“ देख कितने अच्छे लग रहे हैं दोनों ! स्कूल जा रहे हैं पढ़ने को !”
कूड़े में से बेचने लायक काम का सामान बीन कर इकट्ठा करना निमली और उसके छोटे भाई सुजान का रोज़ का काम है ! इसे बेच कर जो थोड़े बहुत पैसे घर में आ जाते हैं उनसे माँ कभी-कभी उन्हें मीठी गोली भी दिला देती है ! गोली के लालच में इस वक्त वही बटोरने के लिए बड़े-बड़े बोरे कंधे पर लटकाए दोनों डम्पिंग ग्राउंड की ओर जा रहे थे ! हठात् सामने से आते स्कूल जाने वाले सौरभ और कनिका पर नज़र पड़ी तो निमली के मन के उद्गार फूट पड़े !
उनकी चमचमाती ड्रेस और जूते देख सुजान की आँखों में भी हसरत भरी प्रशंसा के भाव थे ! फिर भी वह बोला -
“हाँ री निमली, देख ना उनकी पीठ पर भी बोझा है ! कैसे हैरान परेशान से दिखते हैं दोनों !”
“चल पागल, उनकी पीठ पर जो बोझा है वह है किताबों का और हमारी पीठ पर जो बोझा है वो है कूड़ कबाड़ का !”
दोनों की आँखों में पल भर को उदासी तैर गयी !
अचानक सुजान के मन में बिजली सी कौंध गयी ! वह चहक कर बोला,
“निमली, कितना अच्छा हो जो हम लोग अपना बोझा इनसे बदल लें ! मैं तो खुशी-खुशी उनका बस्ता उठा लूँगा ! और तू ?”
“चल पूछ कर देखें ! मेरे पास कल वाली गोलियां भी हैं ! वो भी दे देंगे !” सुजान का उत्साह देखते बनता था ! उसकी आँखों में सुन्दर तस्वीरों वाली चिकनी किताबें घूम रही थीं जो एक बार उसे रद्दी के ढेर में मिली थीं और जिन्हें उसने अभी तक अपने पास सम्हाल कर रख लिया है !
निमली उसे रोक पाती उससे पहले ही वह दौड़ कर सौरभ के पास चला गया ! निकर की जेब से मीठी गोलियाँ निकाल उसने सौरभ के आगे अपनी हथेली फैला दी !
“ खाओगे ?”
अपने सामने मैले कुचैले कपड़ों में खड़े सुजान को देख सौरभ चौंक गया !
“नहीं ! हटो सामने से हमें देर हो रही है !” वह झल्ला कर बोला !
“ले लो ना ! हम तुम्हारा भारी बोझा भी अपने हलके बोझे से बदल लेंगे !”
सुजान ने चतुराई से बात आगे बढ़ाई !
“क्या कहा तुमने ? हमारे बोझे से तुम अपना बोझा बदलना चाहते हो ?”
सौरभ के चहरे पर हैरानी झलक रही थी !
“पागल तो नहीं हो तुम ? यह बोझा नहीं है जो हमारी पीठ पर है ! इन किताबों में दुनिया भर की ज्ञान की बातें हैं जिन्हें पढ़ कर इंसान बड़ा आदमी बनता है ! अच्छे अच्छे काम करता है ! डॉक्टर इंजीनियर, वैज्ञानिक, अध्यापक, कलाकार बनता है ! तुमको भी पढ़ना चाहिए ! तुम्हारे पास बोरे में सिर्फ कूड़ा और गन्दगी है ! इसे फेंक दो ! अगर तुम पढ़ना चाहते हो हमारे साथ चलो ! हम अपने टीचर से तुम्हें मिलवा देंगे ! वो ज़रूर तुम्हारा एडमीशन किसी स्कूल में करवा देंगे !” सौरभ ने उसे समझाने की कोशिश की !
निमली सुजान का हाथ पकड़ उसे दूर खींच ले गयी, “जल्दी चल ! देर हो जायेगी तो माँ मारेगी ! उसे चौका बासन करने जाना है !”
सौरभ की बातें सुजान के मन में हलचल मचा रही थीं ! उसे भी स्कूल जाना है, किताबें पढ़ कर बड़ा आदमी बनना है ! मगर कैसे ? कंधे के बोझ से कहीं अधिक भारी बोझ इस समय उसके मन पर सवार था !
साधना वैद
चिन्तन...
ReplyDeleteघर की भी चिन्ता
और भविष्य की भी
सादर नमन
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-06-2019) को "बोलता है जीवन" (चर्चा अंक- 3357) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सभी मौमिन भाइयों को ईदुलफित्र की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी! सादर वन्दे !
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बच्चों का बचपना गुम न होने दें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDelete