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Friday, October 2, 2009

बी.पी.एल. से नीचे रहने वालों के लिये आवासीय योजना में गम्भीर भूलें

भारत में जनसंख्या की अधिकता की वजह से आवासीय समस्या बहुत गम्भीर होती जा रही है । गाँवों की अपेक्षा शहरों में यह समस्या और अधिक विकराल रूप धारण कर चुकी है । इस समस्या का दुष्परिणाम भारत की ग़रीब जनता को सबसे अधिक भोगना पड़ता है क्योंकि रोज़गार की तलाश में अपना घर छोड़ कर शहरों की ओर पलायन करना उनकी विवशता है और इस कारण रहने के लिये उचित व्यवस्था के ना होने से उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है । समय समय पर प्रदेश की सरकार तथा केंद्र सरकार ने ग़रीबी की रेखा से नीचे रहने वाले भारतीयों के लिये आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने के असफल प्रयास किये हैं लेकिन वे मकान अंतत: या तो घोटालेबाजों की भेंट चढ़ गये या केवल काग़ज़ों में ही सिमट कर रह गये और कभी यथार्थ में आकार नहीं ले सके । इन योजनाओं के क्रियान्वयन में कई गम्भीर भूलें संज्ञान में आती हैं जिनको निजी स्वार्थों के कारण सम्बन्धित अधिकारियों के द्वारा या तो जानबूझ कर नज़र अन्दाज़ किया गया है या यह उनकी अदूरदर्शिता का ज्वलंत उदाहरण हैं ।
ग़रीब जनता को सस्ते मकान मिल सकें या उन्हें कम दरों पर सस्ते भूमि के टुकड़े मिल सकें इसके लिये सरकार ने कई योजनायें लागू कीं लेकिन उनके त्रुटिपूर्ण होने की वजह से उनका लाभ ऐसे लोगों ने उठाया जो किसी भी तरह से इसके अधिकारी नहीं थे । व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते उन व्यक्तियों तक तो योजना की सूचना सही तरीके से पहुँची ही नहीं जो वास्तव में इसके हक़दार थे । प्लॉट्स के आवंटन में अनेकों धाँधलियाँ हुईं जैसे पैसे और रुतबेदार लोगों के नाते रिश्तेदार फर्ज़ी नामों का सहारा लेकर ग़रीबों के लिये सुरक्षित की गयी ज़मीन हथियाने में कामयाब हो गये । जो स्थान ग़रीबों की रिहाइशी मकानों के लिये सुरक्षित किये गये थे उन स्थानों पर ग़रीबों के लिये मकान बनाने की जगह शॉपिंग मॉल या बहुमंज़िला इमारतें बन गयीं । कुछ भाग्यशाली लोग जो प्लॉट या ज़मीन खरीदने में कामयाब हो गये वे उन्हें अधिक समय तक अपने पास रोक नहीं पाये । मकान खरीदने की कोशिश में अपनी सारी जमा पूँजी खर्च कर देने के बाद किसी को दाल रोटी के भी लाले पड़ गये तो किसी को अपना कर्ज़ उतारने के लिये धन की आवश्यक्ता हो गयी । क़िसी को इलाज के लिये पैसों की ज़रूरत थी तो किसीको घर में बहन बेटी के ब्याह के लिये धन जुटाने की ज़रूरत आन पड़ी । ऐसे में उनके पास सबसे सहज सुलभ विकल्प इन मकानों या ज़मीन का ही था जो उन्होंने सस्ते दरों पर सरकार से खरीदे थे । भू माफियाओं ने इनकी मजबूरी का फायदा उठाया और थोड़े से ज़्यादह पैसे देकर इनके मकान और प्लॉट्स इनसे खरीद लिये । इस प्रकार मकानों और ज़मीन का मालिकाना हक़ ग़रीबों को दे देना दूसरी सबसे बड़ी भूल साबित हुई । ग़रीबों की इस मजबूरी का फायदा भी पैसे वाले रुतबेदार लोगों ने उठाया और उनके हिस्से की ज़मीन औने पौने दामों में भूमाफियाओं के अधिग्रहण में चली गयी । जिन थोड़े से लोगों ने अपने मकान नहीं बेचे उन्हें लालच देकर या डरा धमका कर उनकी ज़मीनें और मकान हथिया लिये गये और यह सारा तमाशा सरकारी अधिकारी तटस्थ भाव से चुपचाप देखते रहे क्योंकि इस सारे तमाशे को देखने की कीमत उनके लिये कोई और अदा कर रहा था ।
जनता को राहत देने की सरकार की सारी कोशिशें इस तरह नाकामयाब नहीं होतीं यदि थोड़ी सी दूरदर्शिता और समझदारी से काम लिया जाता । ग़रीबों के हित में काम करना बहुत अच्छी बात है । लेकिन यह नहीं भूलना चाहिये कि ग़रीब और मजबूर व्यक्ति के पास यदि पैसे प्राप्त करने का छोटे से छोटा भी विकल्प होगा तो वह बिना सोचे समझे उसे इस्तेमाल कर लेगा । भारत जैसे ग़रीब देश में जहाँ चन्द रुपयों के लिये लोग अपनी संतान तक बेच डालते हैं वहाँ घर क्या चीज़ है । होना यह चाहिये कि सस्ते मकान बना कर सरकार को ग़रीब लोगों को न्यूनतम किराये पर उन्हें रहने के लिये देना चाहिये । वे जब तक चाहें वहाँ रह सकें लेकिन उन्हें बेचने या अन्य किसीको किराये पर देने का हक़ उन्हें नहीं होना चाहिये । यदि कोई मकान छोड़ कर जाना चाहे तो वह मकान किसी और को आवंटित किया जा सके यह प्रावधान होना चाहिये । अपनी मेहनत और बुद्धिबल से यदि कोई इतनी तरक्की कर लेता है कि वह ग़रीबी की रेखा से ऊपर निकल जाता है तो उसे इन मकानों को छोड कर जाने के लिये कहा जा सकता है । ग़रीबों के लिये बनाये जाने वाले इन मकानों में सभी बुनियादी आवश्यक्ताओं का ध्यान रखा जाना चाहिये लेकिन ये मज़बूत, सदगीपूर्ण और सस्ते होने चाहिये । मकान जितने मँहगे बनाने की कोशिश की जायेगी भ्रष्टाचार के लिये उतने ही रास्ते खुलेंगे । मकानों के पास बच्चों के लिये पार्क, स्कूल और अस्पताल जैसी सुविधायें समीप ही उपलब्ध हों इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये ।
ग़रीबी की रेखा से नीचे रहने वाली जनता के पास जब बिना किसी बाधा के रहने के लिये मकान की सुविधा उपलब्ध हो जायेगी तो वह तनावरहित होकर एकाग्र चित्त से अपने काम पर ध्यान केन्द्रित कर सकेगा । भूमाफियाओं का भय भी उसे नहीं होगा और अनधिकृत भू अधिग्रहण की समस्या से भी छुटकारा मिल सकेगा । शहर के विकास की योजना में भी इस तरह की अवांछनीय निर्माण की बाधायें सामने नहीं आयेंगी और भारत के शहर भी दर्शनीय हो जायेंगे ।
साधना वैद

3 comments :

  1. यहाँ भी घोर भ्रष्टाचार व्याप्त है ।

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  2. should be sent to P.M & chairman planning commission

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  3. saste me aasiyana hona chahiye jisse hum jaiso ka sapna pura ho sake
    ritu

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