बुरी है लत
समस्त व्यसनों में
धूम्रपान की
आपके साथ
बिगाड़े तबीयत
नन्ही जान की
ग्रहण करे
आपका छोड़ा धुँआ
पाये न पार
आपकी लत
आपके अपनों को
करे बीमार
संकटग्रस्त
धूम्रलती के संग
बच्चा बेचारा
कहाँ जाए वो
छोड़ निज घर को
बच्चा तुम्हारा
हुआ ग़ज़ब
धुआँँ छोड़ा आपने
बच्चा बीमार
भोगे आपके
दुर्व्यसनों की सज़ा
शिशु लाचार
पड़े पत्थर
अक्ल पे व्यसनी के
एक ना सुनी
गुलाम हुआ
नशे की आदत का
जान पे बनी
खोखले हुए
जिगर औ फेंफड़े
विपदा भारी
लग जानी है
अब उपचार में
दौलत सारी
नहीं निशानी
सिगार सिगरेट
मर्दानगी की
सबब हैं ये
बर्बाद सेहत की
बेचारगी की
छोड़ें ये लत
सँवारें जीवन को
संकल्प धारें
छुएँ ना कभी
सिगार सिगरेट
भूल सुधारें
साधना वैद
व्वाहहहह..
ReplyDeleteहर विषय पर माहिर मेरी दीदी..
सादर नमन..
हार्दिक धन्यवाद आपका दिग्विजय जी ! दिल से आभार !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब....
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !
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