स्वप्न नींदों मे,
अश्रु नयनों में,
गुबार दिल में ही
छिपे रहें तो
मूल्यवान लगते हैं यह माना ।
भाव अंतर में,
विचार मस्तिष्क में,
शब्द लेखनी में ही
अनभिव्यक्त रहें तो
अर्थवान लगते हैं यह भी माना ।
पर इतनी ज्वाला,
इतना विस्फोटक
हृदय में दबाये
खुद से बाहर निकलने के
सारे रास्ते क्यों बन्द कर लिये हैं ?
क्या यह आत्मघात नहीं है ?
जी हाँ! यह आत्मघात ही है.
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इतना विस्फोटक
हृदय में दबाये
खुद से बाहर निकलने के
सारे रास्ते क्यों बन्द कर लिये हैं ?
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बहुत संवेदनशील बात कही है आपने. अभिव्यक्त न करना आत्मघात है
बिल्कुल!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना!
vichaaro kee abhivyakti khud ko rileeja to kar detee hai par usake baada jo toofaana shuru hotaa hai usakaa to koi छ्or hee pakara me nahee aataa. shaayada aatmaghaata kaa yah ek mukhya kaarana hotaa hai
ReplyDeleteExcellent expressions by the writer, I fully agree with the contents.It is every body's privilage to express her/his views and for a healthy relationship, expression of feelings is must.
ReplyDeleteSuresh
खुद से बाहर निकलना ही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है गनीमत आपके मस्तिष्क से लेखनी के ज़रिये यह विचार बाहर तो निकले
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