हल्की सी ठेस
तोड़ जाती पल में
काँच से रिश्ते
कटु वचन
छुईमुई से सच्चे
शर्मिन्दा रिश्ते
गुस्से की आँधी
टहनी से झरते
फूलों से रिश्ते
बातों के शोले
अपमान की आग
झुलसे रिश्ते
चीरती बातें
मखमल से रिश्ते
काँटों से लोग
हुए एकाकी
जो सँवारे न रिश्ते
लगाए रोग
निर्मम धूप
चुरा कर ले गयी
रिश्तों की गंध
व्यर्थ हो गये
कागज़ के फूलों से
रिश्ते निर्गंध
पूरा होने को
तरसते ही रहे
अधूरे रिश्ते
डाल से टूटे
जीवन सलिला में
बहते रिश्ते
साधना वैद
बेहतरीन..
ReplyDeleteकल मंगल को आपकी ये रचना आएगी
सादर
प्रस्तुति सखी मीना जी की है
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 04, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-06-2019) को “प्रीत का व्याकरण” तथा “टूटते अनुबन्ध” का विमोचन" (चर्चा अंक- 3356) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 03/06/2019 की बुलेटिन, " इस मौसम में रखें बच्चो का ख़ास ख़्याल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शिवम् जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteशानदार हाईकू |
ReplyDeleteरिश्ते मायाजाल हैं दीदी।
ReplyDeleteपर आपने उन्हें बहुत सुंदर ढ़ंग से प्रस्तुत किया है।
बहुत सुंदर हाइकु
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