दिसंबर के माह में दिल दहला
देने वाली एक घटना अमेरिका में हुई और एक घटना भारत में भी हुई ! अमेरिका में ईस्ट
कोस्ट में न्यू टाउन के सैंडी हुक स्कूल में एक मानसिक रूप से विक्षिप्त अपराधी
मनोवृत्ति के नवयुवक ने ६-७ साल के मासूम अबोध कई बच्चों को गोलियों से भून डाला !
कुछ टीचर्स और स्कूल की प्रिंसीपल ने भी अपनी जान गंवाई और भारत में कुछ पशु
प्रवृति के लोगों ने चलती बस में एक युवती के साथ गैंग रेप कर सारी मानवता को
शर्मसार कर दिया और सारे विश्व में भारत की छवि को धूमिल कर दिया !
दोनों घटनाओं ने अपने-अपने देश में लोगों को हिला कर रख दिया ! दोनों देशों में
राष्ट्रव्यापी रोष फ़ैल गया ! दोनों ही देशों में लोगों के आक्रोश और दुःख की कोई
सीमा नहीं है ! जगह-जगह प्रदर्शन, धरने और विरोध
के स्वर मुखर हो रहे हैं, कैडिल मार्च निकाले जा रहे
हैं ! लोग स्तब्ध हैं, दुखी हैं और विचलित हैं !
यहाँ तक ऐसा लगता है कि दोनों देशों के लोग अपने-अपने मोर्चों पर एक जैसी
मन:स्थिति से गुज़र रहे हैं और समस्या के निदान के लिए जूझ रहे हैं ! दोनों ही
देशों में संविधान में यथोचित संशोधन के लिए अनुशंसा की जा रही है कि भविष्य में
ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो !
यहाँ तक तो सब एक जैसा ही
लगता है ! बस जो फर्क मैंने दोनों देशों में देखा है वह समस्या के समाधान को लेकर
सरकारों की प्रतिबद्धता, ईमानदारी और गंभीरता को
लेकर है ! जब से सैंडी हुक स्कूल में यह दुर्घटना हुई है अमेरिका के राष्ट्रपति
बराक ओबामा इस विषय को लेकर कितने गंभीर हैं और संविधान में किस तरह से संशोधन
किये जाएँ इसके लिए कितने प्रतिबद्ध हैं यह देखते ही बनता है ! उन्होंने यहाँ के
उप राष्ट्रपति जो बाइडेन को इस समस्या के समाधान के लिए नियुक्त किया है, समाज के हर वर्ग के साथ और सभी राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ
मीटिंग्स कर वे किसी सार्थक निष्कर्ष पर पहुँचने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और आये
दिन टी वी पर इस विषय पर उनके स्टेटमेंट्स और उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस आती रहती हैं
! सभी देशवासी उन पर भरोसा करते हैं और उन्हें विश्वास है कि गन कल्चर के खिलाफ
कोई कारगर कदम वे जल्दी ही उठा पायेंगे ! लेकिन मुझे संदेह है कि हमारे भारतवर्ष
में हमारे मौनी बाबा मनमोहनसिंह जी ने इस विषय पर अब तक कोई विश्वसनीय वक्तव्य
दिया होगा या स्त्रियों की सुरक्षा के लिये कोई कारगर एवं कठोर कदम उठाया होगा !
क़ानून और संविधान में संशोधन की बात तो बहुत दूर की कौड़ी है उन्होंने दोषियों को
शीघ्रातिशीघ्र दण्डित करने के लिए ही कोई प्रभावी उपाय किया होगा मुझे इसमें भी
सदेह है !
विचारणीय यह भी है कि दोनों
देशों में घटित हादसों का हल निकालने के लिए दोनों देशों की सरकारों को किन
परिस्थतियों का सामना करना पड़ रहा है ! यहाँ अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा को
नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं क्योंकि उनके विरोध में गन कल्चर के हिमायती अमेरिकन्स
का एक बहुत बड़ा हिस्सा और नॅशनल राइफल्स एसोसियेशन के लोग डट कर खड़े हैं ! फिर भी
कल उन्होंने टी वी पर देश की जनता और कुछ बच्चों को यह वचन दिया था कि ' I'll try very hard.' जबकि भारत में तो दामिनी के बलात्कारियों के बचाव के लिए
सरकार को किसीका विरोध झेलने की दुश्चिंता भी नहीं है ! सभी लोग यह चाहते हैं कि
जल्दी से जल्दी उन्हें सख्त से सख्त सज़ा दी जाए ! लकिन वहां के निर्णायक मंडल में
कैसा भी क्रांतिकारी निर्णय लेने से बचने की परम्परा है ! कोई भी म्याऊँ का मुँह
पकड़ना नहीं चाहता ! इसीलिये सब अपना-अपना खोल ओढ़े हुए सिर्फ समस्या को आगे लुढ़काते
रहने में यकीन रखते हैं !
भारतीय जनता की संघर्षों से
भरी ज़िंदगी और हर रोज़ की समस्याओं से जूझते प्रतिपल क्षीण होती उनकी याददाश्त
हमारे नेताओं की सबसे बड़ी ढाल है ! कुछ समय लोगों में रोष रहेगा, उनके खून में उबाल आयेगा फिर सब भूल जायेंगे कौन दामिनी ? कौन सा गैंग रेप ? कौन दोषी ? कौन सा लचर क़ानून ? कैसा संशोधन ? कैसा न्याय ? कैसी सज़ा ? सब फ़िल्मी
किस्से कहानियों की तरह लोगों की स्मृति पटल से मिट जायेगा ! तब तक मौनी बाबा का
कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा ! क्या करना है फटे में टाँग अड़ा कर ! विरोधियों के
स्वरों को चुप कराने के लिए टी वी की डिबेट्स में चंद चतुर प्रवक्ताओं को सामने कर
देना ही श्रेयस्कर है वे समस्या का समाधान बता पायें या ना बता पायें गला फाड़ कर
अपनी बात को ऊपर रखने में माहिर हैं ! जिस काम के लिए जनता ने उन्हें चुन कर संसद
में भेजा है उसे वे प्रतिबद्धता के साथ करें या ना करें राजनीति के सभी दाव पेंचों
का उन्हें खूब ज्ञान है और गेंद को दूसरों के पाले में लुढ़का कर किस तरह से अपना
पल्ला झाड़ सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति मिल सकती है इसके भी सभी गुर वे भलीभाँति
जानते हैं !
साधना वैद
विचारणीय लेख है |बहुत सही लिखा है |
ReplyDeleteआशा
यहाँ न्याय नहीं है, सिर्फ राजनीति है
ReplyDeleteअक्षरश: सही कहा आपने ... सार्थकता लिए सशक्त लेखन
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने बस यही तो फ़र्क है
ReplyDeleteapka lekhan sada se hi mujhe prabhavit karta hai....padhne wale par lekhak ke lekhan ka kitna asar padta hai yah lekhan ki kasavt ka hi prabhav hota hai jise maine sada hi apke lekhan me paya hai. sabse pahle to iske liye me aapki mureed ban jati hun. ab chalte hain lekhan k vishay par.....bahut kuchh kaha...aur paristhitiyon ko saamne rakha...sach kaha CHATUR PRAVAKTA....bas yahi hain jo lagta hai sari samasyaaon ki kamaan sambhaal lete hain...aur waqt aane par apni apni party k kavach k roop me kaary karte hain. han hamari janta jimmedariyon k bojh se aur nit nayi dainik samsyaon se joojhti hui sach me hi bhool jati hai artharth vyast ho jati hai jiska fayeda ye sarkaren uthati hain...
ReplyDeletekeh dena kitna aasaan hai...BAS YAHI FARK HAI....lekin ye YAHI shabd kitni badi khayi banata hai...iska andaaza laga pana aasaan nahi to mushkil bhi nahi hai...
meri post par aap AWAITED hain.
@धन्यवाद अनामिका जी ! आज आपने बड़े दिनों के बाद दर्शन दिए ! स्वागत है आपका ! विचारणीय यह भी है कि दोनों देशों में घटित हादसों का हल निकालने के लिए दोनों देशों की सरकारों को किन परिस्थतियों का सामना करना पड़ रहा है ! यहाँ अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं क्योंकि उनके विरोध में गन कल्चर के हिमायती अमेरिकन्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा और नॅशनल राइफल्स एसोसियेशन के लोग डट कर खड़े हैं ! फिर भी कल उन्होंने टी वी पर देश की जनता और कुछ बच्चों को यह वचन दिया था कि ' I'll try very hard.' जबकि भारत में तो दामिनी के बलात्कारियों के बचाव के लिए सरकार को किसीका विरोध झेलने की दुश्चिंता भी नहीं है ! सभी लोग यह चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी उन्हें सख्त से सख्त सज़ा दी जाए ! लकिन वहां के निर्णायक मंडल में कैसा भी क्रांतिकारी निर्णय लेने से बचने की परम्परा है ! कोई भी म्याऊँ का मुँह पकड़ना नहीं चाहता ! इसीलिये सब अपना-अपना खोल ओढ़े हुए सिर्फ समस्या को आगे लुढ़काते रहने में यकीन रखते हैं !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने... बहुत बड़ा फर्क है...यहाँ हर बात में सिर्फ राजनीति होती है
ReplyDeleteयही फर्क ..... इस लिए है की हमारे नेता पद तो चाहते हैं लेकिन अपनी ज़िम्मेदारी निबाहना नहीं जानते ... सशक्त लिखा है .... विचारणीय लेख
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ReplyDeleteदिनांक 20/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
हाउसवाइफ किसे कहते हैं ?........हलचल का रविवारीय विशेषांक....रचनाकार....रेवा टिबरेवाल जी