दूर क्षितिज तक पसरे
तुम्हारे कदमों के निशानों पर
अपने पैर धरती
तुम तक पहुँचना चाहती हूँ !
सारी दिशाएँ खो जायें,
सारी आवाजें गुम हो जायें,
सारी यादें धुँधला जायें,
मेरी डायरी में लिखे
तुम्हारे पते की स्याही
वक्त के मौसमों की मार से
भले ही मिट जाये
मेरे मन की मरुभूमि की रेत पर
अंकित ये निशान आज भी
उतने ही स्पष्ट और ताज़े हैं
जितने वो उस दिन थे
जब वर्षों पहले मुझसे
आख़िरी बार मिल कर
तुम्हारे पल-पल दूर जाने से
मेरे मन पर बने थे !
तुम्हारे कदमों के
उन्हीं निशानों पर पैर रखते हुए
चलते रहना मुझे बहुत
अच्छा लगता है !
विरह की ज्वाला
कुछ शांत होने लगती है
आस पास की हवा
महकती सी लगती है
विरह की ज्वाला
कुछ शांत होने लगती है
आस पास की हवा
महकती सी लगती है
फासले कुछ कम होते से
लगते हैं और
उम्मीद की शाख हरी
होने लगती है !
जानती हूँ राह अनन्त है
मंज़िल का कोई ओर छोर भी
दिखाई नहीं देता
लेकिन मुझे विश्वास है
तुम्हारे पैरों के इन निशानों पर
पैर रखते हुए मैं
एक न एक दिन ज़रूर
तुम तक पहुँच जाऊँगी
फिर चाहे यह मुलाक़ात
इस लोक में हो या
व्योम के उस पार !
साधना वैद
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद नीतीश जी !आभार आपका !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद दिलबाग जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !
Deleteदार्शनिक भावों से सजी सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteकितनी सुँदर रचना🥰
ReplyDeleteओह ! आज आपको यहाँ का मार्ग मिल गया उषा जी ! बहुत बहुत स्वागत है आपका ! हार्दिक अभिनन्दन एवं हृदय से धन्यवाद एवं आभार !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार विकास जी !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद भारती जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteवाह!लाजवाब!
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !
Deleteसुखद एहसास करता सुंदर सृजन दी ,सादर नमन
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी ! दिल से आभार !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
DeleteBahut achhi rachna hai Sadhana ji, dil ko chhoo gayi. Sach hai, kuch log jo hame bhool jaate hein, unhen bhoolana kabhi kabhi kathin ho jaata hai. Dil baar baar chahta hai ke kaise bhi, chahe pal bhar ke liye hi, wo pal phir se jiye jane ka ek mauka to mile. Aas hi mano-bal hai, chahe puri ho ya rahe adhuri, jine ka sahara to hai hi.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर ! आपको रचना अच्छी लगी मेरा लेखन सार्थक हुआ ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete