दूसरा दिन – २५
अगस्त, २०१९
अनिर्वचनीय उल्लास,
उत्साह और ऊर्जा लेकर २५ अगस्त का सूर्योदय ताशकंद में हो चुका था ! रात की रौनक
और तिलस्म दिन के प्रकाश में छूमंतर हो चुका था और एक सजग, सतर्क, तरोताज़ा शहर
अंगड़ाई लेकर उठ गया था ! सुबह नौ बजे से साहित्यिक सम्मलेन की गतिविधियाँ आरम्भ
होने वाली थीं ! उससे पहले तैयार होना था नीचे डाइनिंग हॉल में नाश्ते के लिए जाना
था और कार्यक्रम से सम्बंधित आवश्यक सामग्री को भी एक स्थान पर संजो कर रखना था !
उस दिन तो जल्दबाजी में चाय भी नहीं बनाई ! फ़िक्र थी कहीं देर ना हो जाए ! बस
जल्दी से नहा धोकर नीचे पहुँच गए ! देखा हमारे सिवा वहाँ कोई नहीं था ! होटल से
बाहर निकल कर आस पास का नज़ारा लिया ! प्रवेश द्वार के सामने ही बेहद खूबसूरत
फव्वारे चल रहे थे जिनकी बूँदों की शीतल फुहार बड़ी सुहानी लग रही थी ! बाहर कुछ
तस्वीरें खींचीं !
होटल ग्रैंड प्लाज़ा
जितना बाहर से शानदार है उतना ही खूबसूरत वह अन्दर से भी है ! उसकी साज सज्जा
देखते ही बनती है ! हार्दिक प्रसन्नता हुई यह देख कर कि होटल ग्रैंड प्लाज़ा के
दूसरे फ्लोर पर स्थित रेस्टोरेंट का नाम हमारे देश के प्रसिद्ध अभिनेता राजकपूर के
नाम पर रखा गया है और यहाँ का भारतीय भोजन अत्यंत स्वादिष्ट माना जाता है ! यह
राजकपूर का पसंदीदा होटल था और वे जब भी ताशकंद जाते थे तो इसी होटल में रुकते थे
! वहाँ उनकी स्मृति में एक पियानो भी रखा
हुआ है जिसे बजाते हुए ग्रुप के लगभग हर सदस्य ने अपनी फोटो खिंचवाई ! उस प्यानो
के ऊपर अनाड़ी वादकों को बरजते हुए बड़ा मजेदार सा एक पोस्टर भी रखा हुआ है ! छत से
कीमती फानूस लटक रहे हैं और दीवारों पर बेहद सुंदर पेंटिंग्स लगी हुई हैं ! होटल
के अन्दर का भाग पूरा पक्का बना हुआ है लेकिन डाइनिंग हॉल के पास के एरिया में ग्रेनाईट
के चिकने फर्श पर इतनी हरियाली है कि लगता है किसी बहुत ही सुन्दर बगीचे में बैठे
हुए हैं ! बड़े बड़े गमलों में तरह तरह के इनडोर प्लांट्स लगे हुए हैं जिनकी
खूबसूरती देखते ही बनती है ! कई प्लांट्स
के तनों को बड़ी कारीगरी से गूँथ कर बहुत सुन्दर एवं कलात्मक आकार दिया गया है !
ग्रुप के सदस्यों का
नीचे आना शुरू हो गया था ! हमने भी नाश्ते के लिए डाइनिंग हॉल में प्रवेश किया !
विविध तरह की भारतीय और कॉन्टिनेंटल डिशेज़ नाश्ते के लिये उपलब्ध थीं ! अनेक तरह
की पेस्ट्रीज़, केक्स, कुकीज़, बेकरी आइटम्स, मिल्क सीरल्स, जूस, चाय, कॉफ़ी,
फ्रूट्स, सलाद, भारतीय नाश्ते, डेज़र्ट्स, ड्राई फ्रूट्स सब करीने से सजे हुए थे !
जो चाहे आप खाइये और विदेशी धरती पर भारतीय स्वाद को सराहिये ! बस एक ही कमी थी कि
वहाँ हिन्दुस्तानी पूरियाँ, पराँठे या पतली रोटियाँ नहीं होती थीं ! उसके स्थान पर
वहाँ के लोकप्रिय मोटे मोटे रोट ही सर्व किये जाते थे जिन्हें नॉन कहते हैं ! भारत
में प्रचलित नान से मिलता जुलता नाम ज़रूर है लेकिन साइज़, स्वाद और देखने में बिलकुल
अलग ! उन पर बड़े खूबसूरत डिज़ाइंस बने हुए थे और वे बिलकुल सुर्ख सिके हुए थे ! खाने
में ज़रूर कुछ दिक्कत सी लगी लेकिन देखने ये बहुत ही आकर्षक थे ! ताशकंद के फ्रूट्स
का तो कोई जवाब ही नहीं ! तरबूज हमारे देश में भी बहुत स्वादिष्ट मिलता है और आगरा
का तरबूज तो वैसे भी बहुत प्रसिद्ध है ! लेकिन इतना मीठा और इतना रसीला तरबूज
मैंने इससे पहले कभी नहीं खाया ! सलाद इतना महीन कटा हुआ कि खाने से पहले तो नज़र
भर उसे देखते रहने का मन होता था ! वहाँ एक विशिष्ट तरह का खीरा देखा ! अंगूठे की
मोटाई का, गहरे हरे रंग का यह खीरा मुश्किल से तीन चार इंच लंबा था लेकिन स्वाद
इतना लाजवाब कि क्या बताएँ ! इन्हें छीलने की भी ज़रुरत नहीं ! ऐसे ही खाए जाते हैं
! डेज़र्ट सभी कम चिकनाई के, कम मीठे, पूरी तरह से स्वास्थ्यवर्धक !
नाश्ते के तुरंत बाद
नौ बजे से साहित्य सम्मलेन का शुभारम्भ होना था ! सेकंड फ्लोर पर विंटर गार्डन हॉल
में पहुँचने का निर्देश मिला था ! हम अपने भारतीय चलन के हिसाब से नीचे की मंज़िल
को ग्राउंड फ्लोर मान कर सेकण्ड फ्लोर अर्थात तीसरी मंज़िल पर पहुँच गए ! इसी फ्लोर
पर हमारा रूम भी था ! लेकिन कहीं विंटर गार्डन हॉल दिखाई नहीं दिया ! फिर नीचे
पहुँचे ! तब यह पता चला की यहाँ ग्राउंड फ्लोर को फर्स्ट फ्लोर कहा जाता है !
विंटर गार्डन हॉल में सम्मलेन की तैयारियाँ बड़े ज़ोर शोर से चल रही थीं ! हमारी टीम
लीडर श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी की देख रेख में सारी व्यवस्थाएं शीघ्र ही चुस्त
दुरुस्त हो गयीं ! विश्व मैत्री मंच के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का बड़ा सा बैनर मंच
पर बैकग्राउंड में शोभित हो रहा था ! देश विदेश से आये ३२ मेहमान सभागार में अपना
स्थान ग्रहण कर चुके थे ! नौंवे अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का शुभारम्भ माँ शारदे के
फोटो पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ ! तत्पश्चात सुश्री अनीता राज ने
सरस्वती वन्दना पर अत्यंत मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया ! इस खूबसूरत प्रस्तुति के
बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा ! इसके बाद पुस्तकों के लोकार्पण का
कार्यक्रम संपन्न होना था ! मेरे नवीन कहानी संग्रह, ‘तीन अध्याय’ का विमोचन भी इस
कार्यक्रम में होना था ! बहुत प्रसन्नता हो रही थी मुझे !
मुम्बई की लक्ष्मी
यादव जी के कहानी संग्रह, ‘रिश्तों की जंजीर’, ज्योति गजभिये जी के कथा संग्रह, ‘बिना
मुखौटे के दुनिया’, सविता चड्ढा जी के लेख संग्रह, ‘पाँव ज़मीन पर निगाह आसमान पर,
मेरे कहानी संग्रह, ‘तीन अध्याय’, डॉ, यास्मीन मूमल के कविता संग्रह, ‘संवेदना के
स्वर’ तथा सुश्री अनीता राज के यात्रा संस्मरण, ‘मेरी यात्रा वृत्तांत’ का
लोकार्पण संस्था की अध्यक्ष श्रीमती संतोष श्रीवास्तव, कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.
विद्या सिंह, मुख्य अतिथि डॉ. स्वामी विजयानंद तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. विजयकांत
वर्मा एवं डॉ. सुभाष पाण्डेय जी के कर कमलों द्वारा हुआ ! मुम्बई की प्रभा शर्मा
सागर जी ने , ‘पानी की कहानी पानी की जुबानी’ की एकल नृत्य नाटिका प्रस्तुत की ! मंच
पर कार्यक्रम का संचालन मधु सक्सेना जी कर रही थीं ! जगदलपुर से आईं सुषमा झा जी
ने सभी प्रतिभागियों का परिचय दिया और सभीको स्मृति चिन्ह भेंट किये गए !
बीच में चाय कॉफ़ी का
ब्रेक भी था ! अल्पाहार के बाद प्रमुख विषय, ‘२१ वीं सदी के काव्य में स्त्री
विमर्श’, पर बहुत ही सटीक व सार्थक चिंतन परक आलेख, कवितायें एवं भाषणों का सत्र
चला ! सत्र का आरम्भ श्रीमती संतोष श्रीवास्तव के सारगर्भित भाषण से हुआ ! इस सत्र
में डॉ. प्रमिला वर्मा, डॉ. विद्या सिंह, डॉ. स्वामी विजयानंद, फ्लोरिडा अमेरिका से
आई हुई साहित्यकार आशा फिलिप, उज्बेकिस्तान के लेखक अबरार व थॉमस तथा डॉ. सविता
चड्ढा के वक्तव्य एवं डॉ. क्षमा पांडे व डॉ. राकेश सक्सेना जी का काव्य पाठ
उल्लेखनीय रहा !
कार्यक्रम विषय परक
था तथा सबके वक्तव्य इतने सारगर्भित थे कि लग रहा था सुनते ही जाएँ ! लेकिन घड़ी की
सूइयाँ किसीका इंतज़ार नहीं करतीं ! २ बजे तक लंच लेकर हमें ताशकंद के दर्शनीय
स्थलों की सैर के लिए निकलना भी था ! समय के पाबन्द हमारे गाइड मोहोम्मद ज़ियाद
अपनी बस लेकर आ चुके थे ! इसलिए ना चाहते हुए भी सम्मलेन के तीसरे सत्र को, जिसमें
प्रतिभागियों को काव्यपाठ और लघुकथा का वाचन करना था, २८ तारीख तक के लिए स्थगित
करना पड़ा ! दोनों सत्रों का संचालन मधु सक्सेना जी व आभा दवे ने किया ! श्रीमती
संतोष श्रीवास्तव जी ने आभार प्रदर्शन कर उस दिन के कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा
की ! मैं भी आज का संस्मरण यहीं समाप्त करती हूँ ! अगली कड़ी में ले चलूँगी आपको ताशकंद
के कुछ अत्यन्त खूबसूरत एवं महत्वपूर्ण स्थलों की सैर पर ! तब तक के लिये मुझे भी
आज्ञा दें !
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को "विजय का पर्व" (चर्चा अंक- 3483) पर भी होगी। --
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्रीजी !सादर वन्दे !
Deleteअगली किश्त अब कब आएगी इस की |
ReplyDeleteअब तो कई कड़ियाँ आ चुकी हैं आपने सारी पढ़ीं या नहीं ?
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