स्तब्ध जलधि
दूर छूटता कूल
एकाकी मन !
रुष्ट है रवि
रक्तिम है गगन
दूर किनारा !
मेरे रक्ताश्रु
मिल गये जल में
रक्तिम झील !
सुनाई देती
सिर्फ चप्पू की ध्वनि
उठी तरंगें !
लोल लहरें
ढूँढे रवि आश्रय
छिपा जल में !
दग्ध हृदय
बहता दृग जल
मन वैरागी !
ले चल मुझे
दूर इस जग से
नन्ही सी नौका !
किसे सुनाऊँ
अपनी व्यथा कथा
कोई न पास !
ढलती शाम
है छाया अँधियारा
दूर किनारा !
डूबा जल में
सुलगता भास्कर
दहकी झील !
फैला चार सूँ
धरा से नभ तक
पिघला सोना !
साधना वैद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन हाइकु दी जी
ReplyDeleteप्रणाम
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा हाईकू |
मेरे रक्ताश्रु मिल गए जल में रक्तिम झील ...वाह दीदी सभी बिम्ब अनूठे . क्या बात है
ReplyDeleteमेरे रक्ताश्रु मिल गए जल में रक्तिम झील ...वाह दीदी सभी बिम्ब अनूठे . क्या बात है
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteहृदय से आपका बहुत बहुत आभार गिरिजा जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर हायकू दी.. 👌 👌 👌
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! स्वागत है आपका !
ReplyDeleteबहुत सुंदर हाइकु साधना जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसराहनीय सुंदर हायकु 👌
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