ठण्ड की रात
भारी अलाव पर
छाया कोहरा !
सीली लकड़ी
बुझता सा अलाव
जला नसीब !
बर्फ सी रात
फुटपाथ की शैया
मुश्किल जीना !
फटा कम्बल !
पक्के मकान
मुलायम रजाई
पूस की रात !
दीन झोंपड़ी
जीर्ण शीर्ण बिस्तर
कटे न रात !
छाया कोहरा
चाँद तारे समाये
नीली झील में !
चाँद ने पूछा
कौन उघडा पड़ा
सर्द रात में
बोल पड़े सितारे
एक धरतीपुत्र !
करे लड़ाई
सूरज धूप से
छाया कोहरा !
घर में घुसा रवि
छिपा कर चेहरा !
पूस की रात
‘हल्कू’ की याद आई
मन पसीजा !
आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पर
ठण्ड की रात
कुछ भी न बदला
स्वतन्त्रता के बाद
!
साधना वैद
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