मैं एकाकी कहाँ !
जब भी मेरा मन उदास होता है
अपने कमरे की
प्लास्टर उखड़ी दीवारों पर बनी
मेरे संगी साथियों की
अनगिनत काल्पनिक आकृतियाँ
मुझे हाथ पकड़ अपने साथ खींच ले जाती हैं,
मेरे साथ ढेर सारी मीठी-मीठी बातें करती हैं,
और उनके संग बोल बतिया कर
मेरी सारी उदासी तिरोहित हो जाती है !
फिर मैं एकाकी कहाँ !
जब भी मेरा मन उत्फुल्ल हो
सजने सँवरने को लालायित होता है
शीतल हवा के नर्म, मुलायम,
रेशमी दुपट्टे को लपेट ,
उपवन के सुगन्धित फूलों का इत्र लगा
मैं अपनी कल्पना के संसार में
विचरण करने के लिये निकल पड़ती हूँ,
जहाँ कोई अकुलाहट नहीं,
कोई पीड़ा नहीं,
कोई छटपटाहट नहीं
बस केवल आनंद ही आनंद है !
फिर मैं एकाकी कहाँ !
जब भी कभी सावन की घटाएं
मेरे हृदय के तारों को झंकृत कर जाती हैं,
टीन की छत पर सम लय में गिरती
घनघोर वृष्टि की थाप पर
मेरा मन मयूर थिरक उठता है,
खिड़की के शीशे पर गिरती
बारिश की बूँदों की संगीतमय ध्वनि
मेरे मन को आल्हादित कर जाती है
और उस अलौकिक संगीत से
मेरे अंतर को
निनादित कर जाती है !
फिर मैं एकाकी कहाँ !
जब भी कभी मेरा मन
किसी उत्सव समारोह में सम्मिलित होने को
उतावला हो जाता है
मैं अपने हृदय की पालकी पर सवार हो
सुदूर आकाश में पहुँच जाती हूँ
जहाँ सितारों की रोशनी से
सारा उत्सव स्थल जगमगाता सा प्रतीत होता है,
जहाँ घटाओं की मृदंग
और बिजली की धार पर
दिव्य अप्सराओं का नृत्य हो रहा होता है
और समस्त ग्रह नक्षत्र झूम-झूम कर
करतल ध्वनि से उनका
उत्साहवर्धन करते मिल जाते हैं !
फिर इन सबके सान्निध्य में
मैं एकाकी कहाँ !
साधना वैद
सुप्रभात
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों में अभिब्यक्ति |उम्दा कविता |
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22 -06-2019) को "बिकती नहीं तमीज" (चर्चा अंक- 3374) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर साधना जी ! एक पुराना नग्मा याद आ गया -
ReplyDeleteमैं जब भी अकेली होती हूँ
तुम चुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में
बीते दिन याद दिलाते हो.
सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार गोपेश जी ! यह गीत मुझे भी बहुत पसंद है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteकोई पीड़ा नहीं,
ReplyDeleteकोई छटपटाहट नहीं
बस केवल आनंद ही आनंद है !
फिर मैं एकाकी कहाँ !
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार
बढ़िया रचना और अभिव्यक्ति की क्षमता है साधना |
ReplyDeleteउदासी को माधुर्य में बदलना कोई आपसे सीखे दीदी!!!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार जीजी !
ReplyDeleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार मीना जी !
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