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Sunday, June 26, 2011
इन्हें भी सम्मान से जीने दें !
इसे सामाजिक न्याय व्यवस्था की विडम्बना कहा जाये या विद्रूप कि जिन वृद्धजनों के समाज और परिवार में सम्मान और स्थान के प्रति तमाम समाजसेवी संस्थायें और मानवाधिकार आयोग बडे सजग और सचेत रहने का दावा करते हैं और समय – समय उनके हित के प्रति पर अपनी चिंता और असंतोष का उद्घाटन भी करते रहते हैं उन्हींको पराश्रय और असम्मान की स्थितियों में जब ढकेला जाता है तब सब मौन साधे मूक दर्शक की भूमिका निभाते दिखाई देते हैं।
ऐसी धारणा है कि साठ वर्ष की अवस्था आने के बाद व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं और वह शारीरिक श्रम के लिये अक्षम हो जाता है और यदि वह प्रबन्धन के कार्य से जुड़ा है तो वह सही निर्णय ले पाने में असमर्थ हो जाता है इसीलिये उसे सेवा निवृत कर दिये जाने का प्रावधान है । अगर यह सच है तो संसद में बैठे वयोवृद्ध नेताओं की आयु तालिका पर कभी किसीने विचार क्यों नहीं किया ? उन पर कोई आयु सीमा क्यों लागू नहीं होती ? क़्या वे बढ़ती उम्र के साथ शरीर और मस्तिष्क पर होने वाले दुष्प्रभावों से परे हैं ? क़्या उनकी सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती उम्र के साथ प्रभावित नहीं होती ? फिर किस विशेषाधिकार के तहत वे इतने विशाल देश के करोड़ों लोगों के भविष्य का न्यायोचित् निर्धारण अपनी जर्जर मानसिकता के साथ करने के लिये सक्षम माने जाते हैं ? य़दि उन्हें बढ़ती आयु के दुष्प्रभावों से कोई हानि नहीं होती तो अन्य लोगों के साथ यह भेदभाव क्यों किया जाता है ? अपवादों को छोड़ दिया जाये तो साठ वर्ष की अवस्था प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अधिक अनुभवी, परिपक्व और गम्भीर हो जाता है और उसके निर्णय अधिक न्यायपूर्ण, तर्कसंगत और समझदारी से भरे होते हैं । ऐसी स्थिति में उसे उसके सभी अधिकारों और सम्मान से वंचित करके सेवा निवृत कर दिया जाता है जो सर्वथा अनुचित है ।
घर में उसकी स्थिति और भी शोचनीय हो जाती है । अचानक सभी अधिकारों से वंचित, शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से क्लांत वह चिड़चिड़ा हो उठता है । घर के किसी भी मामले में उसकी टीकाटिप्पणी को परिवार के अन्य सदस्य सहन नहीं कर पाते और वह एक अंनचाहे व्यक्ति की तरह घर के किसी एक कोने में उपेक्षा, अवहेलना, असम्मान और अपमान का जीवन जीने के लिये विवश हो जाता है । उसकी इस दयनीय दशा के लिये हमारी यह दोषपूर्ण व्यवस्था ही जिम्मेदार है । साठवाँ जन्मदिन मनाने के तुरंत बाद एक ही दिन में कैसे किसीकी क्षमताओं को शून्य करके आँका जा सकता है ?
वृद्ध जन भी सम्मान और स्वाभिमान के साथ पूर्णत: आत्मनिर्भर हों और उन्हें किसी तरह की बैसाखियों का सहारा ना लेना पड़े इसके लिये आवश्यक है कि वे आर्थिक रूप से भी सक्षम हों । इसके लिये ऐसे रोज़गार दफ्तर खोलने की आवश्यक्ता है जहाँ साठ वर्ष से ऊपर की अवस्था के लोगों के लिये रोज़गार की सुविधायें उपलब्ध करायी जा सकें । प्राइवेट कम्पनियों और फैक्ट्रियों में बुज़ुर्ग आवेदकों के लिये विशिष्ट नियुक्तियों की व्यवस्था का प्रावधान सुनिश्चित किया जाये । इस बात पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि उनको उनकी क्षमताओं के अनुरूप ही काम सौपे जायें । आर्थिक रूप से सक्षम होने पर परिवार में भी बुज़ुर्गों को यथोचित सम्मान मिलेगा और उनकी समजिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी ।
यह आज के समय की माँग है कि समाज में व्याप्त इन विसंगतियों की ओर प्रबुद्ध लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाये और वृद्ध जनों के हित के लिये ठोस और कारगर कदम उठाये जायें । तभी एक स्वस्थ समाज की स्थापना का स्वप्न साकार हो सकेगा जहाँ कोई किसी का मोहताज नहीं होगा और सभी स्वाभिमान के साथ एक उपयोगी एवं सार्थक जीवन व्यतीत कर सकेंगे !
साधना वैद
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सामयिक समस्या पर सुन्दर आलेख! सच है कि वृद्धावस्था में शक्ति क्षीण होती जाती है मगर सभ्य समाज में सक्षम वर्ग शेष वर्गों को प्रेम और सहारा देता है। इस बदलते वक़्त में बहुत सी सामाजिक विसंगतियाँ हैं जिन पर विचार और समुचित सुधार की आवश्यकता है।
ReplyDeleteमना कि हम एक जवान देश है फिर भी बुजुर्गों को एक सम्मानपूर्ण जीवन मिले इसमें दोराय नहीं हो सकती. इसमें इस देश के सभी जिम्मेदार लोगो को समान रूप से सहयोग करना चाहिए. ऐसी परिस्थिति में आज के युवा भी जाने ही वाले हैं. अच्छा विषय चुनने औ भाव पेश करने के लिए साधना जी को बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत सही मुद्दा उठाया है। आपसे सहमत।
ReplyDeleteअच्छा मुद्दा उठाया है |शब्द चयन और क्रमबद्ध
ReplyDeleteलेखन | अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
आशा
आपकी बात से सहमत हूँ ... इन नेताओं के बारे में कोई क्यों नहीं सोचते सब ... इनको भी तो अवकाश लेना चाहिए ...
ReplyDeleteसार्थक लेख ... नेताओं पर ज़रूर विचार करना चाहिए
ReplyDeletesamayik samasyaa per bahut achcha lekh.maine bhi apni aek post per likha tha ki netaon ki bhi age limit honaa chahiye .90,98 saal tak wo apni kursi per jame rahaten hain phir aam aadmi ke liye yea limit 60 saal se hi kyon.aapne bilkul sahi mudda uthayaa.badhaai aapko.
ReplyDeleteसामयिक समस्या पर सुन्दर आलेख, ज्वलंत और विशेष विषय चुनने के लिए साधना जी बधाई.
ReplyDeleteमौजूदा लालच और मुनाफे पर आधारित पूंजीवादी व्यवस्था एक अमानवीय व्यवस्था है। यह सामाजिक नहीं। यह जवानों तक के लिए रोजगार की व्यवस्था नहीं करती। वह कैसे वृद्धों को रोजगार की व्यवस्था कर सकती है?
ReplyDeleteहर व्यक्ति मरते दम तक काम कर सकता है। समाज में उस के लिए उपयोगी काम होना चाहिए। बहुत लोग जब तक नौकरी करते हैं स्वस्थ बने रहते हैं। सेवा निवृत्त होने के बाद काम के अभाव में शीघ्र ही अस्वस्थ हो कर यह दुनिया त्याग देते हैं।
यह ठीक है कि समाज स्वयं ही अपना विकास करता है लेकिन मनुष्य भी स्वयं उस की इंजिनियरिंग कर सकता है।
समाज की एक ज्वलंत समस्या है, सरकार करे न करे हम लोगों को कुछ करना चाहिए. अपने घर के बुजुर्गों को सही सम्मान और सुविधा देकर अपने कर्त्तव्य का vahan तो हम कर ही सकते हैं.
ReplyDeletebahut vichaarneey vishay hai...aur sach kaha aapne jab hamare desh ke neta jinke kandho par pure desh ka bhaar hai, vo 60 ke baad itna kaary kar sakte hain to hamare vo buzurg kyu nahi jinhe sarkar 60 ke baad retire kar deti hai ya ghar me avaanchhneey ho jate hain....sirf isliye ki vo above 60 hain. ye soch badalne ke liye hame apne buzurgo ko ek jut kar ke unke liye abhiyan chalana chaahiye.
ReplyDeleteaapne jo shabd vyavastha ki hai is lekhan me vo prashansneey hai aur prabhaavotpadak bhi.
aabhar.
ऐसे प्रश्न यदा-कदा मेरे मन में भी सर उठाते हैं...और बात-चीत में अक्सर इसका जिक्र करती रहती हूँ....इन नेताओं की रिटायरमेंट की क्यूँ नहीं सोची जाती...ये तो व्हील चेयर पर चलें...कांपते हाथों से माइक थामे...पर अपनी गद्दी पर सवार ही रहते हैं.
ReplyDeleteबहुत ही सही मुद्दे को विश्लेषित करता सामयिक आलेख
बिल्कुल सही कहा है आपने इस आलेख सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
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