दर्द ने कुछ यूँ निभाई दोस्ती
झटक कर दामन खुशी रुखसत हुई
मोतियों की थी हमें चाहत बड़ी
आँसुओं की बाढ़ में बरकत हुई !
रंजो ग़म का था वो सौदागर बड़ा
भर के हाथों दे रहा जो पास था
हमने भी फैला के आँचल भर लिया
बरजने को कोई ना हरकत हुई !
बाँटने में वो बड़ा फैयाज़ था
नेमतों से कब हमें एतराज़ था
दर्द देने के बहाने ही सही
चल के घर आने की तो फुर्सत हुई !
हमको उसकी बेरुखी का पास था
चोट देने का ग़ज़ब अंदाज़ था
जायज़ा लेना था हाले दर्द का
ज़ख्म देने को नये शिरकत हुई !
हम न उससे फेर कर मुँह जायेंगे
हर सितम उसका उठाते जायेंगे
हो न वो मायूस अपनी चाल में
इसलिए बस दर्द से उल्फत हुई !
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-03-2019) को "दिल तो है मतवाला गिरगिट" (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" कवि एवं साहित्यकार
सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखण्ड सरकार,
सन् 2005 से 2008 तक।
टनकपुर रोड, ग्राम-अमाऊँ
तहसील-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर,
उत्तराखण्ड, (भारत) - 262308.
Mobiles:
7906360576, 7906295141, 09997996437,
Website - http://uchcharan.blogspot.com/
E-Mail - roopchandrashastri@gmail.com
very good poem
ReplyDeleteअरे वाह अनीता जी ! आप भी चर्चामंच से जुड़ गयीं हैं जान कर हार्दिक प्रसन्नता हुई ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मेरी रचना के चयन के लिए !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! मेरा स्नेहिल अभिवादन स्वीकार करें !
ReplyDeleteThank you so much Sarin Saheb. you are most welcome.
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/03/2019 की बुलेटिन, " ईश्वर, मनुष्य, जन्म, मृत्यु और मोबाइल लगी हुई सेल्फ़ी स्टिक “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शिवम् जी !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअप्रतिम...रचना के भाव दिल को छू गए..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह साधना जी, हमेशा की तरह, दिल को छू लेने वाली सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर... लाजवाब रचना...।
ReplyDeleteबाँटने में वो बड़ा फैयाज़ था
नेमतों से कब हमें एतराज़ था
दर्द देने के बहाने ही सही
चल के घर आने की तो फुर्सत हुई !
लाजवाब। रचना..
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी! हार्दिक आभार !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पम्मी जी !
ReplyDeleteहृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सुधा जी! हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका गोपेश जी! सादर आभार!
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कैलाश जी !
ReplyDeleteहम न उससे फेर कर मुँह जायेंगे
ReplyDeleteहर सितम उसका उठाते जायेंगे
हो न वो मायूस अपनी चाल में
इसलिए बस दर्द से उल्फत हुई !
बहुत-बहुत सुन्दर लिखा है आपने । साधुवाद व शुभकामनाएं ।
दर्द से इस उल्फत का राज़ भी वही हैं जो दर्द देते हैं ... मन है फिर भी निभाता चला जाता है ...
ReplyDeleteबहुत गहरा एहसास लिए भावपूर्ण रचना ...
हार्दिक धन्यवाद नासवा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद सिन्हा साहेब ! आभार आपका !
ReplyDeleteवाह साधना दीदी !!! बहुत गहरे अहसास व्यक्त करती हुई रचना है आपकी !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी !बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDelete
ReplyDeleteरचना गहरे अहसासों से भरपूर |उम्दा अभिव्यक्ति |