“अरे पकड़ लपक के राजू ! जाने ना पाए ! धर के लगा पीठ पे चार छ: लातें ! नंबर नोट कर
लीयो बाइक का ! कस के पकड़ कर रखियो आ रहे
हैं हम भी ! सारी हेकड़ी निकालते हैं सा....... की!”
खिड़की के बाहर से कॉलोनी के फुर्सतिया लड़कों के
चिल्लाने और भागने दौड़ने की आवाजें आईं तो बिट्टू ने झाँक कर खिड़की से देखा और
एकदम उसने भी दरवाज़े के बाहर सरपट दौड़ लगा दी !
“अरे अब तू कहाँ जा रहा है ?” बिट्टू की माँ उर्मिला
गुस्से से बौखला गयीं !
“चैन नहीं है ज़रा भी इन कमबख्ती मारों को !
सारे दिन सड़कों पर डोलते हैं ! ना पढ़ना न लिखना बस आवारागर्दी करा लो सारे दिन !
खुद तो बिगड़े हैं ही हमारे बिट्टू को भी बिगाड़े दे रहे हैं ! कोई न कोई खुराफात
चलती ही रहती है इनके दिमाग में ! बिट्टू के पापा से कह कर एक बार थाने में शिकायत
करवाउँगी तब पीछा छूटेगा इन लफंगों से !” बिट्टू की माँ का गुस्से के मारे खून खौल
रहा था ! कल बिट्टू का अंग्रेज़ी का इम्तहान है !
तभी अपनी बहन गुड़िया को सहारा देकर लाते हुए
बिट्टू ने कमरे में प्रवेश किया ! उसके साथ कॉलोनी के वही ‘फुरसतिया लफंगे’ दोस्त
भी थे ! गुड़िया का दुपट्टा तार तार हो रहा था ! कोहनी से खून बह रहा था और घुटने
छिल गए थे ! सहमी हुई गुड़िया ज़ार ज़ार रो रही थी ! उर्मिला ने घबरा कर गुड़िया को
सम्हाला ! “ये क्या हो गया ? ऐसी हालत कैसे हो गई तेरी गुड़िया ?”
“अम्माँ बदमाश इसका पीछा करते करते यहाँ तक आ
गए थे ! वो तो अच्छा हुआ इन लोगों ने समय रहते देख लिया और उन गुंडों को पकड़ लिया
! अभी थाने में हो रही होगी उनकी जम के ठुकाई ! राजू और मोहन लेकर गए हैं उन्हें
थाने !”
उर्मिला का चेहरा घबराहट से फक हो गया था ! दिल
से दुआएँ निकल रहीं थी ‘फ़ुरसतिया लफंगे’ लड़कों के लिए ! “साक्षात हनुमान का अवतार हैं ये
तो ! खूब फलो फूलो बच्चों ! ऐसे ही सबका सहारा बनो ! भगवान् तुम्हें खूब तरक्की दे
तुम्हारी हर आस पूरी करे ! जो तुम न होते तो आज जाने क्या हो जाता !” उर्मिला का
गला रुँध हुआ था और आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे !
साधना वैद
Thanks for such , content. Really interesting post.
ReplyDeleteThank you so much Vicky Ji. Welcome on my blog .
Deleteहार्दिक धन्यवाद पम्मी जी !सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सही।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteवाह!साधना जी ,बहुत सुंदर । फुरसतिया लफंगे बडा नेक काम कर गए ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअच्छी कहानी है दीदी .असल में , जो बुरे दिखते हैं कई बार हमारी नज़र उनके बारे में धोखा खा जाती है
ReplyDeleteअरे वाह गिरिजा जी ! आज आपके कदम मेरे ब्लॉग पर पड़े मन मुदित हुआ ! स्वागत है आपका ! दिल से आभार आपका !
Deleteवाह साधना जी बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत अच्छी कहानी है दीदी। कई बार नज़रें और समझ दोनों धोखा खा जाती हैं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी !बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteउम्दा कहानी |
ReplyDeletevery nice story
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