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Sunday, November 22, 2015

जीवन की शाम



जनम दिया पालन किया, की खुशियाँ कुर्बान
बोझ वही माता पिता, कैसी यह संतान !

झुकी कमर धुँधली नज़र, है जीवन की शाम
जीवन के संघर्ष में, मिला कहाँ विश्राम !

स्वार्थसिद्धि में सब निरत, भरने में निज कोश
कब सुध लें माँ बाप की, है किसको यह होश !

सब अपने में हैं मगन, किसको देवें दोष
बाबा डॉक्टर के खड़े, दादी हैं बेहोश !

पालन करने में कभी, दिन देखे ना रात
वही पूज्य माता पिता, खाते अब आघात !

तानी जिसने धूप में, निज आँचल की छाँव
खड़ी वही ममतामयी, वृद्धालय की ठाँव !

खटती चौके में सदा, बूढ़ी माँ दिन रात
अक्सर रोटी सेकते, जल जाते हैं हाथ !

रोपा था जिस पेड़ को, घर आँगन के द्वार
 मरूँ उसीकी छाँह में, मत छीनो अधिकार ! 




साधना वैद

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