Followers

Friday, April 26, 2019

वेदना की राह पर


वेदना की राह पर 
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर 
क्यों आज मैं एकल खड़ी !

थाम कर उँगली तुम्हारी 
एक भोली आस पर ,
चल पड़ी सागर किनारे 
एक अनबुझ प्यास धर !

मैं तो अमृत का कलश 
लेकर चली थी साथ पर ,
फिर भला क्यों रह गये
यूँ चिर तृषित मेरे अधर !

मैं झुलस कर रह गयी
रिश्ते बचाने के लिये ,
मैं बिखर कर रह गयी 
सपने सजाने के लिये !

रात का अंतिम पहर 
अब अस्त होने को चला ,
पर दुखों की राह का 
कब अंत होता है भला ! 

चल रही हूँ रात दिन 
पर राह यह थमती नहीं ,
कल जहाँ थी आज भी 
मैं देखती खुद को वहीं ! 

थक चुकी हूँ आज इतना
और चल सकती नहीं ,
मंजिलों की राह पर 
अब पैर मुड़ सकते नहीं 

कल उठूँगी, फिर चलूँगी 
पार तो जाना ही है ,
साथ हो कोई, न कोई 
इष्ट तो पाना ही है ! 

साधना वैद

27 comments :

  1. बेहतरीन रचना...
    सादर नमन..

    ReplyDelete
  2. ओह , गहन वेदना भारी रचना ।

    ReplyDelete
  3. हृदय से आपका धन्यवाद दिग्विजय जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  4. ओहो ! धन्य भाग्य संगीता जी ! कहाँ खो गयीं थीं आप ? कितना अच्छा लग रहा है आपको देख कर ! दिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका ! अब मत जाइयेगा दूर ! आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है !

    ReplyDelete
  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-04-2019) को " गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन की ९९ वीं पुण्यतिथि " (चर्चा अंक-3319) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  6. गहरे भाव के साथ.. बहुत खूबसूरत।

    ReplyDelete
  7. हमेशा की तरह बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  8. हार्दिक धन्यवाद संजय !

    ReplyDelete
  9. हृदय से धन्यवाद केडिया जी !

    ReplyDelete
  10. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी ! सस्नेह वन्दे !

    ReplyDelete
  11. आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  12. हृदय से धन्यवाद पम्मी जी ! रचना आपको अच्छी लगी मन प्रसन्न हुआ !

    ReplyDelete
  13. हार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! आभार !

    ReplyDelete
  14. मन की वेदना को सहेजते नारी मन की भावस्पर्शी रचना आदरणीय साधना जी | बहुत ही मार्मिक चित्र उभरा है रचना में | सस्नेह शुभकामनायें |

    ReplyDelete
  15. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  16. हार्दिक धन्यवाद रेनू जी!बहुत बहुत आभार आपका!

    ReplyDelete
  17. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete

  18. मैं तो अमृत का कलश
    लेकर चली थी साथ पर ,
    फिर भला क्यों रह गये
    यूँ चिर तृषित मेरे अधर !
    वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति दी। आपकी लेखनी से अभिव्यक्त होकर वेदना भी गीत बन जाती है। सादर।

    ReplyDelete
  19. रात का अंतिम पहर
    अब अस्त होने को चला ,
    पर दुखों की राह का
    कब अंत होता है भला !
    वाह बहुत ही बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  20. इष्ट तो पाना ही है ...
    मन में संवेदनाएं जिन्दा रहती हैं तो इन्सान इश्वर के करीब तो वैसे ही हो जाता है ...
    सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...

    ReplyDelete
  21. हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  22. हृदय से आभार आपका अभिलाषा जी !

    ReplyDelete
  23. तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया नासवा जी ! आपको रचना अच्छी लगी मेरा श्रम सफल हुआ ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  24. रात का अंतिम पहर
    अब अस्त होने को चला ,
    पर दुखों की राह का
    कब अंत होता है भला !
    बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद आदरणीया ।

    ReplyDelete
  25. आपका बहुत बहुत धन्यवाद सिन्हा साहेब ! हृदय से आभार !

    ReplyDelete