ना कोई आवाज़, ना आहट, ना कदमों के निशाँ
साथ अपने साये के गुमसुम चली जाती हूँ मैं !
राह में मुश्किल बहुत सी हैं खड़ी यह है पता,
तुम न दोगे साथ मेरा बात यह भी है पता,
मैं अकेली ही बहुत हूँ मुश्किलों के वास्ते,
मुँह छिपा कर तुम कहाँ बैठे हो यह तो दो बता !
भावनाओं के भँवर में डूबती जाती हूँ मैं,
वंचनाओं की डगर पर भटकती जाती हूँ मैं,
सूखती जाती हैं कलियाँ आस और विश्वास की,
वेदनाओं की अगन में झुलसती जाती हूँ मैं !
पर मुझे अब कोई भी विप्लव डरा सकता नहीं,
कोई भी तूफ़ान मेरा सर झुका सकता नहीं,
मैं धधकती आग हूँ सब कुछ जलाने के लिए,
कोई भी आवेश अब तिल भर हिला सकता नहीं !
इस भँवर में डूब कर खुद ही उबर जाती हूँ मैं,
वंचना की कैद से बाहर निकल आती हूँ मैं,
सींच दीं मैंने वो कलियाँ आस और विश्वास की,
अगन में तप कर निखर कर दमकती जाती हूँ मैं !
यूँ किसी के रहम पर जीना मेरी फितरत नहीं,
सर झुका कर याचना करना मेरी आदत नहीं,
दफ़न करके दुःख सारे दर्द की गहराई में ,
थाम कर उँगली स्वयम् की खुद बढ़ी जाती हूँ मैं !
ना कोई आवाज़, ना आहट ना कदमों के निशाँ
साथ अपने साये के गुमसुम चली जाती हूँ मैं !
साधना वैद
इस भँवर में डूब कर खुद ही उबर जाती हूँ मैं,
ReplyDeleteवंचना की कैद से बाहर निकल आती हूँ मैं,
सींच दीं मैंने वो कलियाँ आस और विश्वास की,
अगन में तप कर निखर कर दमकती जाती हूँ मैं !
यूँ किसी के रहम पर जीना मेरी फितरत नहीं,
सर झुका कर याचना करना मेरी आदत नहीं,
दफ़न करके दुःख सारे दर्द की गहराई में ,
थाम कर उँगली स्वयम् की खुद बढ़ी जाती हूँ मैं !
सकारात्मक सोच से परिपूर्ण ...अत्यधिक प्रभावशाली रचना !
आभार
मैं अकेली ही बहुत हूँ मुश्किलों के वास्ते,
ReplyDeleteमुँह छिपा कर तुम कहाँ बैठे हो यह तो दो बता !
यूँ किसी के रहम पर जीना मेरी फितरत नहीं,
सर झुका कर याचना करना मेरी आदत नहीं,
दफ़न करके दुःख सारे दर्द की गहराई में ,
थाम कर उँगली स्वयम् की खुद बढ़ी जाती हूँ मैं !
बहुत सुंदर, एक आत्मविश्वास से ओतप्रोत कविता ।
बहुत सुंदर सोच लिए प्रस्तुति |शब्द चयन मन को छू जाता हैं |
ReplyDeleteबधाई
प्रभावशाली रचना! बहुत बेहतरीन!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteहिन्दी की प्रगति से देश की सभी भाषाओं की प्रगति होगी!
आत्मविश्वास से भरपूर कविता ....प्रभावशाली ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ..
पर मुझे अब कोई भी विप्लव डरा सकता नहीं,
ReplyDeleteकोई भी तूफ़ान मेरा सर झुका सकता नहीं,
मैं धधकती आग हूँ सब कुछ जलाने के लिए,
कोई भी आवेश अब तिल भर हिला सकता नहीं !
आपकी रचना जीने का उतसाह देती है। सुन्दर सकारात्मक सोच। बधाई आपको।
मुसीबतों से जूझने की हिम्मत देती आपकी ये रचना औरो का भी उत्साह वर्धन करती है. आज आपकी रचना में आपकी माँ की छवि नज़र आ रही है.
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए बधाई.
ना कोई आवाज़, ना आहट ना कदमों के निशाँ
ReplyDeleteसाथ अपने साये के गुमसुम चली जाती हूँ मैं !
..बहुत खूब।
हर शब्द में आत्मविश्वास झलक रहा है प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना!
ReplyDeleteयूँ किसी के रहम पर जीना मेरी फितरत नहीं,
ReplyDeleteसर झुका कर याचना करना मेरी आदत नहीं,
दफ़न करके दुःख सारे दर्द की गहराई में ,
थाम कर उँगली स्वयम् की खुद बढ़ी जाती हूँ मैं !
बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियाँ....प्रेरणादायी कविता..बस यही जज़्बा , सबके अंदर होनी चाहिए
यूँ किसी के रहम पर जीना मेरी फितरत नहीं,
ReplyDeleteसर झुका कर याचना करना मेरी आदत नहीं,
दफ़न करके दुःख सारे दर्द की गहराई में ,
थाम कर उँगली स्वयम् की खुद बढ़ी जाती हूँ मैं..
ऐसी रचनाएँ खुद ही नही पालकी दूसरों को भी अपनी दुर्बलताओं से बाहर आने की प्रेरणा देती हैं ....
बहुत आशा वादी रचना है ...
यूं किसी के रहम पर जीना मेरी फितरत नहीं
ReplyDeleteसर झुका कर याचना करना मेरी आदत नहीं
बाह क्या खूब लिखा है आपने |इस रचना को पढकर तो बहुत से लोग अपनी निराशाओं से बाहर निकल आये होंगे |सच में आपकी रचना ने मुझे बहुत् बल दिया है|