यूँ
तो
उदासी
की
कोई
खास वजह नहीं
लेकिन
आज ना जाने क्यों
बस
मुस्कुराने को ही
जी
नहीं चाहता !
यूँ
तो
पलकों
की हदें तोड़ कर
आँसू
बह नहीं रहे
लेकिन
इनकी नमी ने
मेरे
अंतर्मन की दरो दीवार की
सारी
खुशनुमाँ परतों को
पल
भर में ही खुरच कर
उतार
दिया है !
यूँ
तो
आँखों
के सामने आज भी
हर
रोज़ की तरह
कई
सारे
खूबसूरत
मंज़र बिखरे पड़े हैं
लेकिन
आज
ना
जाने क्यों आँखें
इनकी
किसी भी दिलकशी से
ज़रा
भी मुतासिर
नहीं
लगतीं ,
वो
तो बस गहन उदासी से
सुदूर
शून्य में ना जाने
कहाँ
अटकी हुई हैं !
यूँ
तो
लबों
को सी लेने की
मैंने
जानबूझ कर
कोई
पुरज़ोर
कोशिश
नहीं की
बस
आज सारे गीत,
सारे
किस्से ,
सारे
कहकहे
ना
जाने कहाँ
खामोश
होकर
दफ़न
हो गये हैं कि
मैं
इनका पता ठिकाना
कहीं
ढूँढ ही नहीं
पा
रही हूँ ,
मेरा
मन तो इन सभी
सुखों
से बस जैसे एकदम
उदासीन
सा हो गया है !
यूँ
ही....
बस....
यूँ ही !
साधना
वैद
कभी कभी आंसुओं को उनकी मर्जी की कर लेने देना चाहिए !
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण !
कभी कभी होता है बहुत कुछ बस यूँ ही
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा भी होता है..सुन्दर भाव.
ReplyDeleteकोशिशें तो ताउम्र रहीं
ReplyDeleteपर आज फिर मेरा जी चाहता है रोने को
........
मेरे हालात के लिए सही शब्द दिखे शुक्रिया
ReplyDelete.......................
मेरा मन तो इन सभी
ReplyDeleteसुखों से बस जैसे एकदम
उदासीन सा हो गया है !
कभी कभी ऐसा ही होता है, ऊपर की पंक्तियाँ तब बिल्कुल सार्थक लगती हें.
वाह ... बेहतरीन.सुन्दर भाव. बधाई
ReplyDeleteयूँ तो
ReplyDeleteउदासी की
कोई खास वजह नहीं
लेकिन आज ना जाने क्यों
बस मुस्कुराने को ही
जी नहीं चाहता !
बहुत सुंदर भाव लिए अंतर्मन को छूती बहुत शानदार रचना /बहुत बधाई आपको /
मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है /चार महीने बाद फिर में आप सबके साथ हूँ /जरुर पधारिये /
यूँ तो
ReplyDeleteउदासी की
कोई खास वजह नहीं
....................
बस मुस्कुराने को ही
जी नहीं चाहता !
वाह...
कभी कभी यही वजह बन जाती है न मुस्कुराने की..
साभार...!
आज फिर मेरा -------"सुन्दर पंक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी |
आशा
bas yun hi.... udash ho jaate hai.... bhaut hi behtreen rachna....
ReplyDeleteकभी कभी यूं ही घेर लेती है उदासी ,खूबसूरत लम्हे भी नहीं लुभा पाते मन को ....
ReplyDeleteऐसी दशा को बहुत खूबसूरती से उकेरा है ...
सुन्दर भाव..........कभी कभी होता है बहुत कुछ बस यूँ ही............
ReplyDeleteHOTA HAI KABHI KABHI AISA JAB MAN RISTA HAI AUR BAS RISTA HI RAHTA HAI...USE IS HAAL ME DEKHNA BHI KABHI KAHIN MAN K HI KISI KONE KO SHANT KAR RAHA HOTA HAI.
ReplyDeleteMARMIK RACHNA.
saral bhawon se bhari....dil ko chooti hui....
ReplyDeleteआज 21/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteबोझिल मन
ReplyDeleteछुप छुप के रोए...
मनाए कौन...?
रीती अंखिया
सपनों की कलियाँ...
करतीं बैन...:(
भावपूर्ण रचना !
~सादर !!!
सच कभी - कभी अकारण ही मन ऐसा चाहने लगता है ......
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