मेरी चाहतों का वजूद भी
कितना क्षणिक,
कितना अस्थाई है ,
ठीक वैसे ही जैसे
सागर की उत्ताल तरंगों का
एक पल के लिये
क्षणिक आवेश में
बहुत ऊपर उठ परस्पर
प्रगाढ़ आलिंगन में बँध जाना
और अगले ही पल
तीव्र गति के साथ तट से टकरा
बूँद-बूँद बिखर
सागर की अनंत जलराशि में
विलीन हो जाना !
ठीक वैसे ही जैसे
वृक्ष की ऊँची शाखों पर
तेज़ हवा से हिलते पत्तों का
पल भर के लिये
बेहद उल्लसित हो
बहुत आल्हादित हो
परस्पर अंतहीन वार्तालाप में
संलग्न होना और फिर
अगले पल ही हवा के
तीव्र झोंके के साथ द्रुत गति से
उड़ कर नीचे आते हुए
दूर-दूर छिटक कर
धरा पर बिखर जाना !
ठीक वैसे ही जैसे
पानी से भरे किसी नन्हे से
बादल के इस भ्रम का,
कि उसने तो सातों सागरों की
जलनिधि को अपने अंतर में
समेटा हुआ है,
वाष्प बन तिरोहित हो जाना
और उसके उर अंतर को
निचोड़ कर रीता कर जाना
जब उसके कोष की हर बूँद
अषाढ़ की पहली गर्जन के साथ
क्षण मात्र में तपती धरा की
धधकती देह पर गिरती है
और गहरे सागर की
उफनती जल राशि में समा जाती है
पुन: भाप बन जाने के लिये !
मन को अलौकिक आनंद से
विभोर कर देने वाली
पानी पर लिखी ये लकीरें भी तो
ऐसी ही क्षणिक हैं !
साधना वैद
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही दार्शिनिक कविता ,मन को अंदर तक भिगो गयी| अच् ही हम सबका अस्तित्व बस इतना ही है|
ReplyDeleteआपके आध्यात्मिक और दार्शनिक चिंतन से उपजी यह कविता अपने संदेश से हमें आकर्षित करती है।
ReplyDeleteभले ही चाहतों का वजूद क्षणिक हो पर लहरें तो उठा ही देता है ...और यही पलांश जीने का सबब बन जाता है ... बहुत अच्छी लगी यह रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही दार्शिनिक कविता|
ReplyDeleteपानी पर लिखी तहरीरों की तरह
ReplyDeleteमेरी चाहतों का वजूद भी
कितना क्षणिक,
कितना अस्थाई है ,
प्रथम इन पंक्तियों ने ही झकझोर कर रख दिया...
आगे की पंक्तियों ने तो पूरी तरह विश्लेषित कर दिया,....बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति
आकर्षित करती बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteपानी पर लिखी तहरीरों की तरह मेरी चाहतों का वजूद भी कितना क्षणिक, कितना अस्थाई है
ReplyDeleteसाधना जी ..आपका लेखन पढने के लिए नहीं..आत्मसात कर लेने के लिए होता है ...!!एक बार नहीं ..कई बार पढ़ती हूँ मैं ...और हर बार एक नयी अनुभूति ..मिलती है ...!!
bahut sunder rachna ...!!
पानी पर लिखी लकीरें बेशक क्षणिक हों लेकिन आदमी इनसे मोह छोद नही पाता। दिल की गहराई से निकले भाव। शुभकामनायें।
ReplyDeleteअस्थाई वज़ूद वाली चाहतें कभी कभी दीर्घकालीन संकल्प का आधार भी बन जाती हैं|
ReplyDeleteये तो प्रकृति का नियम है
ReplyDeleteजिसे हम स्थायी समझते हैं वो भी तो स्थायी नहीं हम आप रिश्ते.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
अच्छी लगी यह रचना ...
ReplyDeleteजीवन की क्षणभंगुरता की बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 21 - 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 51 ..चर्चा मंच
पानी पर लिखी तर्ह्रीरों की तरह मेरी चाहतों का वजूद ...
ReplyDeleteकुछ क्षण ऐसे ही होते हैं में जिनमे पूरा जीवन जी लिया जाता है ...
विचारों का प्रवाह सुन्दर कविता में बहा !
dil ko choonewali,darsanik,yathart batati hui shaander rachanaa.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
पानी पे लिखी तहरीरों सा क्षणिक वजूद ... कुछ पल ही सही ये वजूद रहता तो है ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteबहुत कुछ दार्शनिक अंदाज में कह गईं आप.
ReplyDeleteji han ekantwas bhi khatam ho gaya aur exam bhi.
ReplyDeleteaapki kavitaao me aapki srijan kshamta unchaayion ko chhuti hai. bahut sunder sashakt lekhan.
पानी पर लिखी तहरीरों की तरह
ReplyDeleteमेरी चाहतों का वजूद भी
कितना क्षणिक,
कितना अस्थाई है
waahh!!!
uchh star ki daarshnik kavita.....
jeevan ka kya marm samjhna hoga,
kaha tak abhilasha ko rakhna hai
seekhna hoga.....
दार्शनिक अंदाज़ होने के बावजूद विचारों के प्रवाह को दार्शनिकता रोक नहीं पाती......कविता सहज रूप से आगे बढ़ती है.......सुन्दर!!
ReplyDeleteपानी पर लिखी तहरीरों की तरह
ReplyDeleteमेरी चाहतों का वजूद भी
कितना क्षणिक,
कितना अस्थाई है ,
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ ...सशक्त रचना ।