थरथराते पत्ते
झरती बूँदें
चित्र - गूगल से साभार
चित्र - गूगल से साभार
पिछले सप्ताह
बैंगलोर के होनहार युवा इंजीनियर की आत्महत्या ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है
! एक समय था जब समाज में स्त्री की बड़ी दयनीय दशा हुआ करती थी और अक्सर लड़की होने
की वजह से पहले तो अपने ही जन्मदाता माता-पिता के घर में उसके साथ भेद भाव किया
जाता था और बेमेल विवाह के बाद ससुराल में भी उसे भाँति-भाँति से प्रताड़ित किया
जाता था ! कभी दहेज़ कम लाने की वजह से, कभी संतान न होने की वजह से या संतान हुई
भी तो लड़की पैदा करने की वजह से बहू को ही तरह-तरह की मानसिक और शारीरिक यातनाएं
दी जाती थीं ! उन्हें इतने कष्ट दिए जाते थे कि कभी-कभी तो वे आत्महत्या करने जैसे
घातक कदम उठा लेती थीं ! कभी-कभी तो ससुराल में ही उन्हें ज़हर देकर मार दिया जाता
था या मिट्टी का तेल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया जाता था ! अगर यह सब न किया गया
हो तो उन्हें उनके मायके वापिस भेज दिया जाता था जहाँ उनका जीवन बड़ी ही दयनीय दशा
में पराश्रित होकर गुज़रता था ! यह वो समय था जब घर परिवार में स्त्रियों का दर्ज़ा
पुरुष से नीचा माना जाता था ! लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था ! ससुराल
में उनकी हैसियत नौकरानियों से भी बदतर होती थी ! इस विषय पर आधारित अनेकों
उपन्यास और कहानियाँ हमने भी पढ़ी हैं और आप सबने भी ज़रूर पढ़ी होंगी ! पिता की संपत्ति
में बेटी का कोई अधिकार नहीं होता था ! ससुराल में तो उसे इंसान ही नहीं समझा जाता
था इसलिए ज़मीन जायदाद में अधिकार की तो बात ही बेमानी थी ! स्त्रियों की इस
दुर्दशा को देखते हुए कुछ कड़े क़ानून स्त्रियों के हित में बनाए गए ! पिता की संपत्ति
में उनका अधिकार सुरक्षित किया गया, ससुराल में भी उनकी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए
पति व ससुर की संपत्ति में भी उनका हिस्सा सुरक्षित किया गया ! लड़कियों की शिक्षा
के लिए ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया गया ! उद्देश्य था कि ससुराल में अगर उन्हें
दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है तो उन्हें इतना आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया जाए
कि वे प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वतंत्र रूप से अलग रह कर भी आत्मसम्मान के साथ
अपना जीवन यापन कर सकें !
स्त्रियों को यह विशेषाधिकार भी दिया गया कि यदि वे दहेज़ प्रताड़ना या घरेलू हिंसा
का आरोप ससुराल वालों पर लगा कर मुकदमा दायर कर दें तो पुलिस ससुराल वालों को
तुरंत गिरफ्तार करे और उन्हें आसानी से बेल भी ना मिले ! इन प्रावधानों ने वास्तव
में कितनी अबलाओं को सबल बनाने में सहायता की इसके आँकड़े तो मेरे पास उपलब्ध नहीं
हैं लेकिन अपराधी प्रवृति की शातिर दिमाग की अनेकों स्त्रियों और उनके परिवार
वालों के हाथ करोड़ों की लॉटरी का टिकिट ज़रूर लग गया ! बहुओं बेटियों को इन्साफ
दिलाने की मुहिम में इन कानूनों का भरपूर दुरुपयोग होने लगा और अनेकों भले सज्जन
पतियों की और उनके परिवार वालों की ज़िंदगी नर्क बन गयी ! ये सारी व्यवस्थाएं और
क़ानून तभी तक ठीक थे जब तक इनका दुरुपयोग नहीं किया जाता था ! अब आँकड़े बताते हैं
कि हर साल हज़ारों की संख्या में झूठे केस दायर किये जाते हैं और न जाने कितने भद्र
पति सामाजिक प्रताड़ना और अपमान से बचने के लिए और पत्नी की अनाप-शनाप हर्जे खर्चे
की माँग को पूरा न कर सकने की स्थिति में अपनी जीवन लीला को समाप्त कर देने के
विकल्प को चुनने के लिए विवश हो जाते हैं !
लड़कियों को सबल सशक्त बनाने का अभियान इतना तेज़ हुआ कि ये लड़कियाँ कब सही-गलत, उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय की सीमा रेखा
को क्रॉस करके प्रताड़ित होने अबला नारी की भूमिका से बाहर निकल कर प्रताड़ित करने
वाली जल्लाद खलनायिका की भूमिका में आ गईं किसीको पता ही नहीं चला ! आजकल समाज में
लड़कियाँ ज़रा भी दीन हीन और कातर नहीं रह गई हैं ! नारी जाति में भी घटिया सोच और
आपराधिक प्रवृत्ति की अनेकों स्त्रियाँ हैं जिन्होंने इन कानूनों का दुरुपयोग कर
अनेकों भले और सज्जन पुरुषों की और अपने ससुराल वालों की नाक में दम कर दी है ! इन
दिनों अतुल सुभाष जी का जो केस मीडिया में छाया हुआ है वह इस बात का ज्वलंत उदाहरण
है ! स्त्री हो या पुरुष किसीका भी उत्पीड़न होना बहुत गलत है ! जब हर क्षेत्र में
नारी समान अधिकार की माँग रखती है तो इस क़ानून के तहत भी उसे कोई विशेषाधिकार
प्राप्त नहीं होना चाहिए ! पहले पत्नी को पति द्वारा गुज़ारा भत्ता दिलवाए जाने का
प्रावधान इसलिए रखा जाता था कि तब स्त्रियाँ आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित होती
थीं ! वे स्वयं न तो शिक्षित होती थीं न नौकरी ही करती थीं इसलिए पति से अलग होने
के बाद उनके व बच्चों के भरण पोषण में कोई दिक्कत न आये इसलिए यह व्यवस्था की गयी
थी ! लेकिन अब जब नारी हर क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष खड़ी है और कही-कहीं तो
उससे भी अधिक कमा रही है तो उसे गुज़ारा भत्ता किसलिए चाहिए ? यहाँ स्त्री का
स्वाभिमान आड़े क्यों नहीं आता ? उसे दोनों हाथों में लड्डू चाहिए ! खुद तो कमा ही
रही है पति को भी लूटना है ! पति बेचारा पत्नी की बेसिर पैर की माँगें पूरी करते-करते
ही बाबा जी बन जाए ! यह नितांत अनुचित है, गलत है ! एक सभ्य एवं संवेदनशील समाज इस
शाईलॉकी प्रवृत्ति का कतई समर्थन नहीं कर सकता ! मेरे विचार से जो सज़ा उत्पीड़न
करने पर पति को और उसके परिवार को दी जाती है वही सज़ा ऐसी पत्नी को भी दी जानी
चाहिए और उस पर भी सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए !
समस्या यह है
कि महिलाओं के हित में जो क़ानून बनाए गए हैं वे मुकदमा दायर करने वाली हर महिला को
समान रूप से लाभान्वित करने वाले हैं ! इन कानूनों में बदलाव लाने की ज़रुरत है !
कोई बीमार जब इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर उसकी बीमारी की गंभीरता
को जाँच परख कर उसे उतनी ही मिकदार की दवा देता है जो उसे स्वस्थ करने के लिए
आवश्यक हो ! साधारण खाँसी ज़ुकाम के मरीज़ को सीवियर निमोनिया की दवा तो नहीं दी जाएगी
ना ! इसमें संदेह नहीं है कि अभी भी हमारे समाज में अनेकों स्त्रियाँ ऐसी हैं
जिनकी स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है ! विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों
में जहाँ शिक्षा का प्रचार प्रसार अभी इतना नहीं हुआ है जितना शहरों में हुआ है और
जहाँ स्त्रियाँ अभी भी आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं !
मेरे विचार से 498-A के मुकदमों का फैसला करते
समय मुकदमा दायर करने वाली महिला की आर्थिक स्थिति के बारे में गहराई से संज्ञान
लेने की बहुत अधिक ज़रुरत है ! अगर वह नौकरी करती है तो उसको कितना वेतन मिलता है, अपने माता-पिता की सम्पत्ति में उसका कितना अधिकार है और
उसके घर वालों का आर्थिक स्तर क्या है ? फिर अलग होने के बाद अपने जिस पति का वह
दोहन करना चाहती है उसका वेतन कितना है और उसके दायित्व कितने हैं ! गुज़ारे भत्ते के
लिए पत्नी के द्वारा माँगी गयी राशि उसे देने के बाद उसके पास जीवन निर्वाह के लिए
क्या बचेगा और कितना बचेगा ! पत्नी तो छोड़ कर चली गई लेकिन उसकी जो ज़िम्मेदारी
अपने बूढ़े माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए हैं उन्हें तो और कोई नहीं
बाँटने वाला है ! ऐसे में निष्पक्ष और उचित न्याय यही होगा कि ऐसे केसेज़ को
निश्चित समय सीमा के अन्दर निपटाया जाए और पत्नी की आर्थिक स्थिति को भली प्रकार से
जानने समझने के बाद ही गुज़ारे भत्ते की राशि को तय किया जाए ! जहाँ पत्नी पूरी तरह
से सक्षम हो और किसी अतिरिक्त आर्थिक सहायता की उसे ज़रुरत न हो तो वहाँ पति को इस
मुसीबत से बख्श भी दिया जाना चाहिए ! सामान अधिकार के लिए ऊँची आवाज़ में चिल्लाने
वाली नारियों को सामान रूप से कर्तव्य निभाने के लिए भी तत्पर होना चाहिए ! अगर
बच्चों की कस्टडी पिता के पास है और अगर पिता आर्थिक रूप से पूरी तरह से सक्षम
नहीं है तो सक्षम पत्नी को बच्चों के भरण पोषण के लिए पति को आर्थिक मदद देनी
चाहिए ! सही अर्थों में समान अधिकार की अवधारणा तब ही साकार होगी ! यह नहीं कि
लाखों करोड़ों की दौलत गुज़ारे भत्ते के नाम से पति से ही वसूली जाए और उसे भिखारी
बना कर सड़क पर फेंक दिया जाए ! जिस दिन क़ानून में इस आलोक में परिवर्तन होंगे और जब
लोग देखेंगे कि इस तरह मुकदमा दायर करने से उनके पास किसी लॉटरी का टिकिट नहीं आने
वाला है और उन्हें कोई विशेष फ़ायदा नहीं होने वाला है तो झूठे केसेज़ बना कर पतियों
का दोहन करने का और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का यह खौफनाक दौर ज़रूर
थमेगा !
साधना वैद
वर्तमान में जैसी शिक्षा
प्रणाली चलन में है उसे हम किसी भी तरह से बालोपयोगी तो बिलकुल भी नहीं है ! इस
शिक्षा प्रणाली ने बच्चों से उनका बचपन और खुशी छीन ली है ! बच्चे मशीन की तरह इस
शिक्षा प्रणाली के जाल में उलझ कर रह गए हैं और सुबह से शाम तक किताबों का बोझ
उठाये शहर की सडकों पर दौड़ते भागते दिखाई देते हैं !
पहले साल में केवल तीन बार
परीक्षा लेने का चलन था ! तिमाही, छ:माही और वार्षिक
परीक्षाएं हुआ करती थीं ! इम्तहान के दिनों में छात्र मेहनत करके परीक्षा दे आते
थे और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर अगली कक्षा में प्रवेश लेते थे ! पूरे साल
बच्चे खूब खुश रहते थे ! इनडोर, आउटडोर हर तरह के खूब खेल
खेलते थे और अपने बचपन के सखा सखियों के संग खूब आनंदमय वातावरण का लाभ भी उठाते
थे ! हर समय परीक्षा की तलवार सर पर लटकी हुई नहीं होती थी तो खूब बालोपयोगी पत्र
पत्रिकाओं और अपनी अवस्था के अनुसार साहित्यिक किताबों को भी पढ़ा करते थे ! हमने
भी अपने छात्र जीवन में अनेक उपन्यास और श्रेष्ठ कहानियाँ अदि पढ़ी हैं ! लेकिन अब
जो हर समय टेस्ट होते रहते हैं और इनके मार्क्स फाइनल रिज़ल्ट में जुड़ने का दबाव
बच्चों पर बनाया जाता है उसकी वजह से बच्चों को ज़रा भी समय नहीं मिल पाता है !
आजकल कोचिंग का भी प्रचलन
भी बहुत बढ़ गया है ! शिक्षा भी अब व्यापार बन चुकी है ! पहले वे ही थोड़े से बच्चे
ट्यूशन पढ़ते थे जो किसी एकाध विषय में कमज़ोर होते थे और कक्षा में बाकी बच्चों से
पढाई में पिछड़ जाते थे ! लेकिन अब तो बच्चा कितना भी होशियार हो ! कक्षा में भले
ही सबसे अधिक प्रतिभाशाली या टॉपर हो कोचिंग क्लासेज़ में तो उसे प्रवेश लेना ही
होगा क्योंकि इन दिनों यही चलन है ! माता पिता पर दोहरा भार पड़ जाता है ! एक तो
स्कूलों की फीस ही इतनी अधिक होती है कि सामान्य आमदनी के लोगों के पसीने छूट जाते
हैं उस पर कोचिंग कक्षाओं की फीस और देनी पड़ जाती है चाहे बच्चे को कोचिंग की
ज़रुरत हो या न हो ! कोचिंग कक्षाओं में बच्चों को भेजना आजकल फैशन की तरह हो गया
है ! सुबह के स्कूल गए हुए बच्चे थके हारे स्कूल से तीसरे पहर तक घर आते हैं ! ढंग
से खाना भी नहीं खा पाते कि कोचिंग क्लासेज़ का समय हो जाता है ! देर रात तक अगले
दिन के टेस्ट की तैयारी में जुटे रहते हैं ! अब परीक्षाओं में हाई स्कोर अंक लाने
का भी बहुत प्रेशर है बच्चों पर ! 90% अंक आने के बाद भी बच्चों को फूट-फूट कर
रोते हुए देखा है मैंने ! हमारे ज़माने में 50% से ऊपर अंक लाने वाले बच्चों को
बहुत होशियार समझा जाता था और 60% से ऊपर अंक लाकर प्रथम श्रेणी में पास होने वाले
बच्चे बहुत प्रतिभाशाली और मेधावी माने जाते थे !
आज की परीक्षा पद्धति ने
बच्चों की मुस्कराहट छीन ली है ! अधिकतर बच्चे अवसादग्रस्त रहने लगे हैं और
चिड़चिड़े व एकान्तप्रिय होते जा रहे हैं ! न वे परिवार के साथ अच्छा वक्त बिता पाते
हैं न दोस्तों के साथ खेल के मैदानों में और पार्क्स में दिखाई देते हैं ! इसका
मूल्य वे अपने स्वास्थ्य को दाँव पर लगा कर चुका रहे हैं ! अगर घर में जल्दबाजी
में ठीक से खाना नहीं खाया होता है तो वे शाम को कोचिंग क्लासेज़ के बाद अपनी मित्र
मंडली के साथ बाहर का हानिकारक जंक फ़ूड खाने की बुरी आदत की ओर प्रवृत्त हो रहे
हैं ! कोचिंग क्लासेस के आस-पास अनेकों खाने पीने के स्टॉल्स इन दिनों दिखाई देने
लगे हैं ! इसीका दुष्परिणाम है कि आजकल बहुत कम उम्र के युवाओं को हार्ट, शुगर, ब्लड प्रेशर आदि की समस्याएँ होने लगी हैं ! इसकी एक वजह
यह भी है कि इस उम्र में बच्चों को जो शारीरिक व्यायाम आदि करना चाहिए उसके लिए
उनके पास समय ही नहीं रहता ! शिक्षा प्रणाली और परीक्षाओं की रूपरेखा इस प्रकार की
होनी चाहिए कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके न कि वे केवल किताबी कीड़ा ही बन
कर रह जाएँ ! देश के उज्जवल भविष्य के लिए और सर्वांगीण विकास के लिए आज के युवाओं
का स्वस्थ होना परम आवश्यक है ! कहते हैं स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग होता है
!
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
कौल पिता का,
भटके जंगलों में, सन्यासी राम
निभाते रहे,
दशरथ का वादा, करुणाधाम
हर ली सीता, क्रोधित रावण ने, हुआ अनर्थ
जलने लगी, प्रतिशोध
की आग, छिड़ा
संग्राम !
पन्नों के बीच, सूखी सी पाँखुरियाँ,
गीली सी यादें,
तुम्हारी छवि, जब
आती है याद, जगाती
रातें,
भीगी सड़क, रिमझिम
फुहार, हाथों में हाथ
लम्बी सी सैर, आकाश पाताल की, बातें ही
बातें !
ओफ्फोह दादू - दिल छू लेने वाली कविता जो याद दिलाती है बचपन के दिन
क्या आप भी अपने दादा की यादों में खो जाते हैं? साधना वैद की यह कविता दादा-पोते के रिश्ते को एक खूबसूरत तरीके से पेश करती है। पोते की जिज्ञासा, दादा की ममता और दोनों के बीच का प्यार, ये सभी भावनाएं इस कविता में बखूबी उभर कर आती हैं।
अपनी बचपन की यादों को ताजा करें और इस कविता के माध्यम से अपने दादा को याद करें।
दूर भगा कर तम हर घर को
जगर मगर कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !
रहे न कोई घर का कोना
कहीं उपेक्षित, तम आच्छादित
हो जाए मन का हर कोना
हर्षित, गर्वित और आह्लादित
रच कर सुन्दर एक रंगोली
घर पावन कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !
गूँथ आम्र पल्लव से सुन्दर
द्वारे वन्दनवार सजाएं
तेल और बाती से रच कर
घर आँगन में दीप जलाएं
माँ लक्ष्मी के स्वागत में हम
घर मंदिर कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !
जैसे आज सजाया घर को
मन का भी श्रृंगार करें
ममता, करुणा, दया भाव से
अतिथि का सत्कार करें
द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मिटा कर
मन निर्मल कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !
दौज का टीका
भैया के भाल पर
दमके ऐसे
चंदा सूरज
नील गगन पर
चमके जैसे
भैया सा स्नेही
सकल जगत में
दूजा न कोई
सौभाग्य जगा
पाकर तुझे भैया
खुशियाँ बोई
स्नेह की डोर
कस कर थामना
दुलारे भैया
पार उतारो
थाम के पतवार
जीवन नैया
दौज का टीका
दीप्त हो भाल पर
सूर्य सामान
शीतल करे
अन्तर की तपन
चन्द्र सामान
रोली अक्षत
सजे भाल पर ज्यों
सूरज चाँद
स्नेह डोर से
बहना ने लिया है
भैया को बाँध !
साधना वैद
बुधिया सुबह
सवेरे जब खेत पर पानी लगाने पहुँचा तो हैरान रह गया उसके खेत में जाने वाली नहर की
धार को साथ वाले खेत के नए मालिक ने खूब ऊँची मेंड़ बना कर रोक लिया था और अपने खेत
की और मोड़ लिया था ! वहाँ पहलवान किस्म के चार हट्टे कट्टे आदमी भी मुस्तैदी से
पहरा दे रहे थे ! बुधिया ने प्रतिवाद किया तो उन्होंने उसे डपट कर हड़का दिया !
पहले तो बगल वाले खेत का मालिक रामेसर था ! उसका जिगरी दोस्त ! दोनों बारी-बारी से
अपने खेत में पानी लगा लेते थे ! कोई झगड़ा कोई तकरार कभी नहीं हुए ! गले तक कर्जे
में डूबे रामेसर ने पिछले हफ्ते अपना खेत किसी जगत सिंह को बेच दिया ! और अपने
परिवार के साथ शहर की ओर पलायन कर गया मेहनत मजदूरी करके बाल बच्चों का पेट भरने
के लिए ! बुधिया के सर पर संकट के बादल मंडरा रहे थे ! क्या करे किससे मदद माँगे !
पिछले साल भी सूखे की वजह से सारी फसल खराब हो गयी थी ! बहुत नुक्सान उठाना पडा था
उसे भी ! इस साल भी ठीक से सिंचाई नहीं हुई तो वह तो बर्बाद हो जाएगा !
दुखी चिंतित बुधिया मुँह लटकाए घर आया तो बापू ने सलाह दी विधायक जी के पास जाकर
अपनी विपदा कहे ! वो कुछ न कुछ सहायता जरूर करेंगे ! बुधिया को कुछ धीरज बँधा !
पास पड़ोस के दो तीन बुजुर्गों को लेकर वह विधायक जी का पता पूछते हुए उनके बंगले
तक पहुँचा ! गेट पर चार बंदूकधारी पहरा दे रहे थे और सुनहरे अक्षरों में नेम प्लेट
पर विधायक जी का नाम चमक रहा था, ‘जगत सिंह चौधरी’ !
साधना वैद
किसी भी लेखक के लेखन में उसके व्यक्तित्व या उसके आचरण की झलक दिखना आवश्यक तो नहीं होता फिर हम उसे ढूँढने की कोशिश ही क्यों करते हैं ! लेखक सर्वप्रथम एक इंसान है और लेखन उसकी रूचि, शौक या व्यवसाय कुछ भी समझ लीजिये ! ये दोनों ही चीज़ें एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं और किसी भी तरह से एक दूसरे को तनिक भी प्रभावित नहीं करतीं या यूँ कहिये कि उन्हें एक दूसरे को प्रभावित करना नहीं चाहिए !
किसी भी लेखक के लेखन में उसका अपना व्यक्तित्व झलक सकता है और उसकी अपनी सोच,
उसकी मानसिकता एवं उसकी प्राथमिकताएं प्रतिबिंबित अवश्य हो सकती हैं लेकिन उसके शत
प्रतिशत लेखन में ऐसा ही हो यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं ! कोई भी लेखक सदैव एक ही
साँचे में ढाल कर लेखन कैसे कर सकता है ! लेखन के विषय विविध होंगे तो उसका
प्रारूप भी भिन्न ही होगा ! सामाजिक सरोकारों के प्रति साहित्यकार की प्रतिबद्धता
सर्व विदित भी है और सर्वमान्य भी ! कभी उसकी रचनाएं आत्मपरक हो सकती हैं तो कभी नितांत
तटस्थ और निर्वैयक्तिक ! कभी वह भावुक होकर लिखता है तो कभी वस्तुपरक होकर ! दोनों
ही सूरतों में उसका लेखन भिन्न होगा ! जो व्यक्ति पर्यटन को विषय बना कर लिख रहा
है या किसी भवन की वास्तुकला पर लिख रहा है जो कि एक विशुद्ध तथ्यपरक विषय है
उसमें उसके आचरण की झलक देखने की कोशिश बेमानी ही होगी ! ऐसा मेरा विचार है ! वैसे
एक लेखक की कुछ रचनाओं को पढ़ कर उसके सोच, उसकी मानसिकता
और उसके आत्मिक सौन्दर्य के दर्शन तो अवश्य ही हो जाते हैं इसमें भी संदेह नहीं है
तभी तो हम बिना मिले ही कतिपय लेखकों के मुरीद हो जाते हैं और अपने हृदय में उनके
लिए कोई न कोई कोना अवश्य ही सुरक्षित कर लेते हैं ! आशा करते हैं कि उनका आचरण भी
उतना ही श्रेष्ठ होगा जितना उनका लेखन है !
एक बात और जो कहने से रह गई उसे और कह दूँ !
कुछ लेखकों की छवि और लोकप्रियता जनमानस में उनके लेखन व रचनाओं के माध्यम से बनती
है ! जैसे कि हास्य रस के दो बड़े स्तम्भ हैं काका हाथरसी एवं सुरेन्द्र शर्मा जी !
दोनों ही दिग्गज रचनाकार माने जाते हैं और पाठकों एवं श्रोताओं के बीच गहरी पैठ
बनाए हुए हैं ! दोनों ने ही अपनी रचनाओं में अपनी पत्नी की इंतहा की हद तक हँसी
उड़ाई है ! काका हाथरसी की कविताओं में 'काकी' और सुरेन्द्र शर्मा जी की कविताओं में उनकी 'घराड़ी' सारी मुसीबतों की
जड़ रही हैं तो क्या हम यह समझ लें कि वे अपनी पत्नियों का सम्मान नहीं करते या
उनकी नज़रों में उनकी पत्नियाँ केवल मूर्ख, अज्ञानी और उपहास
की पात्र ही हैं ! लेखक केवल कभी-कभी पाठकों को रिझाने के लिए, उनके अवसाद को कम कर उन्हें गुदगुदाने के लिए या उन्हें खुश
करने के लिए भी लिखते हैं ! लेकिन यह कतई ज़रूरी नहीं कि उनकी सोच भी वैसी ही हो और
उनका आचरण भी वैसा ही हो !
साधना वैद
आज कक्षा में
टीचर बहुत खुश दिखाई दे रही थीं | उन्होंने इशारा करके रोहित को खड़ा किया |
“रोहित, तुम
अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद क्या बनना चाहते हो ?”
“जी टीचर, मैं डॉक्टर बन कर दीन दुखियों और निर्धन रोगियों का मुफ्त
में उपचार कर मानवता की सेवा करना चाहता हूँ |”
“शाबाश ! और
आकाश तुम ?”
“टीचर, मैं
पायलट बनना चाहता हूँ और देश विदेश के सभी प्रसिद्ध स्थानों को देखना चाहता हूँ |”
इसी तरह, कोई जज, कोई वकील, कोई इंजीनियर,
कोई स्पेस साइंटिस्ट, कोई कलाकार तो कोई अध्यापक बनना चाहता था और सबके पास अपने
सबल तर्क भी थे जो उनकी महत्वाकांक्षा का समर्थन कर रहे थे | टीचर बहुत खुश हो रही
थीं अपने विद्यार्थियों की खूबसूरत सपनों की उड़ान और उनकी सुलझी हुई सोच को देख कर
|
अंत में बारी
आई देवांश की | टीचर ने उससे भी यही सवाल किया |
“टीचर, मैं साधू बाबा बनना चाहता हूँ |”
टीचर के साथ
सारे बच्चे हैरान थे !
“और भला तुम
साधू बाबा क्यों बनना चाहते हो बताओगे |” टीचर ने पूछा |
“टीचर, सबसे बड़ा फ़ायदा तो साधू बाबा बनने में ही है | कहीं कोई डिग्री नहीं दिखानी पड़ती, कोई एंट्रेंस इम्तहान पास नहीं करना पड़ता, किसी को रिश्वत नहीं देनी पड़ती | बस किराए के कपड़े पहन कर, दो चार बढ़िया बढ़िया भजन याद कर कीर्तन और सत्संग के नाम पर थोड़ी सी भीड़ जुटा लो एक दो बार, आपके तो समर्थक बढ़ते ही जायेंगे | पुराने संतों के उपदेशों को सुन कर चार छ: दमदार डायलॉग्स याद कर लो | इस धंधे में बड़ी इज्ज़त मिलती है | आप चाहे तीस बरस के भी न हों बड़े बूढ़े बुज़ुर्ग भक्त आपके चरणों में लोट लगाने को तैयार रहते हैं | भेंट पूजा उपहार में इतने फल फ्रूट मेवा मिठाई और तरह तरह के व्यंजन आते हैं कि कितना भी खाओ खिलाओ ख़त्म ही नहीं होते | दान पेटी हर समय रुपयों से भरी रहती है और बिन माँगे पुलिस प्रशासन आपकी सेवा सुरक्षा में लगा रहता है | बड़े बड़े नेता आपके आगे सर झुकाते हैं और हर समाचार पत्र में, टी वी के हर चैनल पर आपके ही इंटरव्यू आते रहते हैं | इसके अलावा लोग हज़ारों रुपयों के टिकिट खरीद कर आपकी सभा में आने के लिए हफ़्तों पहले से बुकिंग कराते हैं | जितना पैसा ये जीवन भर नौकरी करके नहीं कमा पायेंगे उससे कहीं अधिक मेरे पास बिना कुछ करे धरे एक सभा में आ जाएगा ! इंसान को इससे ज़्यादह और क्या चाहिए | बताइये टीचर मेरा फ़ैसला इन सबसे बढ़िया है या नहीं ?”
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
दिग दिगंत
सुरभित प्रेम से
दिव्य है भाव
सागर से गहरा
आकाश से व्यापक !
प्रीत की ज्योत
सदा बाले रखना
उर अंतर
तृप्त रहेगा मन
आलोकित जीवन !
रही निहार
खिड़की पर खड़ी
बूंदों की लड़ी
कब आयेगी पिया
तेरे आने की घड़ी !
प्रेम के रंग
भावों की पिचकारी
रंग दे पिया
अपने ही रंग में
मेरी चूनर कोरी !
दिव्य प्रकाश
प्रेम मय जगत
धरा प्रफुल्ल
करे अभिनंदन
नवोदित रवि का !
रास की रात
मंत्रमुग्ध राधिका
विमुग्ध कान्हा
हर्षित ग्वाल बाल
औ’ आल्हादित धारा !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
बच्चों में अनुशासन की कमी – कारण और निदान
आजकल के बच्चों में मुख्य रूप से किशोर वय के बच्चों में अनुशासनहीनता एवं
निरंकुशता के दर्शन कुछ अधिक ही हो रहे हैं ! उसका मुख्य कारण भी घर परिवार का
वातावरण है और इसका निदान भी घर में ही है ! संयुक्त परिवारों का टूटना इसका सबसे
बड़ा कारण है ! जहाँ माता पिता दोनों ही काम करने वाले होते हैं वहाँ बच्चों की
अच्छी परवरिश की समस्या आ जाती है ! लेकिन उन परिवारों में जहाँ घर में और भी कई
सदस्य रहते हैं इसका निदान आसानी से हो जाता है क्योंकि परिवार के वे सभी सदस्य बच्चों
का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं उनमें अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करते हैं
और बच्चे भी उनका कहना मानते हैं उनका आदर करते हैं ! लेकिन जहाँ संयुक्त परिवार
टूट गए हैं घर के बड़े बुजुर्गों का स्थान अल्प शिक्षित नौकरों, आया व नैनीज़ वगैरह
ने ले लिया है जिनका एक मात्र सरोकार सिर्फ अपने वेतन से होता है बच्चों की परवरिश
से नहीं ! अक्सर इनमें से अधिकाँश नौकर स्वयं बुरी आदतों के शिकार होते हैं, जैसे
झूठ बोलना, चोरी करना, बहाने बनाना
आदि और बच्चों को भी वे ही यही बातें सिखाते हैं ! माता पिता अपने बच्चों पर पूरी
तरह से ध्यान नहीं दे पाते इस अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए वे बच्चों की हर
सही गलत माँग को पूरा करने के लिए बाध्य रहते हैं और बच्चे इस मौके का फ़ायदा उठाते
हैं ! घर में बच्चों पर कोई अंकुश नहीं होता तो वे अपने फोन पर या टी वी पर अनर्गल
कार्यक्रम देख कर अपना मनोरंजन करते हैं जिसका उनके मन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव
पड़ता है ! आजकल बच्चों में स्वेच्छाचारिता व् एकान्तप्रियता की भावना भी प्रबल रूप
से घर करती जा रही है ! वे अपने पसंद के लोगों के अलावा अन्य किसीसे से बात करना
मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं करते ! कोई घर आ जाए तो कमरे से भी बाहर नहीं आते ! उन्हें
मँहगे मँहगे वीडियो गेम्स और बाहर दोस्तों के साथ सैर सपाटा करने में ही आनंद आता
है जो बिलकुल गलत है ! वे किसीसे आदरपूर्वक बात नहीं करते !
इन समस्याओं के निदान माता पिता के हाथ में ही हैं ! सबसे पहले वे अपना आचरण
सुधारें ! बच्चों की पहली पाठशाला घर में ही होती है ! बच्चों को घर के सभी
सदस्यों का आदर करने की और उनकी बात मानने की शिक्षा दें ! बच्चों के दोस्तों पर भी
सतर्क नज़र रखें एवं उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में भी जानें ! अक्सर टूटे
परिवारों के बच्चे अस्वस्थ मानसिकता के शिकार हो जाते हैं और ऐसे बच्चों का साथ
आपके बच्चे पर भी बुरा प्रभाव डाल सकता है ! घर में कुछ अच्छी परम्पराओं का
प्रतिपादन करें और स्वयं भी उनका पालन करें ! शाम का समय सब साथ बैठ कर खाना खाएं
! खाने के समय टेलीफोन का प्रयोग बिलकुल वर्जित कर दें ! बच्चों के हाथों से घर के
अन्य सदस्यों को खाना परसवायें ! बुज़ुर्ग अगर घर में हैं तो प्रतिदिन उनके पास कुछ
समय बैठने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें ! इस बात का विशेष ध्यान रखें कि
बच्चे उनका अनादर न करें ! बच्चों को उनके कर्तव्यों का भान अवश्य कराते रहें ताकि
उनमें अच्छे संस्कारों की नींव पड़े और वे अच्छे इंसान बनें ! उन्हें जो भी समझाएं
प्यार से समझाएं ताकि वे उसे मन से आत्मसात करें चिढ़ कर नहीं ! क्योंकि जिन बातों
को मन से नहीं किया जाता उनका असर भी अस्थाई ही होता है ! स्वयं भी बच्चों के
सामने नियंत्रित रहें और किसीसे अपमानजनक भाषा में बात न करें ! आजकल असभ्यता और
बदतमीजी को आधुनिकता और बोल्डनेस का पर्याय समझा जाने लगा है !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
रिंगटोन से ही
पहचान गयी सविता ! यह सुपर्ण का ही फोन है ! मन उदास था कि इस बार क्रिसमस वेकेशंस
में वह होस्टल से घर नहीं आ रहा था ! अपने दोस्त के साथ उसने यूरोप के कुछ बहुत
खूबसूरत स्थान देखने का प्रोग्राम बना लिया था ! सविता को फ़िक्र थी यूरोप में बहुत
सर्दी होगी ! सुपर्ण के पास तो पर्याप्त गरम कपड़े होंगे भी नहीं ! मुम्बई में
सर्दी पड़ती ही कहाँ है ! उसे कह दूँगी न हो तो वहीं से कुछ खरीद ले या यहीं से कुछ
बढ़िया वाले कपड़े खरीद कर भेज देती हूँ ! इसी उधेड़बुन में उलझा था सविता का दिमाग !
अच्छा हुआ सुपर्ण का फोन आ गया ! उसने जल्दी से दौड़ कर फोन उठाया !
“हाँ बेटा बोलो
! तुम्हारे एयर टिकिट्स बुक हो गए ? किस तारीख के हुए हैं ? मैं सोच रही थी पापा
का नीला वाला ओवरकोट और कुछ नए एक्स्ट्रीम ठण्ड में पहनने वाले गरम कपड़े तुम्हारे
पास भेज दूँ ! वहाँ तो उन दिनों गज़ब की ठण्ड होगी ना |”
“रुको ना मम्मी
! इस सबकी कोई ज़रुरत नहीं है हम कहीं नहीं जा रहे !” सविता हतप्रभ थी !
“क्यों क्या
हुआ ? अभी तक तो तुम बहुत उत्साह में थे ! पैसे कम पड़ रहे हैं क्या ? मैं भेज
दूँगी न और ! क्या बात है सब ठीक तो है ?”
“नहीं मम्मी !
फरहान के साथ यूक्रेन की राजधानी कीव जाने का प्लान था हम तीन दोस्तों का ! बहुत
ही खूबसूरत शहर था वो ! सारी दुनिया से लोग पढ़ने आते हैं वहाँ ! लेकिन पिछले
शुक्रवार के हमले में कीव के उस इलाके में बमबारी हुई जहाँ फरहान का सारा परिवार
रहता था ! सुना है वह हिस्सा बिलकुल तबाह हो गया है ! मम्मी फरहान का चार पाँच
मंजिला शानदार घर भी तहस नहस हो गया और उसके माता पिता चाचा चाची, भाई बहन सब इस हमले में मारे गए ! अब उसके पास न घर रहा
जाने के लिए न परिवार !” सुपर्ण का गला भर आया था !
“मम्मी इसीलिये मैं भी इस बार घर नहीं आउँगा ! हम तीन चार दोस्त यही रहेंगे फरहान
के साथ मुम्बई में ताकि वह अकेला न हो जाये !”
“नहीं बेटा ! तुम घर ज़रूर आओगे और अकेले नहीं आओगे फरहान को साथ लेकर आओगे ! उससे
कहना यह घर भी तुम्हारा ही है और यह परिवार भी !” सविता की आवाज़ में दृढ़ता भी थी
और अकथनीय प्यार भी !
साधना वैद
आज दुनिया में
हर चीज़ बिकाऊ हो चुकी है
हवा से लेकर पानी तक
खुशबू से लेकर मुस्कान तक
चितवन से लेकर चाल तक
लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है
जो अनमोल होते हुए भी
बिलकुल बिकाऊ नहीं है
जो संसार में
सबसे कीमती होते हुए भी
नितांत नि:शुल्क है
लेकिन जिसकी कद्र करना
आज का इंसान भूल गया है
जिसे एक कोने में उपेक्षा से डाल कर
इंसान ने उससे नज़रें फेर ली हैं
वह है माता पिता का प्यार
माता पिता का आशीर्वाद
माता पिता का सान्निध्य !
कब समझेगा यह मूरख इंसान
यह वह अनमोल वरदान है
जो कभी बिकाऊ नहीं हो सकता
जिसका मोल इस संसार में
कभी कोई लगा ही नहीं सकता
क्योंकि उसे
बिलकुल मुफ्त
अबाध मात्रा में पाया तो जा सकता है
लेकिन उसका अल्पांश भी
खरीदने की औकात
किसी में नहीं है !
साधना वैद