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Wednesday, January 25, 2012

डायरी का दूसरा पन्ना


यह कैसी खामोशी !

जाने क्यों ऐसा लगता है कि इस एक लफ्ज़ में ही सारे ज़माने का शोर समाया हुआ है ! डर लगता है इसे उच्चारित करूँगी तो उससे उपजे शोर से मेरे दिमाग की नसें फट जायेंगी ! एक चुप्पी, एक मौन, एक नीरवता, एक निशब्द सन्नाटा जो हर वक्त मन में पसरा रहता है जैसे अनायास ही तार-तार हो जायेगा और इस शब्द मात्र का उच्चारण मुझे मेरे उस सन्नाटे की सुकून भरी पनाहों से बरबस खींच कर समंदर के तूफानी ज्वार भाटों की ऊँची-ऊँची लहरों के बीच फेंक देगा ! मुझे अपने मन की यह नीरवता मखमल सी कोमल और स्निग्ध लगती है ! यह एकाकीपन और सन्नाटा अक्सर आत्मीयता का रेशमी अहसास लिये मुझे बड़े प्यार से अपने अंक में समेट लेता है और मैं चैन से उसकी गोद में अपना सर रख उस मौन को बूँद-बूँद आत्मसात करती जाती हूँ !

साँझ के उतरने के साथ ही मेरी यह नि:संगता और अँधेरा बढ़ता जाता है और हर पल सारी दुनिया से काट कर मुझे और अकेला करता जाता है ! आने वाले हर लम्हे के साथ यह मौन और गहराता जाता है और मैं अपने मन की गहराइयों में नीचे और नीचे उतरती ही जाती हूँ ! और तब मैं अपनी क्षुद्र आकांक्षाओं, खण्डित सपनों, भग्न आस्थाओं, आहत भावनाओं, टूटे विश्वास, नाराज़ नियति और झुके हुए मनोबल के इन्द्रधनुष को अपने ही थके हुए जर्जर कंधों पर लादे अपने रूठे देवता की छुटी हुई उँगली को टटोलती इस घुप अँधेरे में यहाँ से वहाँ भटकती रहती हूँ ! तभी सहसा मेरे मन की शिला पर सर पटकती मेरी चेतना के घर्षण से एक नन्हीं सी चिन्गारी जन्म लेती है और उस चिन्गारी की क्षीण रोशनी में मेरे हृदय पटल पर मेरी कविताओं के शब्द प्रकट होने लगते हैं ! धीरे-धीरे ये शब्द मुखर होने लगते हैं और मेरे अंतर में एक जलतरंग सी बजने लगती है जिसकी सम्मोहित करती धुन एक अलौकिक संगीत की सृष्टि करने लगती है ! मेरा सारा अंतर एक दिव्य आलोक से प्रकाशित हो जाता है और तब कल्पना और शब्द की, भावना और संगीत की जैसी माधुरी जन्म लेती है वह कभी-कभी अचंभित कर जाती है ! मेरे मन के गवाक्ष तब धीरे से खुल जाते हैं और मेरे विचारों के पंछी सुदूर आकाश में पंख फैला ऊँची बहुत ऊँची उड़ान भरने लगते हैं साथ ही मुझे भी खामोशी की उस दम घोंटने वाली कैद से मुक्त कर जाते हैं !

मुझे अपने मन का यह शोर भला लगता है ! मुझे खामोशी का अहसास डराता है लेकिन मेरे अंतर का यह कोलाहल मुझे आतंकित नहीं करता बल्कि यह मुझे आमंत्रित करता सा प्रतीत होता है !

साधना वैद

Saturday, January 21, 2012

हमारे शहरों के रेल मार्ग सुन्दर क्यों नहीं हो सकते ?

अमेरिका की मशहूर टी वी होस्ट ओपरा विनफ्रे की आगरा यात्रा और इस शहर की साफ़ सफाई और रख रखाव पर उनकी प्रतिक्रिया ने आगरा शहर के अधिकारियों और ज़िम्मेदार संस्थाओं को चेताया हो या नहीं कम से कम मुझे तो बहुत विचलित किया है ! यहाँ की व्यवस्थाएं कुछ करें या ना करें लेकिन आगरा शहर के नागरिकों से मेरी ज़रूर इतनी अपील है कि वे अपने घर के आसपास और अपने मोहल्ले की साफ़ सफाई का ध्यान अवश्य रखें ! किसी बाहर से आये मेहमान को प्रभावित करने के लिये ऐसा करना आवश्यक नहीं है खुद उनके अपने स्वास्थ्य और सुरुचिपूर्ण जीवनयापन के लिये भी यह बहुत ज़रूरी है ! ओपरा विनफ़्रे सड़क मार्ग से आगरा आईं तो उनके उद्गारों से उनका रोष और असंतोष सबने महसूस किया ! ज़रा उन मेहमानों के बारे में भी सोचिये जो रेल मार्ग से सफर करते हैं ! उन्हें कैसे कैसे शर्मनाक दृश्यों का सामना करना पड़ता होगा क्या किसीने कभी इस पर विचार करने की ज़हमत उठाई है ? विदेशी मेहमान रेल मार्ग से भी बहुत यात्रा करते हैं ! दो वर्ष पूर्व मैंने इसी विषय पर एक आलेख लिखा था ! चाहती हूँ इसे आज आप भी पढ़ें ! मेरे इस अरण्यरोदन से इन दो वर्षों में कोई परिवर्तन नहीं आया ! अच्छी तरह से जानती हूँ कि आने वाले कई वर्षों तक इस स्थिति में सुधार आने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि जिनके हाथों में सत्ता की बागडोर है वे कानों में तेल डाले और आँखों पर पट्टी बाँधे बैठे रहते हैं ! ऐसा नहीं है कि उन्हें इन हालातों की जानकारी नहीं है ! बस कुछ करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है ! इसलिए आज से दस वर्ष बाद भी मेरा यह आलेख उतना ही सामयिक होगा जितना आज है और आज से दो वर्ष पूर्व था ! तो लीजिये आप भी उसे पढ़िये !
मुझे यात्रा करने का बड़ा शौक है, वह भी रेल से । रास्ते में मिलने वाले
जंगल, पहाड़, नदियाँ, तालाब, खेत, खलिहान सभी मुझे बहुत लुभाते हैं । लेकिन जैसे ही रेल किसी शहर या कस्बे के पास आने को होती है खिड़की के बाहर टँगी मेरी चिर सजग आँखे संकोच और शर्मिंदगी से खुद ब खुद बन्द हो जाती हैं ।
इसकी केवल एक ही वजह है कि जैसे ही रेल किसी भी रिहाइशी इलाके में प्रवेश करती है वहाँ की गन्दगी और नज़ारा देख वितृष्णा से मन कसैला हो जाता है । यह समस्या वैसे तो पूरे भारत में ही पसरी हुई है लेकिन विशेष रूप से पंजाब , हरियाणा, उत्तर प्रदेश व बिहार में अधिक विकट है । जिस तरह से हम अपने हवाई अड्डों को विश्वस्तरीय बनाने के लिये प्रयत्नशील हैं , अपने शहर के सड़क मार्गों को भी साफ सुथरा और आकर्षक बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं वैसे ही हम अपने रेल मार्ग को सुन्दर बनाने की कोशिश क्यों नहीं करते ? जबकि यथार्थ रूप में अधिकांश शहरों में सड़क मार्ग से आने वालों की तुलना में रेल मार्ग से आने वाले यात्रियों की संख्या कहीं अधिक होती है । फिर रेल मार्ग के प्रति इतनी उपेक्षा क्यों ? क्या उसके द्वारा आने वाले यात्री और अतिथि हमारे शहर के लिये कोई महत्व नहीं रखते या फिर हमारे शहर या गाँव के प्रति बनाई हुई उनकी धारणा कोई अर्थ नहीं रखती ? आगंतुकों के स्वागत सम्बन्धी बोर्ड्स और पोस्टर्स सड़क मार्ग पर तो कभी कभी दिखाई भी दे जाते हैं लेकिन रेल मार्ग से गुजरने वाले अतिथियों को यह सम्मान नसीब नहीं हो पाता । रेल के द्वारा शहर में प्रवेश करने वाले मेहमानों को स्टेशन पर पहुँचने से पहले किस प्रकार के अशोभनीय दृश्य और गन्दगी से दो चार होना पड़ता है इस ओर हमारा ध्यान कभी नहीं जाता । किसी भी आबादी वाले हिस्से के आने से पूर्व कम से कम डेढ़ दो किलो मीटर पहले से रेल यात्रियों को खुले में शौच जाने वाले लोगों के निर्लज्ज एवम अशोभनीय दृश्यों से न चाहते हुए भी दो चार होना पड़ता है । समूचा मार्ग गन्दगी और दुर्गन्ध से भरा होता है । हमारे शहरों के नागरिक और रेल प्रशासन इस नारकीय स्थिति को सुधारने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाते ।

रेलवे स्टेशन के आस पास के रिहाइशी इलाकों में प्रयोग के लिये अनेक शौचालयों का निर्माण कराया जाना चाहिये जिनके नि:शुल्क प्रयोग के लिये आम जनता को प्रोत्साहित करने के लिये सभी सार्थक प्रयास किये जाने चाहिये । इसके लिये सुलभ इंटरनेशनल वालों के अनुभवों और ज्ञान का लाभ उठाया जा सकता है । घनी आबादी के बीच से जहाँ रेल मार्ग गुजरते हैं उसके दोनों तरफ छोटी बड़ी निजी सम्पत्तियों के जो मालिक इस अभियान में सहयोग करें उन्हें टैक्स आदि में रियायत देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ।
रेल मंत्रालय के पास ना तो संसाधनों की कमी है ना ही रेलवे फ्रण्ट के सौंदर्यीकरण के लिये अधिक खर्च की आवश्यक्ता है । थोड़ी सी सफाई और खूब सारी हरियाली ही तो चाहिये । क़्या ऐसा नहीं हो सकता कि जो शहर और कस्बे अपने रेलवे फ्रण्ट को सुन्दर रखें उन्हें प्रति माह रेलवे कुछ नगद पुरस्कार दे । इस पुरस्कार राशि में पर्यटन विभाग तथा केन्द्र व राज्य की सरकारें भी चाहें तो भागीदार बन सकती हैं । इस प्रयास को और अधिक व्यापक रूप से प्रचारित करने के लिये रेल मंत्रालय द्वारा अंतर्शहरी प्रतियोगितायें भी आयोजित कराई जा सकती हैं जिससे नागरिकों को एक अच्छे काम के लिये प्रोत्साहित किया जा सके । आशा है नई रेल मंत्री सुश्री ममताजी इस दिशा में भी विचार करेंगी और रेल मार्गों के सौंदर्यीकरण की दिशा में सार्थक कदम उठायेंगी ।
साधना वैद

Friday, January 20, 2012

ओपरा विनफ्रे और हमारा आगरा

कल अमेरिका की मशहूर टी वी होस्ट ओपरा विनफ्रे आगरा आईं ! उन्होंने ताजमहल देखा और उस पर अपने शो के लिये डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई ! इससे पूर्व वे वृंदावन भी गयी थीं और जहाँ पर उन्होंने विधवा आश्रमों में संत्रास का जीवन बिताने वाली विधवाओं की दुर्दशा का भी जायज़ा लिया ! उनसे बातचीत कर उनके दुखड़ों को सुना, उनकी जीवनचर्या की जाँच पड़ताल की और उन्हें क्या सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं इस पर भी अपनी पैनी नज़र डाली ! हमें पूरा विश्वास है ओपरा के आगमन का समाचार सुन कर इन आश्रमों के व्यवस्थापकों एवं संचालकों ने आश्रम के परिसरों और उनमें रहने वाले बाशिंदों के निस्तेज चेहरों को चमकाने की भरपूर कोशिश की होगी लेकिन कोई कितना भी छिपाने की चेष्टा कर ले चेहरों की झुर्रियाँ और शरीर के हर अंग से उभरी हड्डियाँ अपनी दुर्दशा की दास्तान खुद कह देती हैं ! ओपरा संचालकों की इस मशक्कत से कितनी भ्रमित हुईं, उन्होंने क्या देखा, क्या समझा और क्या फिल्माया यह तो उनका शो देख कर ही पता लगेगा लेकिन वे जो कुछ यहाँ कह गयीं वह हमारा सिर शर्मिंदगी से झुकाने के लिये पर्याप्त है !

वृन्दावन के अपने इस अभियान के बाद वे सड़क मार्ग से आगरा पहुँचीं ! इस क्षेत्र में रहने वाले निवासी उस मार्ग की दुर्दशा से भलीभाँति परिचित होंगे ! सारे मार्ग में जगह-जगह गन्दगी और कूड़े के अम्बार लगे हैं ! रास्ते पर मवेशी बेलगाम घूमते रहते हैं जो निश्चित रूप से उनके लिये बड़ा शॉकिंग अनुभव रहा होगा ! सड़कों पर बेतरतीब ट्रैफिकिंग की वजह से बार-बार जाम लग जाना तो साधारण सी बात है जिसे हमारे यहाँ बड़े धैर्य के साथ बर्दाश्त करने की आदत सबने डाल ली है ! ओपरा को ताजमहल बहुत सुन्दर लगा लेकिन आगरा शहर की गन्दगी उन्हें चौंका गयी ! आज के दैनिक जागरण की हेडलाइन उन्हीं के इस उद्गार को प्रतिध्वनित कर रही है, ‘काश ! गंदा न होता आगरा !’ उन्होंने कहा कि यदि यह शहर भी ताजमहल की तरह सुन्दर होता तो पूरा विश्व यहीं रह रहा होता ! समाचार पत्र का कहना है कि नेताओं के गाल पर तमाचे की तरह हैं अमेरिकी अदाकारा की बातें ! ओपरा ने अपने एक साक्षात्कार में रास्ते में कई जगह मिले जाम, गन्दगी और सड़कों पर लावारिस घूमते गधों और भैंसों का भी ज़िक्र किया ! उनका यह मानना है कि यह शहर गन्दगी और समस्याओं से घिरा हुआ है !

आगरा शहर पर्यटन की दृष्टि से विश्व का एक महत्वपूर्ण शहर है ! यहाँ आने वाले पर्यटकों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है इसके बारे में मैंने एक बार पहले भी अपने एक आलेख, ‘अतिथी देवो भव’, में लिखा था ! पाठकों की सुविधा के लिये उसका लिंक यहाँ दे रही हूँ !

http://sudhinama.blogspot.com/2009/08/blog-post.html

विश्व के सबसे बड़े शो की सबसे नामचीन हस्ती के मुख से अपने शहर के बारे में इतने स्पष्ट उद्गार सुन कर क्या हमारे नगरवासियों की आँखें खुलेंगी ? क्या यहाँ का नगरनिगम, पर्यटन गिल्ड और विकास प्राधिकरण कुछ हरकत में आयेगा या सिर्फ अपना गाल सहला कर इस चोट को भुला देगा ?

साधना वैद

Thursday, January 19, 2012

कैसे हों हमारे विधायक और सांसद !

हम लोगों के सौभाग्य से चुनाव का सुअवसर आ गया है और यही सही वक़्त है जब हम अपनी कल्पना के अनुसार सर्वथा योग्य और सक्षम प्रत्याशी को जिता कर भारतीय लोकतंत्र के हितों की रक्षा करने की मुहिम में अपना सक्रिय योगदान कर सकते हैं । इस समय यह सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि जिन लोगों को हम वोट देने जा रहे हैं उनका पिछला रिकॉर्ड कैसा है, क्या वे आपराधिक छवि वाले नेता हैं, सामाजिक सरोकारों के प्रति वे कितने प्रतिबद्ध हैं और अपनी बात को दम खम के साथ मनवाने की योग्यता रखते हैं या नहीं । मात्र सज्जन और शिक्षित होना ही वोट जीतने के लिये काफी नहीं है । प्रत्याशी का जुझारू होना परम आवश्यक है वरना वह विधान सभा या संसद में मिमियाता ही रह जायेगा और कोई उसकी बात को सुन ही नहीं सकेगा । सर्वोपरि यह भी सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि सत्ता में आने के बाद उसका लक्ष्य जनता की सेवा करना होगा या उसके दायरे में सिर्फ उसका अपना परिवार और नाते रिश्तेदार ही होंगे ।
विधान सभा या संसद में केवल हल्ला गुल्ला करने वाले और मेज़ कुर्सी माइक फेंकने वाले लोगों के लिये कोई जगह नहीं होनी चाहिये जो विश्व बिरादरी में हम सब के लिये शर्मिंदगी का कारण बनते हैं । वहाँ ज़रूरत है ऐसे लोगों की जो बिल्कुल साफ और स्पष्ट दृष्टिकोण रखते हों और जिनकी आस्थायें और मूल्य दल बदल के साथ ही बदलने वाले ना हों । संसद में समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व होना बहुत ज़रूरी है ताकि वे अपने वर्ग के हितों की रक्षा कर सकें और उसकी हिमायत में भरपूर वज़न के साथ अपनी बात रख सकें । इसके लिये प्रखर बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों और पैनी नज़र रखने वाले ईमानदार आलोचकों की आवश्यक्ता है जो विधान सभा या संसद में पास होने वाले ग़लत निर्णयों का डट कर विरोध कर सकें । इसीलिये हमारे खेतिहर किसान भाइयों की पैरवी के लिये ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े प्रतिनिधियों, व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिये उद्योग जगत से जुड़े उद्यमियों, बच्चों के हितों के लिये प्रतिबद्ध शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों, सैन्य गतिविधियों पर पैनी नज़र रखने के लिये सेना से जुड़े रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों, जनता के हित में पास होने वाले कानूनों के कड़े विश्लेषण के लिये सुयोग्य कानूनविदों, जनता पर थोपे जाने वाले करों की उचित समीक्षा के लिये अनुभवी अर्थशास्त्रियों तथा कलाकारों से जुड़ी समस्याओं के निवारण के लिये सुयोग्य कलाकारों का प्रतिनिधित्व होना बहुत ज़रूरी है । सत्ता सुख को चखने के लिये आतुर पार्टीज़ के शीर्षस्थ नेताओं को चाहिये कि अपनी पार्टी के लिये प्रत्याशियों का चुनाव करते समय वे इन बातों का अवश्य ध्यान रखें और मतदाताओं से भी मेरा अनुरोध है कि अपना अनमोल वोट देने से पहले वे यह अवश्य सुनिश्चित कर लें कि वे जिस प्रत्याशी को वोट देने जा रहे हैं वह उपरोक्त वर्णित किसी भी कसौटी पर खरा उतर रहा है या नहीं । यह अवसर इस बार हाथ से निकल गया तो फिर अगले पाँच साल तक हाथ मलने के सिवा और कुछ बाकी नहीं रहेगा । वोट ना देने या खड़े हुए किसी भी प्रत्याशी के प्रति अपनी असहमति को व्यक्त करने का मतलब है कि आप अपने अधिकारों को व्यर्थ कर रहे हैं । आपके इस निर्णय से चुनाव प्रक्रिया पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा । कोई न कोई तो चुन कर आ ही जायेगा फिर आपके पास अगले पाँच साल तक उसीको अपने सर माथे पर बिठाने के अलावा कोई चारा न होगा और फिर नैतिक रूप से अपने नेता की किसी भी तरह की आलोचना करने का अधिकार भी आपके पास नहीं होना चाहिये क्योंकि उसे जिताने मे आपकी भूमिका भी यथेष्ट रूप से महत्वपूर्ण ही होगी भले ही वह प्रत्यक्ष ना होकर परोक्ष ही हो ।

साधना वैद

Saturday, January 14, 2012

दिक्भ्रमित मतदाता

मतदान का समय नज़दीक आ रहा है । चारों ओर से मतदाताओं पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें । इस बार चूक गये तो अगले पाँच साल तक हाथ ही मलते रह जायेंगे इसलिये सही प्रत्याशी को वोट दें, सोच समझ कर वोट दें, जाँच परख कर वोट दें, यह ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि प्रत्याशी का कोई आपराधिक अतीत ना हो, वह सुशिक्षित हो, चरित्रवान हो, देशहित के लिये निष्ठावान हो, जनता का सच्चा सेवक हो और ग़रीबों के हितों का हिमायती हो, आम आदमी की समस्याओं और सरोकारों का जानकार हो और संसद में उनके पक्ष में बुलन्द आवाज़ में अपनी बात मनवाने का दम खम रखता हो ।
बात सोलह आना सही है लेकिन असली चिंता यही है कि इन कसौटियों पर किसी प्रत्याशी को परखने के लिये मतदाता के पास मापदण्ड क्या है ? वह कैसे फैसला करे कि यह प्रत्याशी सही है और वह नहीं क्योंकि जिन प्रत्याशियों को चुनावी मैदान मे उतारा जाता है उनमें से चन्द गिने चुने लोगों के ही नाम और काम से लोग परिचित होते हैं । बाकी सब तो पहली ही बार पार्टी के नाम पर सत्ता का स्वाद चखने के इरादे से चुनावी दंगल में कूद पड़ते हैं या निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से अपना ढोल बजाने लगते हैं और जनता के दरबार में वोटों के तलबगार बन जाते हैं । ऐसे में मतदाता क्या देखें ? यह कि कौन सा प्रत्याशी कितने भव्य व्यक्तित्व का स्वामी है, या फिर कौन विनम्रता के प्रदर्शन में कितना नीचे झुक कर प्रणाम करता है, या फिर कौन फिल्मों मे या टी वी धारावाहिकों में ग़रीबों का सच्चा पैरोकार बन कर लोकप्रिय हुआ है, या फिर किसके बाप दादा पीढ़ियों से राजनीति के अखाड़े के दाव पेंचों के अच्छे जानकार रहे हैं, या फिर कौन चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जन सभाओं में बड़े बड़े नेताओं और अभिनेताओं का बुलाने का दम खम रखता है, या फिर कौन क्षेत्र विशेष की लोक भाषा में हँसी मज़ाक कर लोगों का दिल जीतने में सफल हो जाता है । या फिर पार्टी विशेष के वक़्ती घोषणा पत्र के आधार पर ही प्रत्याशी का चुनाव करना चाहिये जिसका क्षणिक अस्तित्व केवल चुनाव के नतीजों तक ही होता है और जिनके सारे वायदे और घोषणायें चुनाव के बाद कपूर की तरह हवा में विलीन हो जाते हैं । आखिर किस आधार पर चुनें मतदाता अपना नेता ?
सारे मतदाता इसी संशय और असमंजस की स्थिति में रहते हैं और शायद मतदान के प्रति लोगों में जो उदासीनता आई है उसका एक सबसे बड़ा कारण यही है कि वे अपने क्षेत्र के अधिकतर प्रत्याशियों के बारे में कुछ भी नहीं जानते और जिनके बारे में जानते हैं उन्हें वोट देना नहीं चाहते । वे किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते और चरम हताशा की स्थिति में किसी भी अनजान प्रत्याशी को वोट देकर किसी भी तरह के ग़लत चुनाव की ज़िम्मेदारी से बचना चाहते हैं ।
हमें आगे आकर इन दोषपूर्ण परम्पराओं में बदलाव लाने की मुहिम को गति देना चाहिये । चुनाव के चंद दिन पूर्व प्रत्याशियों की घोषणा किये जाने का तरीका ही ग़लत है । क़ायदे से चुनाव के तुरंत बाद ही अगले चुनाव के उम्मीदवार की घोषणा हो जानी चाहिये और अगले पाँच साल तक उसे लगातार जनता के सम्पर्क में रहना चाहिये । प्रत्येक भावी उम्मीदवार को जन साधारण की समस्याओं और सरोकारों को सुनने और समझने में समर्पित भाव से जुट जाना चाहिये । सभी पार्टीज़ के प्रत्याशी जब प्रतिस्पर्धा की भावना के साथ आम आदमी के जीवन की जटिलताओं को सुलझाने की दिशा में प्रयत्नशील हो जायेंगे तब देखियेगा विकास की गति कितनी तीव्र होगी और आम आदमी का जीवन कितना खुशहाल हो जायेगा । तब किसी प्रत्याशी के प्रति जनता के मन में सन्देह का भाव नहीं होगा । हर उम्मीदवार का काम बोलेगा और जो अच्छा काम करेगा उसे जिताने के लिये जनता खुद उत्साहित होकर आगे बढ़ कर वोट डालने आयेगी । हमेशा की तरह खींच खींच कर मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । इस प्रक्रिया से अकर्मण्य और अवसरवादी लोगों की दाल नहीं गल पायेगी । सारे गाँवों और शहरों की दशा सुधर जायेगी और आम आदमी बिजली, पानी, साफ सफाई इत्यादि की जिन समस्याओं से हर वक़्त जूझता रहता है उनके समाधान अपने आप निकलते चले जायेंगे । पाँच साल बीतने के पश्चात चुनाव के परिणाम के रूप में सबको अपनी अपनी मेहनत का फल मिल जायेगा । अगर ऐसा हो जाये तो भारत विकासशील देशों की सूची से निकल कर सबसे विकसित देश होने के गौरव से सम्मानित हो सकेगा और हम भारतवासी भी गर्व से अपना सिर उठा कर कह सकेंगे जय भारत जय हिन्दोस्तान !

साधना वैद

Wednesday, January 11, 2012

तुम्हारा इंतज़ार है

मुक्ताकाश में सजी

तारक मालिका से

प्रेरणा ले मैंने

आज अपनी

पलकों की डोर में

अश्रु मुक्ताओं को पिरो कर

अपने नयनों के द्वारों को

मनमोहक बंदनवार से

तुम्हारे लिये

सजाया है !

बारिश की बूँदों पर

बिखरी सूर्य की

कोमल किरणों

की अनुकम्पा से

उल्लसित हो

अनायास मुस्कुरा उठे

इन्द्रधनुष से

प्रेरित हो मैंने

अपनी सारी

आशा और विश्वास,

श्रद्धा और अनुराग,

मान और अभिमान

हर्ष और उल्लास के

सजीले रंगों से

अपने हृदय द्वार को

सुन्दर अल्पना के

आकर्षक बूटों से

सजाया है !

झर-झर बहते

चंचल, उच्श्रंखल

निर्मल निर्झर से

एक सुरीली सी

तरल तान उधार ले

तुम्हारे लिये

कोमल स्वरों से सिक्त

एक सुमधुर

स्वागत गीत

भी गुनगुनाया है !

अब बस उस आहट

को सुनने के लिये

मन व्याकुल है

जब दिल की ज़मीन पर

तुम्हारे कदमों

के निशाँ पड़ेंगे

और पतझड़ की

इस वीरानी में

बहार के आ जाने का

एहसास होने लगेगा !

साधना वैद

Sunday, January 8, 2012

समाचार पत्र अपना दायित्व पहचानें

चुनाव आयोग के कुछ निर्णयों पर तो आश्चर्य होता है कि महात्मा गाँधी को छोड़ कर सभी नेताओं की मूर्तियों को ढक दिया जाये ! अब ज़रा सोचिये क्या मतदाताओं की याददाश्त भी खराब हो जायेगी ! कुछ नेताओं का मूर्तिप्रेम तो सर्वविदित है ! जिस शहर में किसी खास जगह पर किसी नेता विशिष्ट की मूर्ति लगी होगी तो क्या लोग रातों रात में भूल जायेंगे कि आज जो आदमकद मुजस्समा कपड़े से ढका हुआ है कल तक वहाँ किसकी मूर्ति थी ! अक्सर तो राहगीरों को रास्ता बताने के वास्ते ये मूर्तियों वाले चौराहे ही अधिक काम आते हैं ! बल्कि इसका तो प्रत्याशियों को फ़ायदा ही होगा कि उनके प्रति चुनाव आयोग असंवेदनशील हो रहा है ! हाँ इसका फ़ायदा कुछ मौक़ा परस्त अधिकारियों को भी ज़रूर मिल जायेगा जो थैले बनाने वाले कारीगरों को तो थोड़ा सा दाम देंगे और लंबे चौड़े बिल बना कर सरकारी धन, जो वास्तव में जनता से उगाहा हुआ धन है, से अपने बैंक बैलेंस को तगड़ा करेंगे ! खैर ! आयोग है तो कुछ तो नियम उसे बनाने ही होंगे फिर चाहे वो तर्कसंगत हों या नहीं !
चुनाव का मौसम है और प्रत्याशियों का प्रचार प्रसार पूरे ज़ोर पर है । सभी अपने बारे में झूठ सच बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं । लेकिन वास्तविकता यह है कि आम जनता में से शायद किसी को भी अपने क्षेत्र के सभी प्रत्याशियों के नाम तक नहीं मालूम हैं उनके इतिहास की तो बात ही छोड़ दीजिये । यही कारण है कि जो उम्मीदवार अशिक्षित और ग़रीब मतदाताओं को जाति और धर्म का वास्ता देकर भरमा लेता है या भौतिक वस्तुओं का प्रलोभन देकर अपनी मुट्ठी में कर लेता है मतदाता उसीके पक्ष में वोट दे देते हैं चाहे फिर वह योग्य हो या ना हो । इंटरनेट पर सब के बारे में सूचना उपलब्ध है लेकिन भारत जैसे देश में कितने घरों में इंटरनेट की सुविधा सुलभ है और जीवन की आपाधापी में किसके पास इतना समय है कि वे साइबर कैफे में जाकर प्रत्याशियों के इतिहास भूगोल की जाँच पड़ताल अपनी जेब ढीली करके हासिल करें । आज के परिदृश्य में सूचना प्राप्त करने के लिये आम जनता के लिये जो सबसे सुलभ और स्थाई माध्यम है वह समाचार पत्र ही हैं । टी. वी. भी एक माध्यम है जिसकी पहुँच काफी विस्तृत है लेकिन उसकी भी सीमायें हैं कि वे समय विशेष पर ही सूचना प्रसारित कर सकते हैं और कोई आवश्यक नहीं कि उस समय सारे दर्शक अपना पसंदीदा कार्यक्रम छोड़ कर प्रत्याशियों की जानकारी जुटाने में दिलचस्पी लें । ऐसे में सभी समाचार पत्रों का दायित्व और बढ़ जाता है कि वे अपने पाठकों तक समस्त आवश्यक और अनिवार्य सूचनायें उपलब्ध करायें क्योंकि समाचार पत्रों में प्रतिदिन जो कुछ छपता है उस पर दिन भर में कभी न कभी तो नज़र पड़ ही जाती है ।
मेरे विचार से सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रतिदिन नामांकित प्रत्याशियों के बारे में इस प्रकार की सूचनायें प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये -
नाम
आयु
शिक्षा आपराधिक मामलों का विवरण
राजनैतिक इतिहास
सम्पत्ति का विवरण
व्यावसायिक अनुभव
उपलब्धियाँ और विफलतायें
आपराधिक मामलों के विवरण के तहत उन पर कितने मुकदमें चल रहे हैं, उन अपराधों की प्रकृति क्या है, कितने विचाराधीन हैं और कितनों में वे बरी हो चुके हैं इन सबका उल्लेख होना आवश्यक है ।
राजनैतिक इतिहास के विवरण के तहत यह जानकारी होना नितांत आवश्यक है कि इससे पहले वे किस पार्टी के लिये काम कर चुके हैं, कितनी बार दल बदल की राजनीति कर चुके हैं, उनकी निष्ठायें किसी भी पार्टी के लिये कितनी अवधि तक समर्पित रहीं, वे राजनीति में पहले से ही सक्रिय किस परिवार से सम्बद्ध हैं और सार्वजनिक सेवा का उनका इतिहास कितना पुराना है ।
पारदर्शिता की मुहिम के चलते सम्पत्ति का व्यौरा देना तो अब चलन में आ ही चुका है लेकिन जन साधारण के लिये यदि इसको अनिवार्य रूप से व्यक्ति विशेष की समस्त जानकारियों के साथ जोड़ कर लिखा जायेगा तो लोगों को तुलनात्मक अध्ययन करने में आसानी होगी ।
व्यावसायिक अनुभव के उल्लेख से यह विचार करने में आसानी होगी कि संसद में वे किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं । जैसे एक वकील कानून के सम्बन्ध में, एक डॉक्टर चिकित्सा के सम्बन्ध में, एक शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में, एक व्यवसायी उद्योग के सम्बन्ध में, एक कलाकार संस्कृति और कला के सम्बन्ध में, एक जन सेवक आम आदमी के सरोकारों के सम्बन्ध में, एक सैन्य अधिकारी रण कौशल से जुड़ी नीतियों के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।
उपलब्धियों और विफलताओं के बारे में यह लिखना आवश्यक है कि अब तक वे किन महत्वपूर्ण मुद्दों के लिये प्रयासरत रहे हैं और उनमें कितनी सफलता या असफलता उनके हिस्से में आयी है ।
समाचारपत्रों में जब प्रत्येक प्रत्याशी के बारे में यह जानकारी प्रतिदिन अनिवार्य रूप से छपेगी तो कोई कारण नहीं है कि मतदाता स्वविवेक का प्रयोग किये बिना भेड़चाल की तरह किसी ऐसे प्रत्याशी के पक्ष में अपना वोट डाल आयें जिसने उनको भाँति भाँति के प्रलोभन देकर प्रभावित कर लिया हो, या वह किसी जाति विशेष का प्रतिनिधि हो ।
यह भी आवश्यक है कि यह सारी सूचना पूर्णत: विशुद्ध सूचना ही हो उसमें किसी नेता या पार्टी की सोच, राय, धारणा या छवि का तड़का न लगा हो । मेरे विचार से यदि इस दिशा में ठोस कदम उठाये जायेंगे तो आम जनता को अपने विवेक का प्रयोग करने का सुअवसर अवश्य मिलेगा और तब ही शायद सर्वोत्तम प्रत्याशी की जीत सम्भव हो पायेगी जिसके लिये हम सब कृत संकल्प हैं । जय भारत !

साधना वैद