगी ! अगली बार आपको एक और
साहित्यकार के घर की सैर करवानी है ! तब तक थोड़ा इंतज़ार कीजिये ! ठीक है ना !
साधना
वैद
भावुक मन ऐसा ही सोचता है .... इस वसीयत के किरदारों को आपकी कलम से जानकार बहुत कुछ मिला
ReplyDeleteयूजीन ओ नील के घर से परिचित कराने के लिए शुक्रिया .... आपके माध्यम से हम भी देख सके ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपके लेखन और चित्रों के साथ एक साहित्यकार के घर की सैर .. आभार
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteयूजीन ओ नील जी का परिचय एवं सचित्र प्रस्तुति के लिए आपका आभार
ReplyDeleteसादर
यूजीन ओ नील के परिचय और जीवन यात्रा की खूबसूरत झलकियों के लिये आभार
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ना ... सभी चित्र बेहद खूबसूरत ...
ReplyDeleteइतने सम्माननीय लेखक से परिचय कराने का बहुत-बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteरोचक परिचय, सुंदर चित्र!
~सादर!!!
प्रसिद्धसाहित्यकार से परिचय के लिए आभार और बधाई |
ReplyDeleteआशा
सुंदर सजीव चित्रों से सजी एक साहित्यकार के घर की सैर बहुत ज्ञानवर्धक रही.
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