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Friday, April 22, 2011

मैं तुम्हारी माँ हूँ














तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा

तुम्हारे कुछ भी कहने से पहले

मुझसे बहुत कुछ कह जाता है ,

ऑफिस में तुम्हारी ज़द्दोजहद और

दिन भर खटते रहने की कहानी

तुम्हारी फीकी मुस्कुराहट की ज़बानी

बखूबी कह जाता है !

नाश्ते की प्लेट को अनदेखा कर

चाय की प्याली को उठा

दूसरे कमरे के एकांत में

तुम्हारा चुपचाप चले जाना ,

सुना जाता है आज दिन में

ऑफिस में बॉस से हुई

बेवजह तकरार का

दुःख भरा अफ़साना !

छोटे भाई को जब तुम

बिना गलती के अकारण ही

थप्पड़ जड़ देती हो ,

मैं समझ जाती हूँ कि इस तरह

तुम ऑफिस से लौटते हुए

बस में किसी शोहदे की छेड़खानी से क्षुब्ध

दुनिया भर की नफरत मन में पाले

अपने आप से ही लड़ लेती हो !

बंद आँखों की कोरों से उमड़ते

आँसुओं को छुपाने के लिये

जब तुम दुपट्टे से मुँह को ढक

अनायास ही करवट बदल लेती हो ,

मैं जान जाती हूँ कि

किसी खास दोस्त की

रुखाई से मिले ज़ख्मों को

छुपाने की कोशिश में तुम

किस तरह खुद को हर पल

हर लम्हा कुचल लेती हो !

तुम मुझसे कुछ नहीं कहतीं

शायद इसलिये क्योंकि तुम मुझे

इस उम्र में कोई और

नया दुःख देना नहीं चाहतीं ,

लेकिन मैं भी क्या करूँ

मेरी ममता और मेरी आँखे भी

इस तरह धोखे में रहना नहीं जानतीं !

मैं सब समझ लेती हूँ ,

मैं सब जान जाती हूँ ,

क्योंकि मैं तुम्हारी माँ हूँ !


साधना वैद

चित्र गूगल से साभार !

19 comments :

  1. माँ होना -आज के वातावरण में बच्चों को बड़ा करना .....उन्हें हर ख़ुशी देने की चाहत रखना .....किसी तपस्या से कम नहीं है ...!!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
    मन को छू गयी ....!!

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  3. मैं सब जान जाती हूँ ,

    क्योंकि मैं तुम्हारी माँ हूँ
    bahut sateek bhavabhivyakti ..

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  4. बहुत सही यथार्थ पर आधारित चित्रण किया है |
    माँ अपने बच्चे की नस नस से वाकिफ होती है |
    बधाई
    आशा

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  5. माँ की मन की आँखों से क्या छिपा रह सकता है !

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  7. बहुत सुन्दर भावमय रचना। बधाई आपको।

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  8. बच्चे की एक कुनमुनाहट पर जागनेवाली माँ अनुभवों की ओट से सब समझती है....

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  9. लेकिन मैं भी क्या करूँ
    मेरी ममता और मेरी आँखे भी
    इस तरह धोखे में रहना नहीं जानतीं !
    मैं सब समझ लेती हूँ ,
    मैं सब जान जाती हूँ ,
    क्योंकि मैं तुम्हारी माँ हूँ !

    यह तो बस एक मां ही जान सकती है...बच्चे कहां समझते हैं...
    बहुत सुंदर भाव....

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  10. सुंदर भावाभिव्यक्ति। धन्यवाद|

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  11. एक माँ की संवेदनशीलता को दर्शाती, सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई

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  12. माँ ही बच्चों के मन को समझती है सच है सबसे बड़ी तपस्विनी है माँ

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  13. सुंदर भावाभिव्यक्ति.. माँ ही है जिससे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होती, बिन बताये ही सब कुछ जान जाती है, हर दुःख, हर सुख...

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  14. aawaak hun ise padh kar.....kucchh nahi kah paungi. maa ho to maun ko samjho.

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  15. एक याद रखने लायक रचना ! शुभकामनायें !!

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  16. मैं सब समझ लेती हूँ ,
    मैं सब जान जाती हूँ ,
    क्योंकि मैं तुम्हारी माँ हूँ !

    सच है ... मां से कुछ नहीं छिपता ... ।

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  17. छोटे भाई को जब तुम
    बिना गलती के
    अकारण ही
    थप्पड़ जड़ देती हो ,
    मैं समझ जाती हूँ कि
    इस तरह तुम
    ऑफिस से लौटते हुए
    बस में किसी शोहदे की
    छेड़खानी से क्षुब्ध
    दुनिया भर की नफरत
    मन में पाले
    अपने आप से ही
    लड़ लेती हो ..

    हर बात किया तर्क सटीक दिया है ...माँ का हृदय हर गतिविधि को जान लेता है ...बहुत अच्छी और भावमय प्रस्तुति ...

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  18. जन्म देने से ही कोई महिला माँ नहीं हो जाती| उस महिला को माँ का सत्कार प्राप्त करने के लिए और भी बहुत कुछ करना होता है| और वही सब आप ने चित्रित किया है प्रस्तुत कविता में|

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  19. ओह!! माँ के मन में उमड़ते-घुमड़ते भावों को अच्छी तरह से शब्दों में बाँधा है.

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