देख रहे हो मुझे ?
कितना सुन्दर है
मेरा रूप
कितना खुशनुमां है
मेरा रंग
कितना कोमल है मेरा बदन
कितना कोमल है मेरा बदन
और कितनी मादक है
मेरी खुशबू !
नन्हा सा अवश्य हूँ
लेकिन
हौसला बहुत है
मुझमें
इतने बड़े वृक्ष के
इतने सारे
इतने पुराने फल फूल पत्ते
मेरा मुकाबला नहीं
कर सकते !
हवा के एक हल्के से झोंके
से
असंख्य पत्ते
धराशायी हो जाते हैं
लेकिन मैं नन्हा सा
कोमल किसलय
अपनी डाल पर मजबूती
से टिका रहता हूँ
बड़ी से बड़ी आँधी भी
मुझे
न डरा पाती है, न
झुका पाती है,
न ही धरा पर गिरा
पाती है !
मुझमें अपार संभावनाएं
हैं
बढ़ने की, विकसित
होने की
संसार को कुछ देने
की !
कोमल हूँ पर कमज़ोर
नहीं
नन्हा हूँ पर नगण्य
नहीं
वृक्ष का अस्तित्व
मुझसे है
वृक्ष का सौन्दर्य
मुझसे है
वृक्ष की जान मुझमें
है !
मैं जीवन का प्रतीक
हूँ !
मैं नन्हा कोमल किसलय
हूँ !
जिस भी किसी दिन
वृक्ष में
अंकुर फूटना रुक
जाएगा
नव पल्लवों का उगना
बंद हो जायेगा
वह धीरे-धीरे सूखने
लगेगा,
वह बीमार हो जाएगा
और एक दिन वह मर
जाएगा !
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 16 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद शास्त्री जी ! आभार आपका !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१७-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २१ 'किसलय' (चर्चा अंक-३७०४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteउम्दा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुनीता जी ! स्वागत है आपका !
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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