फूलों
के हार के पीछे
सुनहरे फ्रेम के अंदर
सजी
तस्वीर में
अम्मा
के चहरे पर
एक
करुण मुस्कान है ,
हॉल
में जुटा सारा परिवार
एकत्रित
भीड़ के सामने
बिलख-बिलख
कर हलकान है !
“भगवान की भी यह
कैसी
अन्यायपूर्ण लीला है,
अम्माँ
का हाथ हमारे
सिर
से क्यों छीन लिया
यह
आघात हम सब बाल बच्चों
के
लिये कितना चुटीला है !”
अम्मा
फ्रेम में ही कसमसाईं
तस्वीर
के अंदर से झाँकती
उनकी
आँखें घोर पीड़ा से
छलछला
आईं !
“जब सहारे को मैंने
तुम्हारा
हाथ माँगा था
तब
तो तुम उसे अनदेखा कर गये
मैं
ठोकर खा कर नीचे गिर गयी
और
तुम आगे को बढ़ गये !
अब
किस हक से तुम मेरा हाथ
अपने
सर पर माँगते हो,
जब
मर्यादा और मानवता की
सारी
हदें
तुम खुद ही लाँघते हो !
मेहनत
और किफायत से चल कर
हमने
अपने इस परिवार के लिये
एक
छोटा सा घर बनाया था
जिस
पर अपने बापू जी के जाने बाद
तुमने ही
सारा अधिकार जमाया था !
मेरे
इस छोटे से घर में नये कमरे और
आधुनिकतम
सामान जुड़ते गये ,
निर्जीव
वस्तुओं का वर्चस्व बढ़ता गया
और
मानवीय रिश्ते पिछड़ते गये !
घर
में कार, टी वी, ए सी,
कम्प्यूटर,
वाशिंग मशीन,
सब
आ गया,
और
इन सबके लिये घर में
जगह
बनाने के वास्ते
मुझे
घर के सबसे पीछे वाली
कबाड़
की कोठरी में
पहुँचा
दिया गया !
तुम्हारा
नाम समाज के रईसों
की
सूची में ज़रूर शुमार हो गया ,
लेकिन
मेरा बुढ़ापा वर्षों पुरानी
तुम्हारे
बापू की दिलाई
जर्जर हो चुकी
दो
चार फटी साड़ियों को
मरम्मत
कर सिलने सम्हालने
में ही
गुज़र गया !
अब
मेरी मिट्टी के लिये
तुम
नया थान लाओ या नया शॉल
क्या
फर्क पड़ता है
स्वर्ग
में बैठे तुम्हारे बापू का दिल
तुम्हारी
इस खुदगर्जी के मंज़र को
देख
कर दुःख से बहुत तड़पता है !
जानती
हूँ यह भी तुम
विवश
होकर ही कर रहे हो,
सिर्फ
दुनिया में दिखावे के लिये
और
समाज में अपनी
यश सिद्धि के लिये ही
तुम
श्रवण कुमार होने का
दम
भर रहे हो !
काश
! जितना तुम
मेरी
मिट्टी के लिये
अब
कर रहे हो उसका
सौवाँ
अंश भी मेरे जीवित रहते
मेरे
लिये कर देते
तो
ऐसी नौबत ही क्यों आती,
मेरी
आत्मा इस संसार से
सुखपूर्वक
विदा लेती
और
प्रत्यक्ष रूप से
जीते
जी ही मैं इस जगत में
मोक्ष पा जाती !
साधना
वैद
चित्र-गूगल से साभार !
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