मैं रावण हूँ लेकिन
तुमने मुझे रक्तबीज बना दिया है
हर वर्ष जलाते हो मुझे
और मैं हर वर्ष फिर नया जन्म लेता हूँ
फिर से मारे जाने के लिए !
मेरा वध करने के लिए तुम्हें भी
हर साल जन्म लेना पड़ता है राम
तुमने ही मुझे अजर अमर बना दिया है !
हर साल जहाँ मेरी जली देह के
अंश धरा पर गिरते हैं
मेरा प्रतिशोध लेने के लिये
असंख्यों रावण फिर से
उस धरती पर जन्म ले लेते हैं !
लेकिन इनका वध करने के लिए
तुम तो एक ही रह जाते हो राम
कितने रावण मारोगे ?
क्यों न इस सिलसिले को यहीं रोक दें ?
इस बार अंतिम रूप से
मेरे पुतले को जला कर
मुझे मोक्ष दे दो
मैं भी हर साल जल जल कर
बहुत थक गया हूँ राम
अब मुझ पर कृपा करो
और इस धरा पर जो
असंख्यों जीवित सदेह रावण
सज्जनों का मुखौटा चढ़ाए
समाज में छिपे बैठे हैं
तुम उनके संहार पर
अपना ध्यान केन्द्रित करो !
मेरी इतनी विनती सुन लो राम
इस बार तुम मुझे
निर्माण और विध्वंस की इस
त्रासदी से स्थायी रूप से
मुक्ति दे दो !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteइस बार तुम मुझे
ReplyDeleteनिर्माण और विध्वंस की इस
त्रासदी से स्थायी रूप से
मुक्ति दे दो
सुंदर सृजन ,सादर नमन
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा -3484 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी ! सादर वन्दे !
Deleteसही कहा दी, हृदय में रावण को जगह दे रखी है और हर वर्ष रावण का पुतला जलाने का नाटक करते हैं। अब यह नाटक बंद ही होना चाहिए। वैसे भी प्रदूषण ही फैलता है इससे।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे मीना जी ! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !
Deleteआज पार्कों में, चौराहों पर, कालोनियों में या मैदानों में जो रावण के पुतले फूंके जाते हैं उनको फूंकने में अगुवाई करने वाले अधिकांश तो खुद बुराइयों के पुतले होते हैं ! उनकी तो खुद की अपनी लंकाऐं होती हैं, काम-क्रोध-मद-लोभ जैसी बुराइयों से भरपूर ! तो बुराई ही बुराई पर क्योंकर विजय पाएगी ?
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गगन जी ! इसीलिये इस खोखली प्रथा को अंत करने की इच्छा प्रकट की है क्योंकि अब यह तय करना मुश्किल होता जा रह़ा है कि रावण के मासूम काग़ज़ी पुतले पर असल जगत के 'राम' तीर चला रहे हैं या 'रावण' ! आभार आपका !
ReplyDeleteरावण दहन करते करते अब कोई आकर्षण शेष नहीं रहा है सही कहा है |
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