कभी मन में धधकते दावानल की
चिंगारी है कविता तो कभी
सुलगते अंगारों पर पड़ी
शीतल फुहार है कविता !
कभी वर्षों के मौन को
मुखर करती
कुछ कहती कुछ सुनती
बातों की लड़ी है कविता
तो कभी अनर्गल प्रलाप पर
सहसा लगा एक
पूर्णविराम भी है कविता !
तुम्हारी चुप्पी है कविता
तो मेरी बकबक भी है कविता !
कभी फूलों की खुशबू है कविता
तो कभी काँटों की चुभन है कविता !
साधना वैद
व्वाहहह..
ReplyDeleteसादर नमन...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteऐसे ही होती है कविता....
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रीना जी ! बड़े दिनों के बाद आना हुआ आपका ! हृदय से स्वागत है आपका !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/04/2019 की बुलेटिन, " २ अप्रैल को राकेश शर्मा ने छुआ था अंतरिक्ष - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ,अनगिनत समस्या -समाधान और भावों का संगम संग्रह है कविता
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी !
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ReplyDeleteउम्दा है |