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Wednesday, June 29, 2011

ज़रूरी तो नहीं

हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

सच है तुम्हें सब मानते हैं रौनके महफ़िल ,
हर बात तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

जो रात की तारीकियाँ लिख दीं हमारे नाम ,
हर सुबह पे भारी हों ज़रूरी तो नहीं !

बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

तुम ख़्वाब में यूँ तो बसे ही रहते हो ,
नींदें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

जज़्बात ओ खयालात पर तो हावी हो ,
गज़लें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !


साधना वैद

23 comments :

  1. हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
    हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
    ........
    माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
    हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
    bahut hi badhiyaa

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  2. साधना जी इस अद्भुत रचना के लिए बधाई स्वीकारें...आपकी रचना से जगजीत सिंह जी की गई ग़ज़ल "उम्र जलवों में बसर हो,ये जरूरी तो नहीं, हर शबे ग़म की सहर हो ये जरूरी तो नहीं..." याद आ गयी...

    नीरज

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  3. तुम ख़्वाब में यूँ तो बसे ही रहते हो ,
    नींदें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

    क्या बात है

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  4. आज की गज़ल में कौन स शेर छोडूँ और कौन सा पकडूँ .. बहुत खूब कही है गज़ल ..


    जो रात की तारीकियाँ लिख दीं हमारे नाम ,
    हर सुबह पे भारी हों ज़रूरी तो नहीं !

    बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
    हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
    हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    हर शेर सीधे दिल से निकला हुआ ..

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  5. बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
    हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !..

    लाज़वाब गज़ल..हरेक शेर एक सार्थक प्रश्न उठाता हुआ..बहुत खूब ! आभार

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  6. बढ़िया रचना है साधना जी.

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  7. हार जीत अस्थायी अनुभूतियाँ हैं..
    इनमें स्थायित्व कैसा ढूँढना??

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  8. वाह ! वाह ! वाह !

    आज तो इस गज़ल को पड कर क्लैप करनें को दिल कर रहा है. बहुत उम्दा गज़ल.

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  9. बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
    हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !
    कमाल है!! हर शे’र लाजवाब! पूरी ग़ज़ल बेहतरीन।

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  10. दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
    तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

    अद्भुत रचना बहुत सुंदर. शुक्रिया.

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  11. बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
    हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    क्या बात है..साधन जी...आज तो एकदम अलग ही रंग में हैं....काबिल-ए-तारीफ़ रचना

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  12. सचमुच, आपकी तरह हर कोई इतनी शानदार गजल कहे यह जरूरी तो नहीं।

    ------
    ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
    नाइट शिफ्ट की कीमत..

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  13. बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
    हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    ....
    माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
    हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
    बहुत अच्छी पंक्तियां

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  14. This comment has been removed by the author.

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  15. बहुत ख़ूबसूरती के साथ बेबसी का इजहार किया है
    " हर जीत तुम्हारी हो जरूरी तो नहीं "
    जिंदगी में सब कुछ सहना पड़ता है दिल के उदगार शब्दों में साकार हो जाते हैं |बहुत खूब अति सुन्दर
    आशा

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  16. हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
    हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं ! हर शब्द दिल से निकला है...सुन्दर गजल...

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  17. माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
    हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    बेहतरीन!

    ----------------------
    आपकी एक पोस्ट की हलचल आज यहाँ भी है

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  18. सही व्याख्यान किया है आपने समाज का जहाँ हर रिश्ते में एक दूरी रहनी चाहिए.. हर इंसान को अपनी सोच के लिए जगह मिलनी चाहिए.. तभी एक सार्थक रिश्ता कायम होता है..
    खूबसूरत पेशकश..

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  19. हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
    हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !
    वाह क्या कहूँ लाजवाब रचना। बधाई।

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  20. माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
    हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    waise to sabhi sher behtareen hai lekin ye sabse achha laga......

    haarne ka bhi apna mazaa hai....

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  21. माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
    हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

    सुन्दर सरल अल्फाज,खूबसूरत प्रस्तुति.
    आपकी काव्य 'साधना' से मन प्रसन्न हो गया साधना जी.
    बहुत बहुत बधाई.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका स्वागत है.

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  22. मुझे प्रोत्साहित करने के लिये सभी पाठकों की मैं हृदय से आभारी हूँ ! आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !

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  23. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!

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