जनम दिया पालन किया,
की खुशियाँ कुर्बान
बोझ वही माता पिता,
कैसी यह संतान !
झुकी कमर धुँधली
नज़र, है जीवन की शाम
जीवन के संघर्ष में,
मिला कहाँ विश्राम !
स्वार्थसिद्धि में
सब निरत, भरने में निज कोश
कब सुध लें माँ बाप
की, है किसको यह होश !
सब अपने में हैं मगन,
किसको देवें दोष
बाबा डॉक्टर के खड़े,
दादी हैं बेहोश !
पालन करने में कभी,
दिन देखे ना रात
वही पूज्य माता पिता,
खाते अब आघात !
तानी जिसने धूप में,
निज आँचल की छाँव
खड़ी वही ममतामयी,
वृद्धालय की ठाँव !
खटती चौके में सदा,
बूढ़ी माँ दिन रात
अक्सर रोटी सेकते, जल
जाते हैं हाथ !
रोपा था जिस पेड़ को,
घर आँगन के द्वार
मरूँ उसीकी छाँह में, मत
छीनो अधिकार !
साधना वैद
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