एक बलात्कारी की माँ का करुण आर्तनाद है यह जो ह्रदय को चीर देता है !
आज याद करती हूँ
तो बड़ा क्षोभ होता
है कि
तुझे पाने के लिए
मैंने
कितने दान पुण्य
किये थे
कितने मंदिर, मस्जिद
गुरुद्वारों में
भगवान् के सामने जाकर
महीनों माथा रगड़ा था
!
वो किसलिये ?
तुझ जैसे कपूत को
पाने के लिए ?
तुझे पाने के बाद
मेरी खुशी का कोई
ठिकाना न था !
मेरे पास किसी डायरी
में
लेखा जोखा नहीं है
कि
तेरी एक मुस्कान पर
कितनी बार बलिहारी
जाकर
मैंने तेरा माथा
चूमा होगा !
तेरे रोने की एक
मद्धिम सी आवाज़
पर
विह्वल होकर तुझे
कितनी बार अपने
कलेजे से चिपटाया
होगा !
तेरे हलके से बुखार
पर
अपनी हज़ार जानें तुझ
पर
न्यौछावर करने की
कितनी कसमें खाई
होंगी
और रात-रात भर
बाहों के झूले में
तुझे झुला कर अपनी
कितनी रातों की नींदें
कुर्बान की होंगी !
क्या इस दिन के लिए
?
आज धिक्कारती हूँ
मैं स्वयं को कि
मैंने
तुझ जैसे दुराचारी
कपूत के लिए
अपने मन की
सारी निश्छल
प्रार्थनायें,
सारा अनमोल प्यार
और अपना सारा
वात्सल्य और ममता
यूँ ही लुटा कर
व्यर्थ कर दीं !
आज महसूस होता है
एक बलात्कारी की माँ
कहलाने से तो अच्छा
यही होता कि
तू जन्म लेते ही
मर गया होता !
या फिर मैं
बाँझ ही रह जाती !
तुझ जैसे कुकर्मी को
जन्म देने के गुनाह
से तो कम से कम
बच जाती !
उस समय अपने
दुर्भाग्य पर कुछ
दिन
रोकर चुप हो जाती
लेकिन अब जिस
दुःख का बोझ तूने
मेरे सीने पर
जीवन भर के लिये
लाद दिया है
धरती के सारे
पर्वतों का
भार भी उस बोझ के
सामने
फूलों सा हल्का होगा
और
सारी दुनिया के
सामने
मुझे लज्जित कर
जितने आँसू तूने
मेरी
आँखों में भर दिये
हैं
सातों सागरों का
खारा पानी
भी उनके सामने
बूँद सा नगण्य होगा
!
अब तू मेरे सामने
कभी न आना
क्योंकि यहाँ की
अदालत
तेरा फैसला कब करेगी
मैं नहीं जानती
लेकिन अगर तू
मेरे हाथों पड़ गया
तो
एक हत्यारिन माँ
होने का पट्टा
मेरे माथे पर
ज़रूर चिपक जायेगा !
फिर चाहे मुझे फाँसी
हो
या उम्र कैद
तुझ जैसे व्यभिचारी
को
पैदा करने का
इससे बड़ा पश्चाताप
मेरी नज़र में
और कोई नहीं होगा
और शायद अपनी माँ की
कोख को लजाने के
लिये
और किसी मासूम का
जीवन
बर्बाद करने के लिये
इससे बड़ी सज़ा तेरे
लिये
और कोई नहीं होगी !
साधना वैद
चित्र गूगल से साभार
एक माँ के कलेजे के टुकड़े ...
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ReplyDeleteआपकी ये रचना
ReplyDeleteसचमुच रुला गई
सादर
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
शब्दश: मन चीत्कार करता है ...
ReplyDeleteलेकिन अगर तू मेरे हाथों पड़ गया तो एक हत्यारिन माँ होने का पट्टा मेरे माथे पर ज़रूर चिपक जायेगा ! फिर चाहे मुझे फाँसी हो या उम्र कैद तुझ जैसे व्यभिचारी को पैदा करने का इससे बड़ा पश्चाताप मेरी नज़र में और कोई नहीं,,,,
ReplyDeleteलाजबाब अभिव्यक्ति,,साधना जी,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
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ReplyDeleteकविता ने आँखें नम कर दीं |बहुत सशक्त अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
माँ आखिर एक महिला है और अपने ही अंश से अपने ही स्वरूप का ऐसा अपमान उसे लज्जित ही नहीं बल्कि उसके ममतत्व के टुकडे टुकडे कर गया .
ReplyDeleteसशक्त रचना ....
ReplyDeleteसच माँ के दिल से कोई पूछे ...
ReplyDeleteकितना दर्द देती हैं उसकी नालायक संतानें ...
संस्कारवान माँ का अंतरनाद ..... बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति....
क्या कहूँ ? सब कुछ तो उस माँ के दर्द ने बयाँ कर दिया
ReplyDeleteअत्यंत संवेदनशील और मार्मिक दिल को छू गयी यह रचना. बहुत बधाई.
ReplyDeleteतुझ जैसे व्यभिचारी को
ReplyDeleteपैदा करने का
इससे बड़ा पश्चाताप
मेरी नज़र में
और कोई नहीं होगा
और शायद अपनी माँ की
कोख को लजाने के लिये.
ऐसी माँ बेचारी भी रोने के आलावा क्या कर सकती है. मन को द्रवित करती है यह कविता.