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Monday, June 13, 2011

मौन की दीवारें







मौन की दीवारों से

टकरा कर लौटती

अपनी ही आवाज़ों की

बेचैन प्रतिध्वनियों को

मैं खुद ही सुनती हूँ ,

और अपनी राहों में बिछे

अनगिनती काँटों को

अपनी पलकों से

खुद ही चुनती हूँ !

अपनी चंद गिनी चुनी

अभिलाषाओं, इच्छाओं,

भावनाओं, अभिव्यक्तियों

पर कभी ना खुलने वाले

तुम्हारे दमन के

आतातायी ताले की

आक्रामकता को

मैं चुपचाप सहती हूँ ,

और अपनी

अकथनीय वेदना की

दुख भरी कहानी

निर्वासन के एकांत पलों में

खुद से ही कहती हूँ !

अपने मन के निर्जन,

नि:संग कारागार में

दीवारों पर सर पटकती

वर्षों से निरुद्ध अपनी

व्यथित अंतरात्मा को

अपनी ही बाहों का

संबल दे अपने अंक में

असीम दुलार से

स्वयं ही समेट लेती हूँ ,

और घायल होती

अपनी चेतना को

अपने जर्जर शीतल

आँचल की छाँव में

मृदुल स्पर्श से सहला

खुद ही लपेट लेती हूँ !


साधना वैद !


चित्र गूगल से साभार -

22 comments :

  1. बेहद मार्मिक कविता...
    कितनी ही नारियों के मन का सच....कितना कुछ अनकहा रह जाता है...और सबको अपनी भावनाएं मुखरित करने का हुनर भी नहीं आता.

    नारी-मन के अंतरतम कोने में झाँक उनका हाल बयाँ करने की अद्भुत क्षमता है आपमें....शुभकामनाएं

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  2. और अपनी राहों में बिछे अनगिनती काँटों को अपनी पलकों से खुद ही चुनती हूँ !.....

    अपनी व्यथित अंतरात्मा को अपनी ही बाहों का संबल दे अपने अंक में असीम दुलार से स्वयं ही समेट लेती हूँ , और घायल होती अपनी चेतना को अपने जर्जर शीतल आँचल की छाँव में मृदुल स्पर्श से सहला खुद ही लपेट लेती हूँ !.......


    नारी मन की वेदना और वेदना से जूझने की मज़बूत आशा को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने... सुन्दर रचना..

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  3. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  5. अंतर्मन की व्यथा का बहुत गहराई से आकलन किया है |भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  6. बेहद खुबसूरत भावों से सनी पंक्तिया है , दिलों को स्पर्श देती हुयी बधाई

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  7. दीवारों पर सर पटकती
    वर्षों से निरुद्ध अपनी
    व्यथित अंतरात्मा को
    अपनी ही बाहों का
    संबल दे अपने अंक में
    असीम दुलार से
    स्वयं ही समेट लेती हूँ ,.....

    बहुत मार्मिक...रचना के भाव अंतस को गहराई तक छू जाते हैं..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  8. बहुत ही मार्मिक रचना, बधाई और शुभकामनाएं |

    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  9. छोटी परंतु बहुत ही मार्मिक कविता| अन्तर्मन को ले कर सुंदर प्रस्तुति|

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  10. अंतर्मन के संवदनशील भाव....... बहुत बढ़िया

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  11. यह मौन कि दीवार कितनी ही अभिलाषाओं का दम तोड़ देती है .. और एहसास भी नहीं होता कि कितनी इच्छाओं का खून कर दिया ..खुद ही संभलना पड़ता है .. नारी मन को बहुत मार्मिक शब्दों में ढाला है ...

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  12. नारी मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है……………कुछ मौन हमेशा दीवारो मे ही दफ़न रह्ते हैं।

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  13. bahut sundarta se vyatha ko pradrshit kiya hai ,,,,,,,
    ... sahi me hriday ki aawaj ko aapne kavita ke rup me pragat kiya hai ......

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  14. काफी कुछ कह गयीं हैं आप इस रचना में !

    नारी मन का वह कोना जहाँ शायद ही कोई पहुंच पाए...

    एक अजीब सा मौन...

    कुछ अनकही इच्छायें...

    कुछ अनकहे एहसास...

    जिसे सुन कर भी कोई समझ नहीं पाता...

    देख कर भी जो दिखाई नहीं देता....

    नारी मन का वो अनछुआ पहलू...

    आपकी कलम से काफी हद तक बच नहीं पाया है...!!

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  15. बेहतरीन रचना....

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  16. अंतर्द्वंद का सुन्दर और सार्थक चित्रण.पूरी कविता शानदार

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  17. बहुत सुन्दर, लाजवाब और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  18. बहुत ही सुन्दर कविता...

    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  19. मन की व्यथा का ,अंतरिम भावनाओं का खूबसूरत वर्णन ...आपके अन्दर की शक्ति बा ब्यौरा दे रही है ये रचना ...!!
    बधाई....!!

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  20. अपनी चेतना को
    अपने जर्जर शीतल
    आँचल की छाँव में
    मृदुल स्पर्श से सहला
    खुद ही लपेट लेती हूँ
    gazab ka likhi hain.......

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