एकल
ही निर्जन राहों पर चलते रहना है ,
तू
संग है इस भ्रम से खुद को छलते रहना है !
बाहों
में आकाश, नयन में सागर भर कर
दुग्ध
धवल शीतल रातों में जलते रहना है !
बालारुण
की किरणों की कच्ची कलमों से
उजली
कविता के छंदों को रचते रहना है !
कितनी
भी हो धुँध घना हो कितना कोहरा
लक्ष्य
साध कर बाण हाथ ले चलते रहना है !
पात-पात
पर संचित हिम से ओस कणों से
अंतर
के ज़ख्मों पर मरहम रखते रहना है !
फूल
खिल सकें इस दुनिया में पत्थर पर भी
हृदय
वाष्प से हर पत्थर नम करते रहना है !
साधना
वैद
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