Followers

Saturday, June 4, 2011

काजल की कोठरी

भ्रष्टाचार का क्षेत्र और विस्तार इतना व्यापक और संक्रामक है कि कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि ऐसे तथ्य सामने आयें कि भारत की आबादी का एक बहुत बड़ा प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त है ! भारत के संविधान के अनुसार रिश्वत लेना और देना दोनों ही दंडनीय अपराध हैं ! इस तरह रिश्वत माँगने वाला भी अपराधी है और रिश्वत देने वाला भी अपराधी है ! कैसी अजीब सी बात है ना ! शिकार करने वाला भी अपराधी है और शिकार होने वाला भी ! जंगल में बाघ निरीह बकरी का शिकार करता है ! खूंखार बाघ तो अपराधी है ही निरीह बकरी भी अपराधी है !

आज यह सवाल जोर शोर के साथ उछाला जा रहा है कि भ्रष्टाचार उन्मूलन के आंदोलन में केवल उन्हीं लोगों को शिरकत करनी चाहिये जिनका दामन बिलकुल पाक साफ़ हो ! जिन्होंने ना कभी रिश्वत ली हो और ना ही कभी रिश्वत दी हो ! विश्व के सबसे भ्रष्ट देशों में शुमार इस देश में यह कल्पना की जा रही है कि यहाँ ऐसे लोग भी मिल जायेंगे जो इस काजल की कोठरी में दिन रात आते जाते तो रहते होंगे लेकिन उनके कपड़ों पर एक भी दाग नहीं लगा होगा ! इस क़ानून का औचित्य क्या है कोई मुझे समझायेगा ?

सैद्धांतिक रूप से यह सच है कि रिश्वत देने से रिश्वत माँगने वालों का हौसला बढ़ता है ! इसलिये रिश्वत माँगने वालों का डट कर विरोध करना चाहिये और रिश्वत के लिये एक भी पैसा नहीं देना चाहिये ! लेकिन जहाँ बिना पैसा लिये फ़ाइल एक मेज़ से दूसरी मेज़ तक नहीं सरकती वहाँ कोई कैसे इस चक्रव्यूह से बाहर निकले और कैसे अपनी रुकी हुई गाड़ी को आगे बढ़ाये ! चाहे किसी गरीब विधवा की पेंशन से सम्बंधित फ़ाइल हो या किसी गरीब के राशन कार्ड से सम्बंधित दस्तावेज़ हों बिना पैसा लिये बाबू कोई भी कार्यवाही करने के लिये तैयार नहीं होता ! अब ज़रा यह बताइये किसके पास इतना वक्त है और इतना दमखम है कि रोजमर्रा की जीवन की जद्दोज़हद एवं संघर्षों से जूझते हुए वह इस भ्रष्ट व्यवस्था से जूझने के लिये भी कमर कस कर तैयार रहे ! यह काम कोई साधू सन्यासी तो कर सकता है जो सांसारिक बंधनों से मुक्त है, उस पर घर परिवार का कोई बोझ नहीं है या जिसे रसोई में नून तेल लकड़ी जुटाने के लिये, बच्चों के स्कूल की फीस और किताबों की व्यवस्था करने के लिये, बूढ़े माता पिता की दवा दारू के लिये सूर्योदय से चंद्रोदय तक संघर्ष नहीं करना पड़ता ! लेकिन एक आम इंसान के पास ना तो इतना वक्त है बर्बाद करने के लिये ना ही इतनी ऊर्जा ! इसीलिये वह रिश्वत की रकम देकर और अपना काम निकलवा कर जल्दी से जल्दी बाबुओं की इस गिरफ्त से बाहर निकलना चाहता है ! ज़रा सोचिये इस दयनीय स्थिति में फँसा आम आदमी आपको अपराधी दिखाई देता है दया का पात्र दिखाई देता है ? ऐसे लोगों की पीड़ा के बारे में किसीने सोचा है जिन्हें अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार के चलते व्यवस्था में बैठे इन भेड़ियों की भेंट चढ़ाना पड़ जाता है और इसके दंडस्वरूप उन्हें अपराधी की श्रेणी में भी डाल दिया जाता है !

भ्रष्ट तंत्र में फँसे ऐसे लोगों को अपनी आवाज़ उठाने का पूरा अधिकार होना चाहिये ! प्रभावशाली व्यक्तियों को अपने रौब दाब और समाज में ऊँची हैसियत के चलते शायद रिश्वत देने की ज़रूरत ना पड़ती हो ! उनके काम उनके नाम सुनते ही फ़ौरन से पेश्तर कर दिए जाते हैं ! उदाहरण के लिये ज़रा सोचिये कि कभी सोनिया गाँधी या शीला दीक्षित को अपना काम करवाने के लिये किसी ऑफिस में जाकर घंटों क्यू में खड़े रहना पड़ा होगा ? या अपनी एक फ़ाइल आगे बढ़वाने के लिये किसी गराब विधवा की तरह बाबू को मोटी रकम अदा करनी पड़ी होगी ? यह शायद उनके पूर्वजन्म के सत्कर्मों का ही फल होगा को वे इस जन्म में उच्च पदों पर आसीन हैं और समस्त राजसी ठाठ बाट भोग रही हैं ! लेकिन क्या आप बता सकते हैं कि वे उस स्त्री से बेहतर और अधिक आदर्श कैसे हो गयीं जिसे अपनी पेंशन प्राप्त करने के लिये हफ़्तों दफ्तर के चक्कर काट कर बाबू के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा होगा और पेंशन की झीनी सी रकम का एक बड़ा हिस्सा वह बाबू हड़प कर गया होगा ? आम इंसान क्या करे ? उसे तो जीवन में हर पल हर क्षण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और अपने बाल बच्चों के मुख में दो निवाले डालने के लिये दिन रात मेहनत मशक्कत करनी पड़ती है ! यदि अपना समय बचाने के लिये ऐसा व्यक्ति अपनी गर्दन पर सवार किसी बाबू को रिश्वत के रूप में कुछ रुपये थमा देता है तो वह अपराधी कैसे हो गया ? यह तो वही कहावत हो गयी मारे और रोने ना दे ! फिर यह भी विचारणीय होना चाहिये कि रिश्वत लेने देने के पीछे उद्देश्य क्या है ! यदि अपना फँसा हुआ काम निकालने के लिये और समय, ऊर्जा तथा धन की बर्बादी को रोकने के लिये रिश्वत दी गयी है तो इसे अपराध मानना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है ! हाँ रिश्वत का लेन देन किसीका शोषण करने के लिये किया जा रहा हो या किसीके अधिकारों के हनन के लिये किया जा रहा हो तो यह निश्चित रूप से दंडनीय होना चाहिये !

इसके अतिरिक्त जो लोग पहले भ्रष्ट थे और अब उनका हृदय परिवर्तन हो गया है तो उनको भी सुधरने का पूरा मौक़ा दिया जाना चाहिये ! गाँधीजी ने भी कहा था कि हमें पाप से घृणा करनी चाहिये ना कि पापी से ! गौतम बुद्ध के उपदेशों को सुन कर अंगुलिमाल नामक डाकू का भी हृदय परिवर्तन हो गया था और वह हिंसा का रास्ता छोड़ गौतम बुद्ध की शरण में आ गया था ! इसी तरह यदि पूर्व में भ्रष्ट रह चुके किसी व्यक्ति को अपनी भूलों का ज्ञान हो रहा हो और वह आत्मपरिष्कार की राह पर चल कर प्रायश्चित करना चाहता हो तो हमें उसे एक अच्छा इंसान बनने में उसकी सहायता और सहयोग करना चाहिये !

इसलिए मेरे विचार से ऐसी सोच को कोई बल नहीं दिया जाना चाहिये कि आंदोलन में ऐसे लोगों को भाग लेने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिये जो स्वयं पूर्व में भ्रष्ट गतिविधियों में संलग्न पाये गये हैं ! जो स्वयं इस पीड़ा को भोग चुके हैं उन्हें तो इसका विरोध करने का अधिकार दोगुना हो जाता है क्योंकि इस तरह वे अपनी यातना का प्रतिकार भी कर सकेंगे !

साधना वैद

7 comments :

  1. bilkul sahi bat kahi hai aapne .bhrasht ko bhrashtachar ke virodh me khade hone ka koi haq nahi hai .sarthak aalekh .aabhar .

    ReplyDelete
  2. भ्रष्टाचार असीम है उस पर नियंत्रण तभी हो पाएगा जब सभी प्रयत्नशील होंगे |इसके विरोध में सब को साथ आना होगा |अच्छा लेख बधाई |
    आशा

    ReplyDelete
  3. बहुत श्रम और वैचारिक मंथन के पश्चात् लिखा विचारोत्तेजक लेख है …लेकिन भ्रष्टाचार… लगता है; लाइलाज है ।


    हमें व्यक्तिपूजक और दलभक्त न बन कर साहसी और स्वयं के मत का महत्व समझने वाला बनना चाहिए ।



    आवश्यक महत्वपूर्ण पोस्ट के लिए आभार !

    ReplyDelete
  4. बहुत श्रम और वैचारिक मंथन के पश्चात् लिखा विचारोत्तेजक लेख है …लेकिन भ्रष्टाचार… लगता है; लाइलाज है ।


    हमें व्यक्तिपूजक और दलभक्त न बन कर साहसी और स्वयं के मत का महत्व समझने वाला बनना चाहिए ।



    आवश्यक महत्वपूर्ण पोस्ट के लिए आभार !

    ReplyDelete
  5. कृपया ,
    शस्वरं
    पर आप सब अवश्य visit करें … और मेरे ब्लॉग के लिए दुआ भी … :)

    शस्वरं कल दोपहर बाद से गायब था …
    अभी सवेरे पुनः नज़र आने लगा है ।
    कोई इस समस्या का उपाय बता सकें तो आभारी रहूंगा ।

    ReplyDelete
  6. जो स्वयं इस पीड़ा को भोग चुके हैं उन्हें तो इसका विरोध करने का अधिकार दोगुना हो जाता है क्योंकि इस तरह वे अपनी यातना का प्रतिकार भी कर सकेंगे !

    विचारोतेजक लेख ... हर क्षेत्र में रिश्वत घुन की तरह लगी है ..जिसकी वजह से न चाहते हुए भी लोगों को देनी पड़ती है ... सार्थक लेख ..

    ReplyDelete
  7. बहुत ही विचारपूर्ण आलेख....पूरी व्यवस्था में ही भ्रष्टाचार इस तरह व्याप्त हो चुका है...कि कई चीज़ें गलत लगती ही नहीं...मेरे अपने घर के ही दो उदाहरण हैं..एक चाचा जी ने कई बाबुओं को पैसे खिलाकर फ़ाइल पास करवा ली...और उन्हें पेंशन सही समय से मिलने लगी
    एक दूसरे चाचा जी....बिलकुल तैयार नहीं हुए एक भी पैसा रिश्वत देने को...और दो साल तक उनके पेंशन का मामला उलझा रहा....किसे गलत कहें...किसे सही.

    सबकी आत्मा ही जागृत होनी चाहिए...ये दान- दहेज़ की प्रथा मिट जाए...स्कूल-कॉलेज में डोनेशन ना देना पड़े...तो शायद कुछ कमी आए रिश्वत के लेन-देन में

    ReplyDelete