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Friday, February 22, 2013

नहीं जानती



नहीं जानती
ज़िंदगी की बेहिसाब
बेरहमियों के लिए उसका
शुक्रिया करूँ या फिर
कभी कभार भूले भटके
बड़ी कंजूसी से
भीख की तरह
दिये गये
मेहरबानियों के
चंद टुकड़ों के लिये  
उसका सजदा करूँ !
फिर लगता है
बेरहमियों के लिये
शुक्रिया ज्यादह ज़रूरी है  
क्योंकि उन्होंने
आत्मा पर चोट करते
मेहरबानियों के उन
छोटे-छोटे टुकड़ों का
मोल तो मुझे
समझा दिया ! 

नहीं जानती
आँखों की झील में आई
सुनामी में अपने
नन्हें-नन्हें सुकुमार सपनों के
असमय डूब जाने के
खतरे का हौसला रख
सामना करूँ
या फिर उन्हें
यूँ ही मर जाने दूँ और
नये सपनों की
नई पौध को
दोबारा से रोप दूँ
ताकि
सपनों की नयी फसल
एक बार फिर से
लहलहा उठे !
फिर लगता है
सुनामी का सामना  
करना ही ठीक रहेगा  
कम से कम मेरे सपने
तूफ़ान का सामना
करने के लिए
तैरना तो सीख जायेंगे !

नहीं जानती
सामने पीने के लिये
धरे गये
विष और अमृत के
दो प्यालों में से पहले
कौन सा प्याला उठाऊँ  
लबालब भरे विष के प्याले
को पहले पी डालूँ
या फिर
मधुर अमृत की
दो बूँदों से अपने
प्यास से चटकते
कंठ को पहले तर कर लूँ !
हाथ तो अमृत की ओर ही
बढ़ना चाहते हैं
फिर लगता है
पहले विष पी लेना
ही ठीक रहेगा
प्याले भर विष की कड़वाहट
अमृत की उन दो बूँदों का मोल
कई गुना बढ़ा जायेगी
जो जीवन की
मधुरता से मेरा परिचय
पहली बार ही सही 
कम से कम
करवा तो देंगी  
और साथ ही
जीवन के सत्य,
शिव और सुन्दर से भी
मेरा साक्षात्कार
ज़रूर हो जायेगा
ऐसा मुझे विश्वास है !

साधना वैद


19 comments :

  1. क्या कहूं साधनाजी ..नि:शब्द हूँ ....बहुत कुछ सीख लिया इससे .....साभार !

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  2. टुकड़े और खुद्दारी के बीच गेंद की तरह लुढ़कता मन
    क्या इसे जीना कहते हैं ?
    ........
    सांस लेने को तो जीना नहीं कहते
    पर मकसदों की पतवार जीने के कई कारण दे जाती है .........

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  3. प्याले भर विष की कड़वाहट
    अमृत की उन दो बूँदों का मोल
    कई गुना बढ़ा जायेगी
    गहन भाव लिये ये पंक्तियां ... नि:शब्‍द करती हुई
    सादर

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  4. बेरहमियों से छोटी छोटी मेहरबानियों का मोल ज्यादा लगता है ...पर मन पहले ही मर चुका होता है तो मेहरबानियाँ एक बोझ लगाने लगती हैं ...जीवन के कटु अनुभव को सार्थक शब्द मिल गए हों जैसे ...

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  5. बिना आँसुओं का स्वाद चखे मुस्कान की मिठास कहाँ पता चलती है...~बहुत सुंदर रचना!
    ~सादर!!!

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  6. क्योंकि उन्होंने आत्मा पर चोट करते
    मेहरबानियों के उन छोटे-छोटे टुकड़ों
    का मोल तो मुझे समझा दिया !

    कम से कम मेरे सपने
    तूफ़ान का सामना
    करने के लिए
    तैरना तो सीख जायेंगे !

    बहुत बहुत ख़ूबसूरत
    पूरी कविता ही लाज़बाब है

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  7. श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  8. behtareen bhav ki rachna.......

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  9. विष पीने से यदि सत्य मिलता हो तो पहले विष पीना चाहिए सुकरात की तरह ....

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  10. सुनामी का सामना
    करना ही ठीक रहेगा
    कम से कम मेरे सपने
    तूफ़ान का सामना
    करने के लिए
    तैरना तो सीख जायेंगे !

    सही कहा....

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  11. सत्य बयानी करती यह रचना मन को छू गयी |बढ़िया लिखा है |
    आशा

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  12. यह साँझ-उषा का आँगन,आलिंगन विरह-मिलन का ,
    चिर हास-अश्रुमय आननरे,इस मानव जीवन का !

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  13. katu anubhavo ke pratifal me ek acchhe insan ka srijan hota hai...beshak un kadve anubhavo ko jeena bahut bahut kathin hai....lekin vahi jindgi ki kasauti par hame khara utarte hain.

    hamesha ki tarah gehen soch k sath ek dard ko jiti hui rachna.

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  14. अमृत की दो बूँदें काफी है लबालब भरे विष पात्र से जीतने के . जीवन के यथार्थ के चित्रण ने मोह लिया .

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  15. दर्द का ही आभारी होना चाहि‍ए कि जिंदगी के मायने समझा जाती है....सुंदर कवि‍ता

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  16. विश्वास ही सफलता की सीढ़ी बनता है.

    सुंदर विचारणीय प्रस्तुति.

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