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Thursday, June 9, 2011

चंद अनुत्तरित प्रश्न

इसमें कोई संदेह नहीं है कि टीवी चैनलों व समाचार पत्रों के माध्यम से आज के युग में सूचना का झरना सतत प्रवाहित रहता है ! किन्तु इसमें ऐसी कितनी सूचनाएं होती हैं जो जनता के मन मस्तिष्क में छाये कुहासे को दूर कर पाती हैं या उसे और भ्रम की स्थिति में पहुँचा देती हैं यह भी एक विचारणीय समस्या है ! मीडिया से मिलने वाली खबरों तथा कार्यक्रमों के द्वारा भ्रष्टाचार व घोटालों पर होने वाली गरमागरम बहसों से हमको बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है ! पर अक्सर ये बहसें समयाभाव के कारण अथवा बहस के संचालकों की जाने अनजाने में पूरी तरह से तह में ना जा पाने की वजह से हमारे दिमाग में अनेकों प्रश्न अनुत्तरित छोड़ जाती हैं ! पिछले दिनों सुर्ख़ियों में रहे काले धन व भ्रष्टाचार के समाचारों के बीच नीचे लिखे प्रश्न इसका उदाहरण हैं !

क्या कोई दवा बनाने वाली कम्पनी बिना सरकारी अनुमति के चलती रह सकती है ? क्या उसकी दवाओं की गुणवत्ता पर जाँच उसी स्थिति में होनी चाहिये जब उसका संचालक सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाने की बात करने लगे ? आखिर स्वास्थ्य मंत्रालय के क्या दायित्व हैं ? जाँच तब ही क्यों नहीं की गयी जब ये बन रही थीं और बिक रही थीं और उस कम्पनी से सम्बंधित संस्थाओं को मिलने वाले धन को आयकर विभाग द्वारा छूट कैसे मिल गयी ? कहीं यह आरोप बेबुनियाद तो नहीं है ?

भारत में पासपोर्ट विदेश मंत्रालय द्वारा जाँच करवाने के उपरान्त दिये जाते हैं ! इस जाँच में अक्सर हेरा फेरी के मामले भी सामने आते रहते हैं परन्तु किसी ऐसी कम्पनी, जिसका व्यापार करोड़ों का हो और उसके संचालक की राष्ट्रीयता के बारे में केन्द्र सरकार को संदेह हो, क्या उसकी छानबीन भी तभी होनी चाहिये जब कम्पनी के संचालक के साथ केन्द्र सरकार की देश हित के कार्यों में चल रही मीटिंग चार दिन के बाद आख़िरी समय में नाराज़गी और हाथापाई में तब्दील हो गयी हो ? विदेश मंत्रालय और आंतरिक सुरक्षा विभाग तब क्यों सो रहा था जब कि उसका अपना दावा है कि इसके बारे में मंत्रालय के पास पहले से ही पर्याप्त सूचनाएं थीं ?

क्या आर. एस. एस. भारत में एक प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन है ? क्योंकि सरकार की ओर से अक्सर कहा जाता है कि यह व्यक्ति या संस्था आर एस एस द्वारा संचालित है इसलिए खतरनाक है ! यदि ऐसा है तो इसके बारे में पूरा स्पष्टीकरण सरकार जनता के सामने क्यों नहीं लाती ?

क्या एन डी ए या यू पी ए के भ्रष्टाचार के मामलों को इस बिना पर माफ किया जा सकता है कि उन्होंने दूसरे दल से कम भ्रष्टाचार किया है या दूसरे के कार्यकाल में उनसे भी अधिक भ्रष्टाचार के मामले सामने आये थे ?

क्या कोई दल या संस्था या व्यक्ति ऐसा नहीं हो सकता जो कुछ मुद्दों पर कॉंग्रेस का समर्थन करे व कुछ मुद्दों पर भाजपा या अन्य किसी दल का समर्थन करे ? क्या यह बात अनैतिक मानी जानी चाहिये ? साथ ही यदि कोई ऐसी राजनैतिक पार्टी है जिसके सदस्य अलग अलग विषयों पर विभिन्न राय रखते हों तो क्या उनका मखौल उड़ाया जाना चाहिये ? क्या सभी सदस्यों का हर विषय पर कोरस में एक स्वर में बोलना ही स्वस्थ परम्परा माना जाना चाहिये ? क्या स्वस्थ मतभेदों के साथ काम करना एक स्वस्थ प्रजातांत्रिक प्रक्रिया नहीं है ?

कभी कभी मन में यह ख़याल आता है कि क्या कोई दल किसी दूसरे दल के किसी भी अच्छे काम से कभी प्रभावित नहीं हो सकता या कभी उस कार्य की कभी भूले से भी प्रशंसा नहीं कर सकता ? क्या ऐसा करना अपनी पार्टी के साथ बेईमानी माना जाना चाहिये ? क्या एक पार्टी को दूसरी पार्टी के किये हर काम में सिर्फ और सिर्फ कमियाँ ही ढूँढनी चाहिये ? आखिर देश हित में क्या है ?

क्या संसद व विधान सभाओं में सरकार बनाने वाली पार्टी के सदस्य विपक्ष के सदस्यों से यह कह सकते हैं कि क्योंकि तुम्हारी पार्टी हार गयी है और सरकार नहीं बना पायी है इसलिए तुम्हारी बात नहीं मानी जायेगी या तुम्हें कुछ कहने का नैतिक अधिकार नहीं है ? आखिर संसद व विधान सभाओं की सामूहिक जिम्मेदारियाँ क्या हैं ?

ये चंद सवाल हैं जो आम जनता को उद्वेलित तो करते ही हैं इनका उत्तर जानने के लिये भी जनता व्यग्र रहती है ! टी वी चैनलों की अधकचरी बहसें प्राय: बिना किसी सार्थक निष्कर्ष के खत्म हो जाती हैं ! इन प्रश्नों के समुचित उत्तर जानने के लिये किसकी मुखापेक्षा की जाये यह भी एक अनुत्तरित प्रश्न ही है ! लेकिन इसका समाधान आज के परिप्रेक्ष्य में होना नितांत आवश्यक है !

साधना वैद

9 comments :

  1. अनुत्तरित प्रश्नों का अम्बार लगा रहता है |क्या कभी उन प्रश्नों के सही उत्तर मिल पाएंगे |गहन सोच पर आधारित लेख बधाई |
    आशा

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  2. बिल्‍कुल सही कहा है आपने इस आलेख में ..बेहद अहम सवाल ...सटीक एवं सार्थक प्रस्‍तुति ।

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  3. bilkul sahi sawaal uthaye aapne.pahle se sarkar nahi dekhti jab koi kaand ho jaataa hai.tab ho halla machataa hai.bahiut saarthak lekh.badhaai.




    please visit my blog.thanks,

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  4. अपराध को सिर्फ़ अपराध की दृष्टि से देखा जाना चाहिए

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  5. इतने सारे सवालों का जवाब कौन देगा? बहुत सटीक प्रश्न पूछे हैं आपने

    नीरज

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  6. सार्थक और सटीक प्रश्न हैं ..पर वही ढाक के तीन पात ..उत्तर नदारद ..

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  7. राजनीति दल वोट की राजनीति करते हैं....इसलिए वे किसी हाल में दूसरे दल के किसी भी कार्य की तारीफ नहीं कर सकते. देश हित की किसे पड़ी है..अपना और अपने सात पुश्तों का हित वे ज्यादा सोचते हैं.

    आम जनता...बस आपके जैसे ही...इन्ही प्रश्नों से उलझती रहती है...राह कोई नही दिखता.

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  8. आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...

    नयी-पुरानी हलचल

    धन्यवाद!

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  9. आपके सारे के सारे के प्रश्न अपने में भुत श्री बैचेनी लिए हुए हसीन सरकार तो इसका क्या जबव देगी नहीं ख सकते पर म लोग भी इस सवाल पर चुप्पी साध रहे हैं कारण सबको अपनी साख बचान की लगी हुई है कल तक जो राम देव बाबा का गुणगान करते नहीं थकते थे वे आज आँखे चुरा रहे हैं बाबा ने जो किया देश हित में किया आज यदि सरकार ने उन पर गलत तरीके से शिकंजा कसा है तो क्या हम सभी को चुप बैठ जाना चाहिए और चुपचाप बिथकर टीवी समाचारों से यह कयास लगाते रहने चाहिए कि अब बाबा क्या करेगा मुझे तो उन लोगोंपर बहुत ही क्रोध आता है जो दुनिया में हजार चेहरों के साथ ज़िंदा रहने के आदि हो गए हि सरकारी तंत्र में रहकर मैंने देखा कि यदि आप सरल उर स्पष्ट तरीके से अपना काम करते जाते हैं तो उसकी कोई पूछ नहीं बस सरकारी व्यवस्था में बने रहने के लिए जिन गनों की जरूरत होती है वेआप विकसित नहीं कर पाते तो आपका हाल भी बाबा जिस हो जता है आप गलत नहीं है पर सरकारी तंत्र आपको भ्रष्ट सिद्ध कर क की डीएम लेगाक्योंकी आपने बर्र के छत्ते में हाथ जो डाला है

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