मैंने उसे देखा है
मौन की ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरी
सपाट भावहीन चेहरा लिये वह
चुपचाप गृह कार्य में लगी होती है
उसके खुरदुरे हाथ यंत्रवत कभी
सब्जी काटते दिखाई देते हैं ,
कभी कपड़े निचोड़ते तो
कभी विद्युत् गति से बच्चों की
यूनीफ़ॉर्म पर प्रेस करते !
उसकी सूखी आँखों की झील में
पहले कभी ढेर सारे सपने हुए करते थे ,
वो सपने जिन्हें अपने विवाह के समय
काजल की तरह आँखों में सजाये
बड़ी उमंग लिये अपने पति के साथ
वह इस घर में ले आई थी !
साकार होने से पहले ही वे सपने
आँखों की राह पता नहीं
कब, कहाँ और कैसे बह गये और
उसकी आँखों की झील को सुखा गये
वह जान ही नहीं पाई !
हाँ उन खण्डित सपनों की कुछ किरचें
अभी भी उसकी आंखों में अटकी रह गयी हैं
जिनकी चुभन यदा कदा
उसकी आँखों को गीला कर जाती है !
कस कर बंद किये हुए उसके होंठ
सायास ओढ़ी हुई उसकी खामोशी
की दास्तान सुना जाते हैं ,
जैसे अब उसके पास किसीसे
कहने के लिये कुछ भी नहीं बचा है ,
ना कोई शिकायत, ना कोई उलाहना
ना कोई हसरत, ना ही कोई उम्मीद ,
जैसे उसके मन में सब कुछ
ठहर सा गया है, मर सा गया है !
उसे सिर्फ अपना धर्म निभाना है ,
एक नीरस, शुष्क, मशीनी दिनचर्या ,
चेतना पर चढ़ा कर्तव्यबोध का
एक भारी भरकम लबादा ,
और उसके अशक्त कन्धों पर
अंतहीन दायित्वों का पहाड़ सा बोझ ,
जिन्हें उसे प्यार, प्रोत्साहन, प्रशंसा और
धन्यवाद का एक भी शब्द सुने बिना
होंठों को सिये हुए निरंतर ढोये जाना है ,
ढोये जाना है और बस ढोये जाना है !
यह एक भारतीय गृहणी है जिसकी
अपनी भी कोई इच्छा हो सकती है ,
कोई ज़रूरत हो सकती है ,
कोई अरमान हो सकता है ,
यह कोई नहीं सोचना चाहता !
बस सबको यही शिकायत होती है
कि वह इतनी रूखी क्यों है !
साधना वैद
चित्र गूगल से साभार -
कितना दर्द है आपकी कविता में ..एक आम भारतीय नारी की कहानी कहता हुआ ...एक सही शिक्षा ही नारी का आत्म गौरव ,उसका सम्मान उसे दे सकती है ....!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
ज़िन्दगी हसीन सपनो की तरह खूबसूरत नहीं होती...कांच के सपने यथार्थ की ठोस धरती से टकरा कर चूर चूर हो जाते हैं...बहुत अच्छी और सार्थक रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
गृहणियों के बारे मैं बहुत भावपूर्ण रचना लिखी है ./ग्रहणी को कभी आराम नहीं मिलता /काम काम और काम ही उसकी जिंदगी है /बधाई आपको
ReplyDeleteplease visit my blog www.prernaargal.blogspot.com and leave the comments also thanks
बहुत सुंदर पोस्ट बधाई आदरणीया साधना जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट बधाई आदरणीया साधना जी
ReplyDeletekyu bar bar mazboor kar deti hain apki kavitaye har istri ko apne jakhmo me jhaankne ke liye???? kyu nari itni kamzor hai? kyu itna dard hai jo nari ko hi jhelna hai? me jb bhi apko padhti hun inhi sawalo ke chakrvyooh me fas jati hun.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता...
ReplyDeleteसाधना जी बहुत ही सुन्दर कविता..नारी ह्रदय एक नारी ज्यादा बेहतर समझ सकती है..
ReplyDeleteआपकी कविता में आम भारतीय नारी की समाज में
ReplyDeleteदयनीय अवस्था का शतप्रतिशत चित्रण हुआ है |
काश हम इसे सुधार सकते |
गृहणी को सारे काम और घर और घर वालों की चिन्ता ...जब बन जाती है मशीन तो कहाँ रहेगी नरमाई ...रूखा तो होना ही है ...बहुत सुंदरता से लिखी है नारी के मन की बात ...
ReplyDeleteबहुत बारीखी से उकेरा है गृहणी का यह रूप |अच्छी पोस्ट |बधाई
ReplyDeleteआशा
गृहिणी के मनोभावों को स्वर देती सुंदर कविता
ReplyDeleteओह!! आज तो एकदम मन दुखी हो गया..इतनी कड़वी सच्चाई पढ़कर....आपने बिलकुल खरा सच लिखा है...यही है, एक गृहणी के हालात...और सबसे ज्यादा दुख की बात है..
ReplyDeleteना कोई शिकायत, ना कोई उलाहना
ना कोई हसरत, ना ही कोई उम्मीद ,
हाँ ,ऐसी ही है भारतीय नारी ,सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल |
ReplyDeleteऔर ये सब कविता के विषय के रूप में ही हमें भाता है |यथार्थ में तो हम भी उसके वैसी ही बने रहने की संकल्पना पाले रह्ते है तभी तो आधी आबादी चैन से रह पाती है| यह सब तो उसे जन्मते ही घुट्टी में पिला दिया जाता है फिर कैसे सुधरे और क्यों सुधरे
बेहतरीन शब्द चित्रण किया है आपने ! शुभकामनायें !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteबस सबको यही शिकायत होती है
ReplyDeleteकि वह इतनी रूखी क्यों है !
हर एक शब्द गहरे भाव लिये हुये ... अनुपम प्रस्तुति ।
धन्यवाद साधनाजी ...
ReplyDeleteएक आम भारतीय नारी का चित्रण खूबी से किया है..
कुछ लोग शायद इससे सहमत न हों परन्तु भारतीय मध्यम वर्गीय परिवारों में आज भी यही स्थिति है..!
भारतीय नारी की कहानी। अच्छी रचना। बधाई।
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